हम भारतीय आदतन उत्सव-धर्मी हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह बात जानते हैं. लिहाज़ा वह हर काम जो मोदी की जानिब से होता है वह उत्सव का स्वरुप ले लेता है. “स्वच्छ भारत अभियान” , “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” , “विदेश यात्रा”, “राष्ट्रवाद” “ओबामा का भारत आना” और ताज़ा “एन एस जी की सदस्यता” आदि कुछ उदाहरण हैं. ऐसा नहीं कि विकास के काम कुछ कम हुए हैं. नयी “फसल बीमा योजना”, “मृदा परीक्षण”, “यूरिया पर नीम की परत” “गरीबों का बैंक खाता” ये कुछ सार्थक प्रयास हैं लेकिन शायद भारतीय जनता पार्टी के स्वभाव में हीं “भावनात्मक अतिरेक से अपने औचित्य को सही ठहराना” है नतीजतन जिन योजनाओं को जन –अभियान बनाना चाहिए वह हाशिये पर रहे. और यह आभास दिया जाने लगा कि मोदी जी की हर विदेश यात्रा सिकंदर की तरह “विश्व विजय अभियान” है.
यहाँ अगर हम ओबामा से “दोस्ती” , “अमरीका की भारत के पक्ष में पैरोकारी” , मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम (एम् टी सी आर) की सदस्यता को मोदी डोक्ट्रिन की सफलता माने तो चीन सहित एक नहीं दस-दस देशों द्वारा भारत का एन एस जी की सदस्यता के खिलाफ खड़ा होना क्या विफलता नहीं कही जायेगी ? इनमें वे भी देश थे जिन्होंने ने हाल में “मोदी विश्व फहत” अभियान में एन एस जी की सदस्यता पर समर्थन का स्वयं मोदी को आश्वासन दिया था.
हर राजनीतिक दल का राजनीति करने का अपना तरीका होता है. शायद कांग्रेस की अपनी रणनीति में अपने सफल प्रयासों को उत्सव में बदलने की कला नहीं रही. इसके दो उदाहरण लें. सन २००८ में अमेरिका का १२३ समझौता और एन एस जी का भारत के लिए “वेवर” जिसके तहत वह तमाम सदस्य देशों से यूरेनियम खरीद सकता हो, अपने आप में ऐतिहासिक उपलब्धि थी. वही चीन था और वही भारत था जिसने परमाणु प्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया था लेकिन हम सफल रहे. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए -१ की सरकार को संसद में लगभग हार की कगार पर खड़ा होने की स्थिति आ गयी थी. दूसरा उदाहरण है १९६६-६७ का. देश हीं नहीं दुनिया के इतिहास में शायद पहली बार प्रमुख अनाज -गेहूँ -- का उत्पादन एक साल के भीतर डेढ़ हुना गुआ था याने १२ मिलियन टन से १७ मिलियन टन. लेकिन किसी को पता भी नहीं चला कि हरित क्रांति ने किसानों का कितना बड़ा हित किया. उस साल याने १९६७ में कांग्रेस १० राज्यों में चुनाव हार गयी. आज भारत की कुल अनाज पैदावार २६५ मिलियन टन है और इन ५० सालों के दौरान कांग्रेस ४० साल शासन में रही. लेकिन आभास यह रहा कि पार्टी ने देश के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया. और देश रसातल में पहुँच गया. आज सन्देश यह जा रहा है कि सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी हीं देश को बचा सकते हैं.
अब जरा गौर करें एन एस जी की सदस्यता के मुद्दे पर. अमेरिका में मोदी और ओबामा के संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि भारत उस देश से छः परमाणु रिएक्टर खरीदेगा. कंपनी का नाम है –वेस्टिंगहाउस और टेक्नोलॉजी डिज़ाइन का नाम ए पी-१०००. यह टेक्नोलॉजी अभी पूरी तरह मान्यता नहीं हासिल कर पाई है. अमेरिका की हीं कई राज्यों के अभिकरणों ने --- फ्लोरिडा पॉवर एंड लाइट तथा टेनेसी घाटी प्राधिकरण -- इसके साथ हुए सौदे रद्द कर दिए हैं या रियेक्टरों की संख्या घटा दी है. इन अभिकरणों को जिस दर पर ये रियेक्टर सप्लाई किये गए हैं अगर उसी दर पर भारत को भी किया जाएगा तो इसकी स्थापना कीमत ७० करोड़ प्रति मेगा वाट होगी जो भारत में अब तक उपलब्ध दर से सात गुनी ज्यादा होगी. लिहाज़ा इस दर पर प्रारंभिक स्तर पर बिजली २५ रुपये प्रति यूनिट पड़ेगी. क्या देश इस स्थिति में है कि इतनी लगत पर रियेक्टर लगाये और इतनी महंगी बिजली ले? क्या इसके लिए वैश्विक टेंडर अपेक्षित नहीं था और क्या खरीदने के प्रस्ताव के पहले हर पहलू की जांच कर ली गयी थी?
जब प्रधानमंत्री हाल की अमरीका यात्रा (अभियान?) पर थे तो अचानक देश के अख़बारों और टी वी चैनलों पर खबर आयी एक “बड़े फतह” की. भारत “मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम” (एम् टी सी आर) का सदस्य बन गया. देश का शायद हीं कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति और देश के अधिकांश पत्रकार इसके बारे में पहले से जानते थे लेकिन जैसे हीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत से मोदी की विदेश यात्रा को कवर करने गए रिपोर्टरों को इसे “ऐतिहासिक सफलता” के रूप में बताया तो लगा जैसे मोदी डोक्ट्रिन का भूचाल आ गया. देश में इस “सफलता” का उत्सव शुरू हो गया. इसमें कोई दो राय नहीं कि इसकी सदस्यता मिलने से हमें वैश्विक मिसाइल टेक्नोलॉजी तक पहुँच मिली और यह एक कूटनीतिक उपलब्धि है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि २.३ ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर हर देश पलक पावडे बिछाए बैठा है क्योंकि हम बड़े आयातक है. अमेरिका से दोस्ती इसलिए भी है कि हम लगभग चार लाख करोड़ रुपये के रियेक्टर खरीद रहे हैं. रक्षा उपकरणों की खरीद अलग.
शायद हर कदम को राष्ट्रव्यापी उत्सव में बदलने की मोदी के रणनीतिकारों की आदत ने एन एस जी को लेकर होमवर्क नहीं किया था. दरअसल अगर किया होता तो जान जाते कि सदस्यता के लिए जितनी राजनीतिक पूंजी खर्च की गयी है वह बेमानी थी और रंचमात्र भी लाभ नहीं था. इन रणनीतिकारों को एन एस जी की गाइडलाइन्स में सन २०११ में पैरा ६ और ७ में किये गए संशोधन को पढ़ लेना चाहिए था. ये पैरा किसी भी सदस्य देश को किसी भी ऐसे सदस्य देश को जो परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न किया हो, संवर्धित यूरेनियम और री-प्रोसेसिंग सम्बंधित टेक्नोलॉजी नहीं देंगे. लिहाज़ा अगर भारत सदस्य बन भी जाता है तो उसे यह लाभ नहीं मिलेगा और अगर इसमें संशोधन करना भी हो तो चीन नहीं होने देगा. लिहाज़ा यह पूरा प्रयास “बाँझ सफलता” के अलावा कुछ नहीं था.
दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों का एक वर्ग है जो आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से पुष्पित –पल्लवित होता है. मोदी सरकार के किसी प्रयास पर यह बौद्धिक पालिश चढाता है. इस दौरान यह बताया जाने लगा कि नेहरु ने अगर अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी की परमाणु रियेक्टर देने की पेशकश स्वीकार कर ली होती तो न तो चीन १९६२ में हमला करने की जुर्रत करता न पाकिस्तान १९६५ में, ना हीं आज एन एस जी की सदस्यता के हम मोहताज़ होते. वे शायद भूल रहे हैं कि तब कश्मीर भी हाथ से लिकल गया होता क्योंकि सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ हमारे पक्ष में खड़ा न होता. वे यह भी भूल रहे है कि विश्व शांति में नेहरु का क्या योगदान रहा. उन्हें तात्कालिक परिस्थिति का भान होता तो जानते कि पर्यावरण उस समय मुद्दा नहीं था और बिजली पैदा करने के लिए हमारे पास कोयले का विशाल भंडार था जिससे कम लागत और कम पूंजी निवेश में हम बिजली की दिक्कत दूर कर सकते थे. उस समय हमारी हैसियत अनाज के लिए कटोरा लेकर घूमने वाली थी, परमाणु रियेक्टर लगाने की नहीं ?
lokmat
Ultimate, ultimate and ultimate sr.
ReplyDeleteno words for this article.. i gain lots of knowledge and facts.. hope it will improve my perspective and knowledge whill writing and reading about some issue. thanku sr once again, Pranam.
Ultimate Sir
ReplyDeleteYou bring truth
http://ehindisahitya.blogspot.in/2016/06/blog-post.html?m=1
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWell said, facts given by u r true but in most of the fields we r undeveloped.we shall have taken help from other countrieslike america,israel,france---------now a days we got a govt.who is doing sth right.so we should help him not criticize;
ReplyDelete