@n_k_singh
दो साल पहले जब देश की बागडोर जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ में दी तो हमारे जैसे राजनीति-शास्त्र के विद्यार्थियों के मन में एक विश्वास पैदा हुआ कि प्रजातंत्र की गुणवत्ता बदलेगी और सामाजिक चेतना अतार्किक और पारस्परिक वैमनष्यतापूर्ण पहचान-समूहों से हट कर विकास की तार्किक समझ के आधार पर अपने फैसले लेगी. यह भी भरोसा बना कि दुनिया के वे सभी चिन्तक और राजनीतिक धुरंधर जिन्होंने आजाद भारत में ब्रितानी वेस्टमिन्स्टर मॉडल की शासन –पध्यति के अनुकरण करने के खिलाफ १८७० से १९४७ तक लगातार चेतावनी दी थी गलत साबित होंगे. पर वे सही निकले. पहले बिहार और अब उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले साफ़ दिखाई दे रहा है कि जातिवाद, साम्प्रदायिकता और छद्म सेक्यूलरवाद का बोलबाला हीं नहीं रहेगा बल्कि इसका नग्न तांडव भी हो सकता है.
इस हफ्ते चार दिन के भीतर हीं सोशल मीडिया में दो खबरें आयीं जिन्हें जाहिर है चैनलों और अखबारों ने भी समय और जगह दी. पहली अयोध्या से थी और दूसरी देश की राजधानी दिल्ली से सटे नॉएडा से. ध्यान रहे कि ये विजुअल्स मीडिया के अपने प्रयासों से नहीं मिलते थे बल्कि आयोजकों के जानबूझ कर इन्हें लीक किया था. अयोध्या --जहाँ संघ परिवार राम मंदिर बनवाना चाहता है और जहां आज से २३ साल पहले बाबरी मस्जिद नामक विवादस्पद ढांचा गिराया गया था. बजरंग दल जो कि संघ परिवार का अनुषांगिक संगठन है इस शांत क़स्बे में हिन्दू युवाओं को शस्त्र प्रशिक्षण दे रहा है जिसमें लाठी और तलवार चलना हीं नहीं बन्दूक चलाना भी शामिल है. उद्देश्य है हिन्दुओं को आत्म-रक्षा के लिए और आतंकवाद के खिलाफ शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करना. एक विजुअल में आतंकवादी हमले को नाकाम करने का माक -ड्रिल (छद्म अभ्यास) है. यहाँ तक तो ठीक है. अगर तलवार का लाइसेंस है (कुछ राज्यों में यह अनिवार्य है), बन्दूक उन्हीं के हाथ में है जो उसको रखने के कानूनी रूप से हकदार हैं और यह अभ्यास सार्वजनिक स्थल पर नहीं बल्कि निजी चाहरदीवारी के अन्दर किया जा रहा है तो यह कहीं से गैर-कानूनी नहीं है. लेकिन इस विजुअल में प्रदर्शित छद्म अभ्यास के आखिर में जिस "आतंकी" को मार गिराया गया है वह सर पर दोपल्ली टोपी और दाढ़ी (एक समुदाय विशेष का पहनावा) रखे दिखाया गया है. इस अभ्यास करने वाले बजरंग दल के नेता ने कैमरे पर कहा “जी हाँ, हम आतंकियों के खिलाफ हिन्दुओं को तैयार कर रहे हैं और जो कुछ मदरसों में हो रहा है वह नहीं चलने देंगे.
भारतीय दंड संहिता में १९७२ में एक संशोधन किया गया जिसके तहत सेक्शन १५३ अ (ग) लाया गया. उसके अनुसार ऐसा कोई भी अभ्यास, ड्रिल , आन्दोलन या ऐसी कोई अन्य गतिविधि जिसका आशय किसी अन्य समुदाय, नस्ल, भाषा या क्षेत्र के लोगों के खिलाफ हिंसा के लिए होने की आशंका हो, गैर-कानूनी है.
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने तत्परता दिखाई और अयोध्या के बजरंग दल के नेता को गिरफ्तार कर लिया. अगले तीन दिन मे नॉएडा में भी यही “अभ्यास” उसी बजरंग दल द्वारा किया गया. अगले दिन जब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष से एक प्रेस वार्ता में पूछा गया कि यह क्या हो रहा है तो उनका कहना था “अगर ये अभ्यास गैर-कानूनी हैं तो उत्तर प्रदेश की सरकार कार्रवाई करे. उनका भाव चुनौती वाला था. यही वह पेंच है जो पूरे प्रजातंत्र के लिए मवाद भरे घाव का रूप ले रहा है. ६६ साल के प्रजातंत्र में हम यही तक पहुंचे हैं. किसी नितीश ने आतंकी इशरत जहाँ को बिहार की बेटी बताया तो किसी मुलायम ने गोरखपुर बम ब्लास्ट के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के उपक्रम किये और किसी लालू ने जेल में बंद अपराधी शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी की कार्यकारिणी में मनोनित किया. मुलायम और लालू जब अपने समूचे परिवार को राजनीतिक पदों और लोकसभा और राज्यसभा में आसीन करवाते हैं तो वह लोहिया के सपनों को साकार करना बताया जाता है. प्रजातंत्र की विद्रूप चेहरा साफ़ दीखने लगता है. जाहिर है इस राजनीति का जिसमें शहाबुद्दीन की भूमिका हो या छोड़े जाने वाले आतंकी की भूमिका हो या चुनाव के समय मुख्यमंत्री मुसलमानों को आरक्षण दे डाली जो डंके की चोट पर संविधान का उल्लंघन है का प्रतिकार दूसरी विपक्षी पार्टी कैसे करेगी. लिहाज़ा भाजपा को अगर जिन्दा रहना है तो वह भी जहर को जहर से हीं काटेगी. लिहाज़ा बजरंग दल हिन्दुओं को “बचाएगा” , आतंकियों को ख़त्म करेगा और यह भी बताएगा कि आतंकी कौन से सम्प्रदाय से है. और जब यह सब कम लगेगा तो विजुअल्स मीडिया को लीक कर देगा और उसका नेता बताएगा कि मदरसों में क्या हो रहा है. सरकार को चुनौति दी जायेगी कि दम हो तो गिरफ़्तार करो। अखिलेश कर भी लेंगे क्योंकि उनके भी १८.५ प्रतिशत वोट पक्के। भाजपा भी हिन्दू ध्रुवीकरण के कारण ७९ प्रतिशत में चोंच मार सकेगी। घाटे में होंगी बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जो इस खेल में अभी तक सेक्युलर -सेक्युलर हीं खेल पाये हैं ।
यहाँ प्रश्न यह है कि भारतीय संविधान ने कब से आतंकवादियों से हिन्दुओं को बचाने का ठेका किसी बजरंग दल को दे दिया है. क्या राज्य के अभिकरण, देश की लगभग १६ लाख केंद्र और राज्यों की पुलिस, १३.५ लाख सेना कम पड़ रहीं हैं और अगर ये कम हैं तो क्या मुट्ठी भर लाठी-भांजते लोग इसे रोक पाएंगे. क्या आशय सच में हिन्दुओं को बचाना है और है तो क्यों नहीं राज्य के अभिकरण के खिलाफ प्रजातान्त्रिक लड़ाई लड़ी जाती कि उत्तर प्रदेश की दो लाख पुलिस क्यों आतंकवादी पैदा होना बंद नहीं कर पा रही है.
दरअसल आतंकवादियों से लड़ने के लिए राज्य अभिकरण हीं होते हैं समाज के लोग भी अगर उसी भाव में आ गए तो हम आतंकवादियों के खिलाफ आतंकवादी पैदा करेंगे और तब समस्या का समाधान होने की जगह भारत सीरिया, बोस्निया और चेचेन्या बन जाएगा.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक प्रेस वार्ता में इस मुद्दे पर दो अच्छी सलाहें दीं. पहला , अगर बजरंग दल की गतिविधि गलत है तो उन पर कार्रवाई करे राज्य सरकार और दूसरा कि आप किसी संस्था ने क्या किया है पर ध्यान देने की जगह यह देखो कि सरकार (याने मोदी सरकार) क्या कह रही है और क्या कर रही है. पर अगर उनकी बात पर ध्यान दिया जाये तो मोदी सरकार के मंत्री हीं हर दूसरे दिन भारत माता की जय न बोलने वालों को “पापी” कहते हैं, हर तीसरे दिन ऐसे लोगों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देते है” और हर चौथे दिन “न बोला तो कानून बनायेंगे “ का ऐलान करते हैं. क्या उनकी बात सुनीं जाये?
क्या अच्छा न होता कि मोदी की पार्टी कार्यकारिणी में की गयी अपील पर ध्यान देते हुए हर भाजपा , बजरंग दल , विश्व हिन्दू परिषद् और संघ परिवार का हर सदस्य नयी फसल बीमा योजना के लाभ, किसानों से जरूरत से अधिक यूरिया न इस्तेमाल करने की सलाह, और केंद्र के जन-कल्याण के अनेक कार्यक्रमों को जन-जन तक ले जाते ? इससे विश्व में भी संघ की साख बढ़ती और देश में समरसता भी.
दो साल पहले जब देश की बागडोर जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ में दी तो हमारे जैसे राजनीति-शास्त्र के विद्यार्थियों के मन में एक विश्वास पैदा हुआ कि प्रजातंत्र की गुणवत्ता बदलेगी और सामाजिक चेतना अतार्किक और पारस्परिक वैमनष्यतापूर्ण पहचान-समूहों से हट कर विकास की तार्किक समझ के आधार पर अपने फैसले लेगी. यह भी भरोसा बना कि दुनिया के वे सभी चिन्तक और राजनीतिक धुरंधर जिन्होंने आजाद भारत में ब्रितानी वेस्टमिन्स्टर मॉडल की शासन –पध्यति के अनुकरण करने के खिलाफ १८७० से १९४७ तक लगातार चेतावनी दी थी गलत साबित होंगे. पर वे सही निकले. पहले बिहार और अब उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले साफ़ दिखाई दे रहा है कि जातिवाद, साम्प्रदायिकता और छद्म सेक्यूलरवाद का बोलबाला हीं नहीं रहेगा बल्कि इसका नग्न तांडव भी हो सकता है.
इस हफ्ते चार दिन के भीतर हीं सोशल मीडिया में दो खबरें आयीं जिन्हें जाहिर है चैनलों और अखबारों ने भी समय और जगह दी. पहली अयोध्या से थी और दूसरी देश की राजधानी दिल्ली से सटे नॉएडा से. ध्यान रहे कि ये विजुअल्स मीडिया के अपने प्रयासों से नहीं मिलते थे बल्कि आयोजकों के जानबूझ कर इन्हें लीक किया था. अयोध्या --जहाँ संघ परिवार राम मंदिर बनवाना चाहता है और जहां आज से २३ साल पहले बाबरी मस्जिद नामक विवादस्पद ढांचा गिराया गया था. बजरंग दल जो कि संघ परिवार का अनुषांगिक संगठन है इस शांत क़स्बे में हिन्दू युवाओं को शस्त्र प्रशिक्षण दे रहा है जिसमें लाठी और तलवार चलना हीं नहीं बन्दूक चलाना भी शामिल है. उद्देश्य है हिन्दुओं को आत्म-रक्षा के लिए और आतंकवाद के खिलाफ शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करना. एक विजुअल में आतंकवादी हमले को नाकाम करने का माक -ड्रिल (छद्म अभ्यास) है. यहाँ तक तो ठीक है. अगर तलवार का लाइसेंस है (कुछ राज्यों में यह अनिवार्य है), बन्दूक उन्हीं के हाथ में है जो उसको रखने के कानूनी रूप से हकदार हैं और यह अभ्यास सार्वजनिक स्थल पर नहीं बल्कि निजी चाहरदीवारी के अन्दर किया जा रहा है तो यह कहीं से गैर-कानूनी नहीं है. लेकिन इस विजुअल में प्रदर्शित छद्म अभ्यास के आखिर में जिस "आतंकी" को मार गिराया गया है वह सर पर दोपल्ली टोपी और दाढ़ी (एक समुदाय विशेष का पहनावा) रखे दिखाया गया है. इस अभ्यास करने वाले बजरंग दल के नेता ने कैमरे पर कहा “जी हाँ, हम आतंकियों के खिलाफ हिन्दुओं को तैयार कर रहे हैं और जो कुछ मदरसों में हो रहा है वह नहीं चलने देंगे.
भारतीय दंड संहिता में १९७२ में एक संशोधन किया गया जिसके तहत सेक्शन १५३ अ (ग) लाया गया. उसके अनुसार ऐसा कोई भी अभ्यास, ड्रिल , आन्दोलन या ऐसी कोई अन्य गतिविधि जिसका आशय किसी अन्य समुदाय, नस्ल, भाषा या क्षेत्र के लोगों के खिलाफ हिंसा के लिए होने की आशंका हो, गैर-कानूनी है.
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने तत्परता दिखाई और अयोध्या के बजरंग दल के नेता को गिरफ्तार कर लिया. अगले तीन दिन मे नॉएडा में भी यही “अभ्यास” उसी बजरंग दल द्वारा किया गया. अगले दिन जब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष से एक प्रेस वार्ता में पूछा गया कि यह क्या हो रहा है तो उनका कहना था “अगर ये अभ्यास गैर-कानूनी हैं तो उत्तर प्रदेश की सरकार कार्रवाई करे. उनका भाव चुनौती वाला था. यही वह पेंच है जो पूरे प्रजातंत्र के लिए मवाद भरे घाव का रूप ले रहा है. ६६ साल के प्रजातंत्र में हम यही तक पहुंचे हैं. किसी नितीश ने आतंकी इशरत जहाँ को बिहार की बेटी बताया तो किसी मुलायम ने गोरखपुर बम ब्लास्ट के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के उपक्रम किये और किसी लालू ने जेल में बंद अपराधी शहाबुद्दीन को अपनी पार्टी की कार्यकारिणी में मनोनित किया. मुलायम और लालू जब अपने समूचे परिवार को राजनीतिक पदों और लोकसभा और राज्यसभा में आसीन करवाते हैं तो वह लोहिया के सपनों को साकार करना बताया जाता है. प्रजातंत्र की विद्रूप चेहरा साफ़ दीखने लगता है. जाहिर है इस राजनीति का जिसमें शहाबुद्दीन की भूमिका हो या छोड़े जाने वाले आतंकी की भूमिका हो या चुनाव के समय मुख्यमंत्री मुसलमानों को आरक्षण दे डाली जो डंके की चोट पर संविधान का उल्लंघन है का प्रतिकार दूसरी विपक्षी पार्टी कैसे करेगी. लिहाज़ा भाजपा को अगर जिन्दा रहना है तो वह भी जहर को जहर से हीं काटेगी. लिहाज़ा बजरंग दल हिन्दुओं को “बचाएगा” , आतंकियों को ख़त्म करेगा और यह भी बताएगा कि आतंकी कौन से सम्प्रदाय से है. और जब यह सब कम लगेगा तो विजुअल्स मीडिया को लीक कर देगा और उसका नेता बताएगा कि मदरसों में क्या हो रहा है. सरकार को चुनौति दी जायेगी कि दम हो तो गिरफ़्तार करो। अखिलेश कर भी लेंगे क्योंकि उनके भी १८.५ प्रतिशत वोट पक्के। भाजपा भी हिन्दू ध्रुवीकरण के कारण ७९ प्रतिशत में चोंच मार सकेगी। घाटे में होंगी बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जो इस खेल में अभी तक सेक्युलर -सेक्युलर हीं खेल पाये हैं ।
यहाँ प्रश्न यह है कि भारतीय संविधान ने कब से आतंकवादियों से हिन्दुओं को बचाने का ठेका किसी बजरंग दल को दे दिया है. क्या राज्य के अभिकरण, देश की लगभग १६ लाख केंद्र और राज्यों की पुलिस, १३.५ लाख सेना कम पड़ रहीं हैं और अगर ये कम हैं तो क्या मुट्ठी भर लाठी-भांजते लोग इसे रोक पाएंगे. क्या आशय सच में हिन्दुओं को बचाना है और है तो क्यों नहीं राज्य के अभिकरण के खिलाफ प्रजातान्त्रिक लड़ाई लड़ी जाती कि उत्तर प्रदेश की दो लाख पुलिस क्यों आतंकवादी पैदा होना बंद नहीं कर पा रही है.
दरअसल आतंकवादियों से लड़ने के लिए राज्य अभिकरण हीं होते हैं समाज के लोग भी अगर उसी भाव में आ गए तो हम आतंकवादियों के खिलाफ आतंकवादी पैदा करेंगे और तब समस्या का समाधान होने की जगह भारत सीरिया, बोस्निया और चेचेन्या बन जाएगा.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक प्रेस वार्ता में इस मुद्दे पर दो अच्छी सलाहें दीं. पहला , अगर बजरंग दल की गतिविधि गलत है तो उन पर कार्रवाई करे राज्य सरकार और दूसरा कि आप किसी संस्था ने क्या किया है पर ध्यान देने की जगह यह देखो कि सरकार (याने मोदी सरकार) क्या कह रही है और क्या कर रही है. पर अगर उनकी बात पर ध्यान दिया जाये तो मोदी सरकार के मंत्री हीं हर दूसरे दिन भारत माता की जय न बोलने वालों को “पापी” कहते हैं, हर तीसरे दिन ऐसे लोगों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देते है” और हर चौथे दिन “न बोला तो कानून बनायेंगे “ का ऐलान करते हैं. क्या उनकी बात सुनीं जाये?
क्या अच्छा न होता कि मोदी की पार्टी कार्यकारिणी में की गयी अपील पर ध्यान देते हुए हर भाजपा , बजरंग दल , विश्व हिन्दू परिषद् और संघ परिवार का हर सदस्य नयी फसल बीमा योजना के लाभ, किसानों से जरूरत से अधिक यूरिया न इस्तेमाल करने की सलाह, और केंद्र के जन-कल्याण के अनेक कार्यक्रमों को जन-जन तक ले जाते ? इससे विश्व में भी संघ की साख बढ़ती और देश में समरसता भी.