Wednesday 26 August 2020

भ्रष्टाचार की फितरत से ईश्वर भी हारा


बिहार में सत्ता के दावे, हकीकत और भोली जनता 

जिस दिन (विगत सोमवार को) बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रदेश की जनता को बता रहे थे कि “वे (याने विरोधी) लाख निंदा करते रहें, हम जनता की सेवा करते रहेंगें” उसी दिन पता चला कि राज्य में एक ६५-वर्षीय  महिला ने पिछले १८ माह में १३ बच्चों को जन्म दिया है जबकि उसी गाँव की ५९-वर्षीय शीला देवी ने १३ माह में आठ बच्चों को और उनमें दो बच्चे ४८ घंटे के अंतराल पर. उस गाँव की १७ और महिलाएं हैं जिन्होंने सरकारी रिकॉर्ड में हाल हीं बच्चे जने हैं हालांकि वे कह रही हैं कि बढ़ती उम्र में उनके गर्भवती होने की संभावना वर्षों पहले ख़त्म हो चुकी है. 
बिहार में होने वाले ऐसे चमत्कार ईश्वर को भी सकते में डाल देते होंगें लेकिन सत्ता में बैठे लोग इससे बिलकुल परेशान नहीं है. १५-साल से इन्हीं जनता के वोटों से शासन कर रहे नीतीश कुमार इन परा-दैवीय घटनाओं (?) को तरजीह देने की जगह बताते हैं कि “वह प्रदेश के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं”. यह जुमला पिछले डेढ़ दशक से हर चुनाव में बोल कर वह जनता को गैर-ईश्वरीय क्षमता से “सम्मोहित” करते रहे हैं. आपको याद होगा पिछले चुनाव का “बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है” का नारा. यह मुख्यमंत्री की परा-ईश्वरीय शक्ति हीं तो है जो बाढ़ में डूबती जनता को भी बहार दिखा देती है. फिर जनता मुतास्सिर क्यों न हो !
बिहार के इस “नीतीशीय” (नीति या कानून का ईश्वर) शासन में इस तरह के परा-दैवीय काम करने की पुरानी और लम्बी फेहरिश्त है. कुछ साल पहले इस मुख्यमंत्री के अपने जिले में एक गांव के १९५ लोगों का ऑपरेशन करके “गर्भाशय” निकाला गया था. जब जांच हुई तो पता चला कि वे सब पुरुष हैं और ईश्वर ने पुरुषों को गर्भाशय नहीं दिया है.
तीसरा केस पिछले साल का है जिसमें एक व्यक्ति पिछले ३० साल से राज्य के तीन सरकारी विभागों में एक साथ नौकरी कर रहा था, प्रमोशन ले रहा था और उसके रिटायरमेंट में मात्र एक साल बचा था. यहाँ तक कि इस व्यक्ति की पोस्टिंग कई बार ऐसे जिलों में हुई जिनके बीच की दूरी २०० किलोमीटर की भी रही. ईश्वर ने मानव में वह सलाहियत अता नहीं की है कि वह एक हीं दिन में तीन अलग-अलग जगहों पर दिन भर न केवल दिखाई दे बल्कि काम भी करे. केवल ईश्वर को हीं अभी तक सर्व-व्यापी कहा जाता था. 
अभी दो हफ्ते पहले छपरा-सतजोरा पुल का उद्घाटन होने के एक दिन पहले हीं एप्रोच रोड का नया पुल बह गया लेकिन मुख्यमंत्री ने इससे बगैर विचलित हुए पुल का शुभारम्भ किया और कहा “विकास के बारे में जनता को बताना केवल हमारा हीं काम थोड़े न हैं, सभी विभागों को बताना चाहिए”. और जाहिर है सड़क बनाने वाले पथ-निर्माण विभाग सहित अनेक विभाग भी इस “पुनीत” कार्य में लग गये. उन्हें भी समझ में आ गया कि जनता के पैसे से बने नए पुल के ढहने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है यह बताना कि पुल बन गया और इससे प्रदेश का विकास कितना जल्द होगा. यही वजह है कि मुख्यमंत्री अपने सभी चुनावी भाषणों में कह रहे हैं कि अबकि बार जनता ने मौका दिया तो “सिंचाई” की व्यापक सुविधा से किसानों को नवाजा जाएगा, गोया सिंचाई की समस्या कोई ताज़ा समस्या है जिसका इल्हाम अभी-अभी सरकार को हुआ है. 
कहना न होगा कि बूढ़ी महिलाओं के बच्चे पैदा करने वाले भ्रष्टाचार में इनके नाम फर्जी अकाउंट खोल कर गर्भावस्था में मिलने वाली आर्थिक राशि को सरकारी कर्मचारियों का गैंग हर जिले में हड़प रहा है. यह राज तब खुला जब ब्लाक की एक निम्न –स्तर की कार्यकर्ता ने शांति देवी से कहा कि ब्लाक आ कर कुछ कागजात पर दस्तखत कर दे. शांति देवी ने ब्लाक कार्यालय में जा कर देखा कि उनके नाम बैंक-खाता भी खुला है जिसका उसे या सभी अन्य १८ महिलाओं को  पता भी नहीं है. कुछ ऐसा हीं गर्भाशय निकालने वाले मामलों में हुआ और नर्सिंग होम, बीमा कंपनी और सरकारी कर्मचारियों के गैंग ने यह भी नहीं देखा कि जिनका नाम लिखा जा रहा है वे पुरुष हैं या महिला. कम से कम से मुजफ्फरपुर वाले मामले में जिनके नाम पर बच्चे “पैदा” किये गए थे वे सब महिलाएं तो थीं. शायद भ्रष्टाचार करने में इसी गुणात्मक परिवर्तन को मुख्यमंत्री “बहार हीं बहार” है या “विकास” का नाम दे रहे हैं. तीसरे मामले में सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति सहिष्णुता, आपराधिक उदासीनता और सिस्टेमिक असफलता दिखाई देती है कि एक हीं व्यक्ति तीन विभागों में ३० साल तक नौकरी करता रहा, प्रोन्नति के साथ. 
ताज़ा मामले में गहराई से देखें तो पता चलता है फर्जी बच्चे पैदा करने का सीधा मतलब राज्य की जनसँख्या दर का बढना याने ऐसे लोगों का दुनिया में आना जिनका अस्तित्व हीं नहीं है. ध्यान रखें कि बिहार में जनसँख्या वृद्धि दर देश में सबसे ज्यादा २.५१ फीसदी है. 
हर राज्य में भ्रष्टाचार है लेकिन बिहार में भ्रष्टाचारी को लाभार्थियों का अकाउंट खोलने या फर्जी लाभार्थियों को अस्तित्व में लाने या फर्जी बच्चे पैदा करने में हाँथ नहीं कांपते क्योंकि पकड़े जाने पर उसके पास दो विकल्प होते हैं. पहला: मुख्य गवाहों को गोली मारने की धमकी दे कर या जरूरत के मुताबिक गोली मार कर केस ख़त्म करने का या पैसे के बल पर जांच करने वालों और गवाहों को अपनी तरफ कर लेने का. यही वजह है कि इस राज्य में अपराध में सज़ा की दर देश में सबसे कम ८.९ प्रतिशत है—भ्रष्टाचार के मामले में तो और भी कम, जबकि केरल में ९१ प्रतिशत. लगभग शून्य-प्रशासनिक भ्रष्टाचार और तज्जनित बेहतरीन मानव-विकास सूचकांक के बावजूद दक्षिण भारत के इस राज्य में “केरल में बहार है” नारा चुनाव में कभी नहीं रहा और लगभग हर चुनाव में नया दल मौका पाता है लिहाज़ा उसे डर रहता है जनता की बौद्धिक समझ का.