Sunday 6 September 2015

शीना हत्या केसः उन्मुक्तता के नाम पर ऐय्याशी-जनित 'लिव-इन' संबंधों को खत्म करें

 
 
 




तो अब डी एन ए टेस्ट से पता लगाया जाएगा कि किस बेटे-बेटी का बाप कौन है क्योंकि कन्फ्यूजन यह है कि किसी लिव-इन रिलेशन को भी धोखा देते हुए किस भावी लिव –इन पार्टनर के साथ "ट्रायल के दौरान" कोई संतान दुनिया में आयी यह माँ को भी नहीं पता है. लिहाज़ा वह क्यों अगले १८ साल के लिए ढोए यह जिम्मेदारी और अपना "करियर" खराब करे. उधर पहला और दूसरा लिव-इन पार्टनर अपने को मुक्त कर सकते हैं यह कहते हुए कि पहले पता करो कि "किसका है". लिहाज़ा अब डी एन ए से पता चलेगा बच्चा किस की जिम्मेदारी है. आज जेल में बंद इन्द्रानी पहले कई "शादियाँ" "बना" चुकी है. उसके पैत्रिक बंगले को देख कर हीं लगता है कि समाज के काफी ऊपर के वर्ग की रही है. उसके अनुसार उसके पिता ने उसकी माँ और उसे छोड़ दिया और उसके चाचा ने उसकी माँ को रखा और इन्द्रानी से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाये. पुलिस को दिए बयान में जो मीडिया ने बताया, की पुष्टि देश के एक बड़े पत्रकार वीर संघवी ने भी की. "इन्द्रानी ने मुझसे भी यह बात बताई थी", संघवी ने एक न्यूज चैनल को पिछले हफ्ते बताया. संघवी इन्द्रानी के पति के टीवी चैनल में सम्पादक रह चुके हैं. खैर, यहाँ मकसद किसी इन्द्रनी के खानदान का वंश-वृक्ष दिखाने का नहीं ही बल्कि यह बताने का है कि रोटी जीत चुका एक वर्ग किस संस्कृति का है और किस तरह उसके लिए शाश्वत मूल्य भी कोई मायने नहीं रखते. साथ हीं चूंकि समाज का निचला वर्ग उसी ऊपरी वर्ग की नक़ल करता है लिहाज़ा ऊपर क्या हो रहा है और इसका ख़तरा कहाँ तक बढ़ गया है.



उधर ब्रिटेन में पैदा हुआ लिहाज़ा वहीं की नागरिकता रखने वाला पीटर मुखर्जी व रातों-रात धनी हुआ संजीव खन्ना भी कई शादियाँ "बना" चुके हैं. ये शादियाँ करते नहीं बल्कि "बनाते हैं". इनकी शादियाँ "जन्म-जन्म" के रिश्ते वाले फॉर्मेट में नहीं थी बल्कि "जब तक पटा ठीक, नहीं तो अपने-अपने रास्ते" वाले पाश्चात्य फॉर्मेट में थीं. इस फॉर्मेट की अनौपचारिक (जो अब कुछ पश्चिमी वैल्यू सिस्टम से प्रभावित भारतीय बुद्धिजीवी निर्बाध उन्मुक्तता के नाम पर औपचारिक बनाने में लगे हैं) परिणति है -- "लिव-इन-रिलेशन". अपनी जिस बेटी शीना को माँ इन्द्रानी ने अपने नंबर २ "पति" के साथ मिलकर मारा वह इसी आधुनिक "लिव-इन" रिलेशनशिप की पैदाइश है. शीना का पिता अचानक एक दिन अवतरित होता है और चैनलों को बताता है कि इन्द्रानी किस तरह बच्चे को छोड़ किसी धनी "पति" की तलाश में निकल गयी. "लिव-इन" नाम की गैर-परम्परागत अनैतिक, अस्थाई और समाज को पतन के दिशा में ले जाने वाली पश्चिमी प्रैक्टिस को भारत में भी धीरे-धीरे सामाजिक अभिमति मिलने लगी है और यहाँ तक की सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाल के तमाम फैसलों में इसे मान्यता दे दी है. मूल रूप से भारत का कानून पहले वाले याने पारंपरिक विवाह के फॉर्मेट के प्रति बहुत सख्त है. हिन्दू रीति के मुताबिक "जन्म-जन्म" का रिश्ता अव्वल तो टूट हीं नहीं सकता फिर भी आज़ाद भारत में इसे कोई तोड़ना चाहे तो उसे तोड़ने के लिए अदालत में "तलाक" (हिंदी में इसके लिए कोई एक शब्द नहीं है समासन के जरिये हम "विवाह विच्छेद" गढ़ते हैं) की दुरूह प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस्लामिक रीति में भी इसकी ज़रुरत नहीं पड़ती. तीन बार कहा और हो गया. समस्या हिन्दू और ईसाई विवाह पद्यति की ज्यादा है. यही वज़ह है कि "लिव-इन-रिलेशन" विवाह के मामले में सभी धार्मिक रीतियों से ज्यादा "पोपुलर" हो रहा है. इसके तहत "मॉडर्न" महिला बच्चे पैदा कर सकती है और फिर अगर "मूड" बदला तो फिर किसी संपन्न खन्ना की तलाश में बच्चों को कुत्ते का जीवन व्यतीत करने के लिए सड़क पर (या हर महीने कुछ पैसे दे कर आर्थिक रूप से कमज़ोर रिश्तेदार के घर) छोड़ सकती है. बच्चे का "बैगेज" साथ नहीं होगा तो उम्र मेक-अप से छिपा सकते है किसी खन्ना को फंसाने के लिए. खन्ना भी जानता है कि मेक-उप उतरने की बाद का चेहरा कैसा है. लेकिन वह भी जितनी नई –नई महिलाओं से "शादी बनाता" है उतनी हीं उसकी मार्किट वैल्यू होती है.



खन्ना इन्द्रानी को शादी न करते हुए भी रखता है, फिर छोड़ता है , फिर दोनों "आवश्यकतानुसार" के एक -दूसरे के साथ आ जाते हैं. इन्द्रानी भी यही करती है. इन्द्रानी और खन्ना उस नयी संस्कृति की अभिव्यक्ति है जो पश्चिमी उदारवाद, व्यक्ति स्वातंत्र्य, नारी उन्मुक्ति के नाम पर भारत के समाज को न केवल घायल कर रहा है बल्कि उसके जख्मों में मवाद पैदा कर रहा है. वैश्विक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है कि माँ का अपनी कोख से पैदा बच्चे के प्रति ममत्व सबसे प्राकृतिक, प्रगाढ़ और अटूट होता है और उसके लिए माँ अपनी जान हंसते –हंसते दे देती है (अभी –कभी बेटा या बेटी भी) . इन्द्रानी भी अपनी बेटी शीना और बेटे मिखाइल की माँ है पर वह यह रिश्ता छिपाती है. छिपाने के लिए पैसे देती है और फिर जब उसे डर लगता है कि छिप नहीं पायेगा और ये औलादें संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं या ब्लैकमेल कर सकती हैं तो वह अपनी हीं संतान को अपने तीन में से एक पति के साथ मिल कर मार देती है. मिखाइल कहता है कि अगर उस दिन वह भी वहां होता तो उसकी माँ उसे भी मार देती याने बच्चे का बैगेज हमेशा के लिए "डंप" कर देती है.



शरीर संरचना की ईश्वरीय या भौतिक व्यवस्था है कि शारीरिक सम्बन्ध होगा तो बच्चे पैदा होंगे दाम्पत्य सम्बन्ध का फॉर्मेट चाहे कोई भी हो. लेकिन इसकी काट भी है. बच्चे न होने के उपादान हैं. लिहाज़ा अगर किसी को जिन्दागी भर खन्ना तलाशना है और दाम्पत्य-जीवन को फैशन डिज़ाइनर के साप्ताहिक रूप से बदले जाने वाले ड्रेस की तरह जीना है तो इन उपादानों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि न शीना पैदा होगी न मातृत्व की मजबूरियों के कारण शरीर शौष्ठव (फिगर) पर असर पडेगा.



आज प्रश्न यह है कि क्या किसी इन्द्रनी को या किसी खन्ना को यह अधिकार दिया जा सकता है कि शादी –दर शादी करता हुआ बच्चे पैदा करे और फिर उन्हें सडकों पर छोड़ दे और खुद दूसरी पार्टी में किसी इन्द्रानी पर डोरे डालता रहे या इन्द्रानी किसी और खन्ना या संपन्न पीटर की तलाश करती रहे.



पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो कर हमने कानून नहीं बनाये. आज दम्पत्ति में से कोई भी एक चाहे तो किसी अन्य व्यक्ति से शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है अगर दूसरे को ऐतराज नहीं है. याने इन्द्रानी भी स्वतंत्र और खन्ना भी. लेकिन जहाँ पाश्चात्य देशों में राज्य के अभिकरण इन संबंधों से पैदा बच्चे की हिफाज़त का ज़िम्मा लेता है लिहाज़ा कोई इन्द्रानी किसी खन्ना से मिलकर अपने हीं कोख से पैदा बच्चे को नहीं मारती.



शीना हत्या के मामले ने भारतीय समाज को झकझोर दिया है. क्या उन्मुक्तता का अर्थ यहाँ तक बदल जाएगा कि हम लिव-इन रिलेशन के तहत हम नाजायज बच्चे पैदा करते रहेंगे और बगैर कोई जिम्मेदारी लिए उन्हें कुत्ते-बिल्ली का जीवन जीने को मजबूर करते रहेंगे. भारत के जींस में यह नहीं है नहीं राज्य के पास इन्टने संसाधन हैं कि दलित घुरहू या बैकवर्ड पतावारू के जीवन को बेहतर बनाने का प्राण छोड़ कर किसी धनी ऐय्यास इन्द्रानी और खन्ना की नाजायज पैदाइस को झेले. लिहाज़ा कानून बनाने की ज़रुरत है कि बचे पैदा किया तो दूसरी शादी तब तक नहीं जब तक बच्चे को पढ़ाने का खर्च और १४ साल तक पूर्ण मातृत्व नहीं देते. अन्यथा भारतीय समाज कुछ वर्षों में नाजायज औलादों का बसेरा बन जाएगा जिसमें न शिक्षा होगी न नैतिकता और तब हम उस फिसलन की राह पर होंगे जहाँ से गर्त हीं दीखता है ठहराव नहीं.
 
lokmat

शीना हत्या केसः उन्मुक्तता के नाम पर ऐय्याशी-जनित 'लिव-इन' संबंधों को खत्म करें

 
 
 




तो अब डी एन ए टेस्ट से पता लगाया जाएगा कि किस बेटे-बेटी का बाप कौन है क्योंकि कन्फ्यूजन यह है कि किसी लिव-इन रिलेशन को भी धोखा देते हुए किस भावी लिव –इन पार्टनर के साथ "ट्रायल के दौरान" कोई संतान दुनिया में आयी यह माँ को भी नहीं पता है. लिहाज़ा वह क्यों अगले १८ साल के लिए ढोए यह जिम्मेदारी और अपना "करियर" खराब करे. उधर पहला और दूसरा लिव-इन पार्टनर अपने को मुक्त कर सकते हैं यह कहते हुए कि पहले पता करो कि "किसका है". लिहाज़ा अब डी एन ए से पता चलेगा बच्चा किस की जिम्मेदारी है. आज जेल में बंद इन्द्रानी पहले कई "शादियाँ" "बना" चुकी है. उसके पैत्रिक बंगले को देख कर हीं लगता है कि समाज के काफी ऊपर के वर्ग की रही है. उसके अनुसार उसके पिता ने उसकी माँ और उसे छोड़ दिया और उसके चाचा ने उसकी माँ को रखा और इन्द्रानी से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाये. पुलिस को दिए बयान में जो मीडिया ने बताया, की पुष्टि देश के एक बड़े पत्रकार वीर संघवी ने भी की. "इन्द्रानी ने मुझसे भी यह बात बताई थी", संघवी ने एक न्यूज चैनल को पिछले हफ्ते बताया. संघवी इन्द्रानी के पति के टीवी चैनल में सम्पादक रह चुके हैं. खैर, यहाँ मकसद किसी इन्द्रनी के खानदान का वंश-वृक्ष दिखाने का नहीं ही बल्कि यह बताने का है कि रोटी जीत चुका एक वर्ग किस संस्कृति का है और किस तरह उसके लिए शाश्वत मूल्य भी कोई मायने नहीं रखते. साथ हीं चूंकि समाज का निचला वर्ग उसी ऊपरी वर्ग की नक़ल करता है लिहाज़ा ऊपर क्या हो रहा है और इसका ख़तरा कहाँ तक बढ़ गया है.



उधर ब्रिटेन में पैदा हुआ लिहाज़ा वहीं की नागरिकता रखने वाला पीटर मुखर्जी व रातों-रात धनी हुआ संजीव खन्ना भी कई शादियाँ "बना" चुके हैं. ये शादियाँ करते नहीं बल्कि "बनाते हैं". इनकी शादियाँ "जन्म-जन्म" के रिश्ते वाले फॉर्मेट में नहीं थी बल्कि "जब तक पटा ठीक, नहीं तो अपने-अपने रास्ते" वाले पाश्चात्य फॉर्मेट में थीं. इस फॉर्मेट की अनौपचारिक (जो अब कुछ पश्चिमी वैल्यू सिस्टम से प्रभावित भारतीय बुद्धिजीवी निर्बाध उन्मुक्तता के नाम पर औपचारिक बनाने में लगे हैं) परिणति है -- "लिव-इन-रिलेशन". अपनी जिस बेटी शीना को माँ इन्द्रानी ने अपने नंबर २ "पति" के साथ मिलकर मारा वह इसी आधुनिक "लिव-इन" रिलेशनशिप की पैदाइश है. शीना का पिता अचानक एक दिन अवतरित होता है और चैनलों को बताता है कि इन्द्रानी किस तरह बच्चे को छोड़ किसी धनी "पति" की तलाश में निकल गयी. "लिव-इन" नाम की गैर-परम्परागत अनैतिक, अस्थाई और समाज को पतन के दिशा में ले जाने वाली पश्चिमी प्रैक्टिस को भारत में भी धीरे-धीरे सामाजिक अभिमति मिलने लगी है और यहाँ तक की सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाल के तमाम फैसलों में इसे मान्यता दे दी है. मूल रूप से भारत का कानून पहले वाले याने पारंपरिक विवाह के फॉर्मेट के प्रति बहुत सख्त है. हिन्दू रीति के मुताबिक "जन्म-जन्म" का रिश्ता अव्वल तो टूट हीं नहीं सकता फिर भी आज़ाद भारत में इसे कोई तोड़ना चाहे तो उसे तोड़ने के लिए अदालत में "तलाक" (हिंदी में इसके लिए कोई एक शब्द नहीं है समासन के जरिये हम "विवाह विच्छेद" गढ़ते हैं) की दुरूह प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस्लामिक रीति में भी इसकी ज़रुरत नहीं पड़ती. तीन बार कहा और हो गया. समस्या हिन्दू और ईसाई विवाह पद्यति की ज्यादा है. यही वज़ह है कि "लिव-इन-रिलेशन" विवाह के मामले में सभी धार्मिक रीतियों से ज्यादा "पोपुलर" हो रहा है. इसके तहत "मॉडर्न" महिला बच्चे पैदा कर सकती है और फिर अगर "मूड" बदला तो फिर किसी संपन्न खन्ना की तलाश में बच्चों को कुत्ते का जीवन व्यतीत करने के लिए सड़क पर (या हर महीने कुछ पैसे दे कर आर्थिक रूप से कमज़ोर रिश्तेदार के घर) छोड़ सकती है. बच्चे का "बैगेज" साथ नहीं होगा तो उम्र मेक-अप से छिपा सकते है किसी खन्ना को फंसाने के लिए. खन्ना भी जानता है कि मेक-उप उतरने की बाद का चेहरा कैसा है. लेकिन वह भी जितनी नई –नई महिलाओं से "शादी बनाता" है उतनी हीं उसकी मार्किट वैल्यू होती है.



खन्ना इन्द्रानी को शादी न करते हुए भी रखता है, फिर छोड़ता है , फिर दोनों "आवश्यकतानुसार" के एक -दूसरे के साथ आ जाते हैं. इन्द्रानी भी यही करती है. इन्द्रानी और खन्ना उस नयी संस्कृति की अभिव्यक्ति है जो पश्चिमी उदारवाद, व्यक्ति स्वातंत्र्य, नारी उन्मुक्ति के नाम पर भारत के समाज को न केवल घायल कर रहा है बल्कि उसके जख्मों में मवाद पैदा कर रहा है. वैश्विक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है कि माँ का अपनी कोख से पैदा बच्चे के प्रति ममत्व सबसे प्राकृतिक, प्रगाढ़ और अटूट होता है और उसके लिए माँ अपनी जान हंसते –हंसते दे देती है (अभी –कभी बेटा या बेटी भी) . इन्द्रानी भी अपनी बेटी शीना और बेटे मिखाइल की माँ है पर वह यह रिश्ता छिपाती है. छिपाने के लिए पैसे देती है और फिर जब उसे डर लगता है कि छिप नहीं पायेगा और ये औलादें संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं या ब्लैकमेल कर सकती हैं तो वह अपनी हीं संतान को अपने तीन में से एक पति के साथ मिल कर मार देती है. मिखाइल कहता है कि अगर उस दिन वह भी वहां होता तो उसकी माँ उसे भी मार देती याने बच्चे का बैगेज हमेशा के लिए "डंप" कर देती है.



शरीर संरचना की ईश्वरीय या भौतिक व्यवस्था है कि शारीरिक सम्बन्ध होगा तो बच्चे पैदा होंगे दाम्पत्य सम्बन्ध का फॉर्मेट चाहे कोई भी हो. लेकिन इसकी काट भी है. बच्चे न होने के उपादान हैं. लिहाज़ा अगर किसी को जिन्दागी भर खन्ना तलाशना है और दाम्पत्य-जीवन को फैशन डिज़ाइनर के साप्ताहिक रूप से बदले जाने वाले ड्रेस की तरह जीना है तो इन उपादानों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि न शीना पैदा होगी न मातृत्व की मजबूरियों के कारण शरीर शौष्ठव (फिगर) पर असर पडेगा.



आज प्रश्न यह है कि क्या किसी इन्द्रनी को या किसी खन्ना को यह अधिकार दिया जा सकता है कि शादी –दर शादी करता हुआ बच्चे पैदा करे और फिर उन्हें सडकों पर छोड़ दे और खुद दूसरी पार्टी में किसी इन्द्रानी पर डोरे डालता रहे या इन्द्रानी किसी और खन्ना या संपन्न पीटर की तलाश करती रहे.



पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो कर हमने कानून नहीं बनाये. आज दम्पत्ति में से कोई भी एक चाहे तो किसी अन्य व्यक्ति से शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है अगर दूसरे को ऐतराज नहीं है. याने इन्द्रानी भी स्वतंत्र और खन्ना भी. लेकिन जहाँ पाश्चात्य देशों में राज्य के अभिकरण इन संबंधों से पैदा बच्चे की हिफाज़त का ज़िम्मा लेता है लिहाज़ा कोई इन्द्रानी किसी खन्ना से मिलकर अपने हीं कोख से पैदा बच्चे को नहीं मारती.



शीना हत्या के मामले ने भारतीय समाज को झकझोर दिया है. क्या उन्मुक्तता का अर्थ यहाँ तक बदल जाएगा कि हम लिव-इन रिलेशन के तहत हम नाजायज बच्चे पैदा करते रहेंगे और बगैर कोई जिम्मेदारी लिए उन्हें कुत्ते-बिल्ली का जीवन जीने को मजबूर करते रहेंगे. भारत के जींस में यह नहीं है नहीं राज्य के पास इन्टने संसाधन हैं कि दलित घुरहू या बैकवर्ड पतावारू के जीवन को बेहतर बनाने का प्राण छोड़ कर किसी धनी ऐय्यास इन्द्रानी और खन्ना की नाजायज पैदाइस को झेले. लिहाज़ा कानून बनाने की ज़रुरत है कि बचे पैदा किया तो दूसरी शादी तब तक नहीं जब तक बच्चे को पढ़ाने का खर्च और १४ साल तक पूर्ण मातृत्व नहीं देते. अन्यथा भारतीय समाज कुछ वर्षों में नाजायज औलादों का बसेरा बन जाएगा जिसमें न शिक्षा होगी न नैतिकता और तब हम उस फिसलन की राह पर होंगे जहाँ से गर्त हीं दीखता है ठहराव नहीं.
 
lokmat

शीना हत्या केसः उन्मुक्तता के नाम पर ऐय्याशी-जनित 'लिव-इन' संबंधों को खत्म करें

 
 
 




तो अब डी एन ए टेस्ट से पता लगाया जाएगा कि किस बेटे-बेटी का बाप कौन है क्योंकि कन्फ्यूजन यह है कि किसी लिव-इन रिलेशन को भी धोखा देते हुए किस भावी लिव –इन पार्टनर के साथ "ट्रायल के दौरान" कोई संतान दुनिया में आयी यह माँ को भी नहीं पता है. लिहाज़ा वह क्यों अगले १८ साल के लिए ढोए यह जिम्मेदारी और अपना "करियर" खराब करे. उधर पहला और दूसरा लिव-इन पार्टनर अपने को मुक्त कर सकते हैं यह कहते हुए कि पहले पता करो कि "किसका है". लिहाज़ा अब डी एन ए से पता चलेगा बच्चा किस की जिम्मेदारी है. आज जेल में बंद इन्द्रानी पहले कई "शादियाँ" "बना" चुकी है. उसके पैत्रिक बंगले को देख कर हीं लगता है कि समाज के काफी ऊपर के वर्ग की रही है. उसके अनुसार उसके पिता ने उसकी माँ और उसे छोड़ दिया और उसके चाचा ने उसकी माँ को रखा और इन्द्रानी से भी शारीरिक सम्बन्ध बनाये. पुलिस को दिए बयान में जो मीडिया ने बताया, की पुष्टि देश के एक बड़े पत्रकार वीर संघवी ने भी की. "इन्द्रानी ने मुझसे भी यह बात बताई थी", संघवी ने एक न्यूज चैनल को पिछले हफ्ते बताया. संघवी इन्द्रानी के पति के टीवी चैनल में सम्पादक रह चुके हैं. खैर, यहाँ मकसद किसी इन्द्रनी के खानदान का वंश-वृक्ष दिखाने का नहीं ही बल्कि यह बताने का है कि रोटी जीत चुका एक वर्ग किस संस्कृति का है और किस तरह उसके लिए शाश्वत मूल्य भी कोई मायने नहीं रखते. साथ हीं चूंकि समाज का निचला वर्ग उसी ऊपरी वर्ग की नक़ल करता है लिहाज़ा ऊपर क्या हो रहा है और इसका ख़तरा कहाँ तक बढ़ गया है.



उधर ब्रिटेन में पैदा हुआ लिहाज़ा वहीं की नागरिकता रखने वाला पीटर मुखर्जी व रातों-रात धनी हुआ संजीव खन्ना भी कई शादियाँ "बना" चुके हैं. ये शादियाँ करते नहीं बल्कि "बनाते हैं". इनकी शादियाँ "जन्म-जन्म" के रिश्ते वाले फॉर्मेट में नहीं थी बल्कि "जब तक पटा ठीक, नहीं तो अपने-अपने रास्ते" वाले पाश्चात्य फॉर्मेट में थीं. इस फॉर्मेट की अनौपचारिक (जो अब कुछ पश्चिमी वैल्यू सिस्टम से प्रभावित भारतीय बुद्धिजीवी निर्बाध उन्मुक्तता के नाम पर औपचारिक बनाने में लगे हैं) परिणति है -- "लिव-इन-रिलेशन". अपनी जिस बेटी शीना को माँ इन्द्रानी ने अपने नंबर २ "पति" के साथ मिलकर मारा वह इसी आधुनिक "लिव-इन" रिलेशनशिप की पैदाइश है. शीना का पिता अचानक एक दिन अवतरित होता है और चैनलों को बताता है कि इन्द्रानी किस तरह बच्चे को छोड़ किसी धनी "पति" की तलाश में निकल गयी. "लिव-इन" नाम की गैर-परम्परागत अनैतिक, अस्थाई और समाज को पतन के दिशा में ले जाने वाली पश्चिमी प्रैक्टिस को भारत में भी धीरे-धीरे सामाजिक अभिमति मिलने लगी है और यहाँ तक की सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाल के तमाम फैसलों में इसे मान्यता दे दी है. मूल रूप से भारत का कानून पहले वाले याने पारंपरिक विवाह के फॉर्मेट के प्रति बहुत सख्त है. हिन्दू रीति के मुताबिक "जन्म-जन्म" का रिश्ता अव्वल तो टूट हीं नहीं सकता फिर भी आज़ाद भारत में इसे कोई तोड़ना चाहे तो उसे तोड़ने के लिए अदालत में "तलाक" (हिंदी में इसके लिए कोई एक शब्द नहीं है समासन के जरिये हम "विवाह विच्छेद" गढ़ते हैं) की दुरूह प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस्लामिक रीति में भी इसकी ज़रुरत नहीं पड़ती. तीन बार कहा और हो गया. समस्या हिन्दू और ईसाई विवाह पद्यति की ज्यादा है. यही वज़ह है कि "लिव-इन-रिलेशन" विवाह के मामले में सभी धार्मिक रीतियों से ज्यादा "पोपुलर" हो रहा है. इसके तहत "मॉडर्न" महिला बच्चे पैदा कर सकती है और फिर अगर "मूड" बदला तो फिर किसी संपन्न खन्ना की तलाश में बच्चों को कुत्ते का जीवन व्यतीत करने के लिए सड़क पर (या हर महीने कुछ पैसे दे कर आर्थिक रूप से कमज़ोर रिश्तेदार के घर) छोड़ सकती है. बच्चे का "बैगेज" साथ नहीं होगा तो उम्र मेक-अप से छिपा सकते है किसी खन्ना को फंसाने के लिए. खन्ना भी जानता है कि मेक-उप उतरने की बाद का चेहरा कैसा है. लेकिन वह भी जितनी नई –नई महिलाओं से "शादी बनाता" है उतनी हीं उसकी मार्किट वैल्यू होती है.



खन्ना इन्द्रानी को शादी न करते हुए भी रखता है, फिर छोड़ता है , फिर दोनों "आवश्यकतानुसार" के एक -दूसरे के साथ आ जाते हैं. इन्द्रानी भी यही करती है. इन्द्रानी और खन्ना उस नयी संस्कृति की अभिव्यक्ति है जो पश्चिमी उदारवाद, व्यक्ति स्वातंत्र्य, नारी उन्मुक्ति के नाम पर भारत के समाज को न केवल घायल कर रहा है बल्कि उसके जख्मों में मवाद पैदा कर रहा है. वैश्विक समाजशास्त्रीय सिद्धांत है कि माँ का अपनी कोख से पैदा बच्चे के प्रति ममत्व सबसे प्राकृतिक, प्रगाढ़ और अटूट होता है और उसके लिए माँ अपनी जान हंसते –हंसते दे देती है (अभी –कभी बेटा या बेटी भी) . इन्द्रानी भी अपनी बेटी शीना और बेटे मिखाइल की माँ है पर वह यह रिश्ता छिपाती है. छिपाने के लिए पैसे देती है और फिर जब उसे डर लगता है कि छिप नहीं पायेगा और ये औलादें संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं या ब्लैकमेल कर सकती हैं तो वह अपनी हीं संतान को अपने तीन में से एक पति के साथ मिल कर मार देती है. मिखाइल कहता है कि अगर उस दिन वह भी वहां होता तो उसकी माँ उसे भी मार देती याने बच्चे का बैगेज हमेशा के लिए "डंप" कर देती है.



शरीर संरचना की ईश्वरीय या भौतिक व्यवस्था है कि शारीरिक सम्बन्ध होगा तो बच्चे पैदा होंगे दाम्पत्य सम्बन्ध का फॉर्मेट चाहे कोई भी हो. लेकिन इसकी काट भी है. बच्चे न होने के उपादान हैं. लिहाज़ा अगर किसी को जिन्दागी भर खन्ना तलाशना है और दाम्पत्य-जीवन को फैशन डिज़ाइनर के साप्ताहिक रूप से बदले जाने वाले ड्रेस की तरह जीना है तो इन उपादानों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि न शीना पैदा होगी न मातृत्व की मजबूरियों के कारण शरीर शौष्ठव (फिगर) पर असर पडेगा.



आज प्रश्न यह है कि क्या किसी इन्द्रनी को या किसी खन्ना को यह अधिकार दिया जा सकता है कि शादी –दर शादी करता हुआ बच्चे पैदा करे और फिर उन्हें सडकों पर छोड़ दे और खुद दूसरी पार्टी में किसी इन्द्रानी पर डोरे डालता रहे या इन्द्रानी किसी और खन्ना या संपन्न पीटर की तलाश करती रहे.



पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो कर हमने कानून नहीं बनाये. आज दम्पत्ति में से कोई भी एक चाहे तो किसी अन्य व्यक्ति से शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है अगर दूसरे को ऐतराज नहीं है. याने इन्द्रानी भी स्वतंत्र और खन्ना भी. लेकिन जहाँ पाश्चात्य देशों में राज्य के अभिकरण इन संबंधों से पैदा बच्चे की हिफाज़त का ज़िम्मा लेता है लिहाज़ा कोई इन्द्रानी किसी खन्ना से मिलकर अपने हीं कोख से पैदा बच्चे को नहीं मारती.



शीना हत्या के मामले ने भारतीय समाज को झकझोर दिया है. क्या उन्मुक्तता का अर्थ यहाँ तक बदल जाएगा कि हम लिव-इन रिलेशन के तहत हम नाजायज बच्चे पैदा करते रहेंगे और बगैर कोई जिम्मेदारी लिए उन्हें कुत्ते-बिल्ली का जीवन जीने को मजबूर करते रहेंगे. भारत के जींस में यह नहीं है नहीं राज्य के पास इन्टने संसाधन हैं कि दलित घुरहू या बैकवर्ड पतावारू के जीवन को बेहतर बनाने का प्राण छोड़ कर किसी धनी ऐय्यास इन्द्रानी और खन्ना की नाजायज पैदाइस को झेले. लिहाज़ा कानून बनाने की ज़रुरत है कि बचे पैदा किया तो दूसरी शादी तब तक नहीं जब तक बच्चे को पढ़ाने का खर्च और १४ साल तक पूर्ण मातृत्व नहीं देते. अन्यथा भारतीय समाज कुछ वर्षों में नाजायज औलादों का बसेरा बन जाएगा जिसमें न शिक्षा होगी न नैतिकता और तब हम उस फिसलन की राह पर होंगे जहाँ से गर्त हीं दीखता है ठहराव नहीं.
 
lokmat