Monday 18 January 2021

टीकाकरण में दोष या विपक्षी दिवालियापन


सरकार की नीतियों में दोष तलाशना किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक प्रजातंत्र में विपक्ष का कर्तव्य होता है. जनता सरकार को अच्छा करने के लिए हीं चुनती है लिहाज़ा अच्छा करना कोई अहसान नहीं है.  लेकिन जब सरकार के अच्छे कार्यों में भी गलतियाँ तलाशीं जाती हैं तो आम जनता में विपक्ष के प्रति अविश्वास पैदा होता है. बगैर किसी अन्य देश का मोहताज हुए देश में हीं, रिकॉर्ड समय में तैयार की गयी वैक्सीन एक उपलब्धि है. यह कहना कि वैज्ञानिक तो अच्छे हैं पर सरकार गलत, कुछ ऐसा हीं है जैसे सेना जीती तो सेना को तो बधाई पर सरकार की इस बात के लिए बुराई कि लड़ाई में कुछ सैनिक घायल क्यों हुए. अगर अन्य देशों में टीका लगता और भारत पीछे रहता तो क्या यही विपक्ष सरकार की लानत-मलानत न करता? पूरे देश में मुफ्त टीके की विपक्षी मांग भी कुछ इसी तरह का सरकार-विरोध है. आर्थिक स्थिति खराब है. कोरोना काल के लॉकडाउन के कारण राजस्व में भारी कमी आयी है. ऐसे में सरकार पर दबाव यह है कि लोगों के हाथ में किसी न किसी बहाने पैसा पहुंचाया जाये ताकि वे खरीद करें और अर्थ-चक्र घूमना शुरू हो. उधर इस साल किसान आन्दोलन के कारण जरूरत से ज्यादा अनाज एमएसपी पर सरकारी एजेंसियों ने खरीदा है और अन्य राहत देने की तैयारी चल रही है. टीकाकरण की प्रक्रिया भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में स्वयं में एक दुरूह कार्य है. विपक्ष का लोगों को डरवाना कि अमुक वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के स्तर पर हीं लोक-प्रयोग के लिए लाना खतरनाक है, गैरजिम्मेदाराना रवैया है. जरूरत है जनता में वैक्सीन के प्रयोग को लेकर सकारात्मक माहौल बनाने की. सरकार का आभार इस हौसले के लिए भी व्यक्त करना चाहिए कि कोरोना के खिलाफ अंतिम युद्ध जीतने के लिए सरकार ने वे सभी सावधानियां बरतीं जो ब्रिटेन या अमेरिका की सरकारों ले लीं. हाँ, एक साल में टीका का ईजाद और लोक-प्रयोग की इज़ाज़त स्वयं हीं एक रिस्क है जो भारत सहित पूरी दुनिया ने लिया. वैसे भी केवल ०.२ प्रतिशत लोगों में टीके के मामूली साइड इफ़ेक्ट मिलना सकारात्मक सोच को बल देता है. 


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