Friday 29 December 2017

बर्बर, आदिम पड़ोसी से छुटकारा कैसे !


हमारे पडोसी पाकिस्तान में विकास अंतिम सांसे ले रहा है, मोबाइल के लिए क़त्ल हो जाता है बेटियां पढ़ती नहीं हैं. लाहौर तहरीक--तालिबान--पाकिस्तान के प्रभाव से दूर है तो क्या हुआ? दो साल पहले इस खूंखार संगठन ने ऐलान किया कि उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान की तरह यहाँ भी लड़कियां अगर स्कूल गयी तो स्कूल बम से उड़ा दिया जाएगा. न मानने पर एक स्कूल बम से उड़ा दिया गया. सरकार मूकदर्शक बनी रही. लिहाज़ा लोगों ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया था. पूरे देश में मानव विकास के हर पैरामीटर उठ हीं नहीं पा रहे हैं और बस एक हीं भाव है कट्टर इस्लाम के वर्चस्व का. चूंकि आधुनिक शिक्षा के अभाव में सामूहिक चेतना बेहद अतार्किक है लिहाज़ा युवा जिहाद को अपने वजूद की अंतिम परिणति मानता है. पाकिस्तान के इस जडवत समाज में हम आधुनिक मानवीय मूल्यों की अपेक्षा करें तो झटका लगेगा हीं.
लिहाज़ा पाकिस्तानी हुक्मरान ने जिस तथाकथित “मानवता के मानदंडों को मानते हुए” अपने यहाँ जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की उसके परिवार से मुलाक़ात करवाई उसमें कुलभूषण कांच की दीवार के इस पार था और परिवार (मां और पत्नी) उस पार. उनसे कहा गया कि वे अपनी भाषा (मराठी) में नहीं बल्कि अंग्रेजी या हिंदी में बात करें. जाहिर है अगर कुरआन शरीफ के किसी पाकिस्तानी विद्वान को भी कहा जाये कि अल्लाह के बारे में जर्मन भाषा में बताओ तो वह नहीं बता सकता. लिहाज़ा कोई संवाद हो हीं नहीं पाया. उतने भावनात्मक क्षण में जिसमें पत्थर भी पसीज जाये, पाकिस्तानी अधिकारियों का रवैया पशुवत था. उस मानसिकता को देखें कि शीशे की दीवार के उस पार से टेलीफोन के ज़रिये अंग्रेज़ी की बाध्यता के साथ आतंक के माहौल में न तो मां -बेटे में कोई बात हुई न पति -पत्नी में. मुलाक़ात के पहले दोनों की चूड़ियाँ, माथे की बिंदी व मंगलसूत्र निकाल लिए गये, कपडे बदल दिए गए और जूते वापस हीं नहीं किये गए. जाहिर है पूरा भारत इस रवैये से स्तब्ध है. देश के विदेश मंत्रालय ने न केवल तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है बल्कि उसे यह भी शक है कि पाकिस्तानी सरकार जूते में कुछ रख कर यह आरोप लगा सकती है कि भारत के खुफिया एजेंसी ने ट्रांसमीटर या कैमरा फिट किया था इसलिए जूते वापस नहीं किये गए. बहरहाल अगले दिन भारत के आक्रोश का जवाब देते हुए पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने कहा “हमने यह सब इसलिए किया क्योंकि हमें शक था भारतीय एजेंसियां कुछ मशीने शरीर के वस्त्र या जूते में रखवा सकती हैं”. स्पष्ट है यह तर्क कितना लचर था विश्व समुदाय के लिए. मशीन केवल आवाज रिकॉर्ड कर सकती थी और कुलभूषण की असली शक्ल का फोटो खींचा जा सकता था. पाकिस्तान को क्या इसका डर था ? क्या कुलभूषण के शक्ल को बिगाड़ा गया है? क्या उसे इतना मारा-पीटा गया है जिससे पाकिस्तानी सरकार उजागर नहीं होने देना चाहती ? भारतीय विदेश मंत्रालय का मानना है कि कुलभूषण का निचला हिस्सा इसलिए मुलाकात के दौरान नहीं दिखाया गया क्योंकि नीचे का अंग मार के कारण लकवाग्रस्त हो गया होगा.

पाकिस्तान हमारे उस पड़ोसी की तरह है जो रोज़ शराब पी कर अपने बच्चों को और पत्नी को पीटता है , गाली -गलौच करता है, उन्हें खाना नहीं देता, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति आपराधिक उदासीनता दीखता है लेकिन न तो उसकी पत्नी कुछ बोलती है ना हीं बच्चे क्योंकि वे कहाँ जाएँ ? कोई कानून इस समस्या को हल नहीं कर सकता जब तक परिवार के सदस्य इसके खिलाफ खुद न खड़े हों. सिद्धांत हैं किसी के व्यक्तिगत मामले में बाहरी दखल न देने की.
कुल मिलकर पाकिस्तान को इससे मिला क्या? क्या विश्व यह मान लेगा कि पाकिस्तान का व्यवहार मानवीय है तब जब कि मां-बेटे को शीशे की दीवार के उस पार से मिलवाया गया. किस बात का डर था अगर मां-बाप गले मिलते तो? क्या यह कि वह रो-रो कर बताता कि पाकिस्तानियों ने उसके हर अंग को तोड़ दिया है और मानसिक प्रताड़ना की सभी हदें पार करते हुए उसे अवचेतना की स्थिति में पहुंचा दिया है. जाहिर है कुलभूषण का मूंह सूजा था, वह सामान्य मानसिक अवस्था में नहीं लग रहा था. परिवार से मिलने का हर्ष व उत्साह कहीं भी उसके चेहरे पर नहीं झलक रहा था. वह जडवत दीख रहा था. उसने यंत्रवत वही बोला जो उसे पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा सिखाया गया था, शायद इस डर के साथ की जाने के बाद फिर उसे वही यंत्रणा झेलनी पड़ेगी.
क्या पूरी दुनिया यह सब कुछ समझ नहीं सकेगी? फिर पाकिस्तान को हासिल क्या हुआ? अगर दुनिया को रंगा-पुता कर अपना मानवीय चेहरा (जो भयावह है) दिखाना चाहता था तो वह खूंखार रूप से प्रगट हुआ. अगर भारत से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए यह किया था तो वह उल्टा पडा और अगर अंतरराष्ट्रीय नियमों व तज्जनित दबावों के चलते किया था तो कुलभूषण के साथ की उसकी अमानवीय यातना का खाका दुनिया से छिपा नहीं रह गया. अगर भारत को चिढाने के लिए यह सब कुछ किया तो इसका प्रतिकार हमें वहां के अधिक से अधिकबीमारों का इलाज़ करके देना होगा. पिछले ३ जुलाई को पाकिस्तान मेडिकल एसोसिएशन ने भारत के इस रवैये की तारीफ की भारत का इस्लामाबाद स्थित उच्चायोग अपने वीसा नियमों को लचीला बनाते हुए बीमारों को वीसा दे रहा है. एसोसिएशन ने प्रेस नोट जारी करके बताया कि भारत में इलाज़ बेहतर और अन्य देशों के मुकाबले सस्ता है और पिछली साल पाकिस्तान के ५०० बच्चों सहित कुल दो हज़ार लोगों का भारत में इलाज हुआ.
उधर चेतना के स्तर पर आज भी सदियों पीछे रहे इस देश की स्थिति यह है कि इस देश के लोगों में इस जड़ता से निकलने की चाह भी ख़त्म हो गयी है बल्कि आधुनिक सभ्यता के मानदंडों से इसे भय लगता है. कुछ बानगी देखें. इस देश के उत्तर -पश्चिम क्षेत्र को फाटा के नाम से जाना जाता है जो कहने को तो पाकिस्तान में है परन्तु सारा प्रशासन अप्रत्यक्षरूप से इस्लामिक आतंकवादियों के संगठन तहरीक--तालिबान द्वारा चलाया जाता है. इसने एक फरमान जारे किया कि क्षेत्र की लड़कियां केवल घर में हीं रह कर पढ़ेंगी और वह भी मात्र कुरआन. दूसरा फरमान था कोई मर्द डॉक्टर किसी भी बीमार औरतों को हाथ नहीं लगाएगा और दूर से हीं इलाज करेगा. जाहिर है पढ़ेंगी नहीं तो औरतें डॉक्टर नहीं बनेगीं और पुरुष उन्हें छू भी नहीं पायेगा . हजारों औरतें सर्जरी के अभाव में या बच्चा पैदा होने के दौरान मर रहीं है. इन सबके बावजूद पाकिस्तान सरकार ने इस जून माह में वहां प्रचालन में रहे “रिवायती कानून” याने आतंकी मुल्लाओं के फैसले की प्रक्रिया को मान्यता दे दी और देश का सुप्रीम कोर्ट भी कट्टरपंथी मुल्लाओं की संस्था “जिरगा” के फैसले को नहीं बदल सकता.


lokmat