अजीब व्यवस्था है जिसमें कोई गायत्री प्रजापति या कोई राममूर्ति वर्मा अवैध खनन के आरोप के बावजूद
हमारा रहनुमा बना रहता है पर इनके गैर-कानूनी हरकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाला आई
आई टी से पढ़ा भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी अमिताभ ठाकुर बलात्कार का आरोप झेलता
इस बात पर निलंबित हो जाता है कि राज्य छोड़ने के लिए राज्य के पुलिस प्रमुख से
इजाजत नहीं ली थी. उत्तर प्रदेश के समाजवादी शासन में लगभग हर दूसरे मंत्री पर
हत्या से लेकर बलात्कार, भ्रष्टाचार या अवैध खनन के मुकदमें हैं. पर यादव सिंह
फलता –फूलता है और दुर्गा शक्ति नागपाल या अमिताभ ठाकुर सजा के हकदार होते हैं.
हमने एक संविधान बनाया था. जिसके तहत “एक
सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य .....
आत्मार्पित किया” था. अपने लगभग ३८ साल की पत्रकारिता के प्रथम १४ सालों तक मुलायम
सिंह यादव को एक जिद्द की हद तक नैतिक और जुझारू समाजवादी नेता के रूप में देखा
था. लेकिन बाद के २४ सालों में देखने की बाद आज समझ में नहीं आ रहा है कि समाजवाद
के मूल सिद्धांत बदल गए या हमारी समझ दकियानूसी हो गयी और हमने प्रजापतियों, राजा
भैय्याओं या अन्ना शुक्लाओं में महान डा. राम मनोहर लोहिया का अंश देखना बंद कर
दिया. इन २४ सालों में ७५ वर्षीय मुलायम सिंह यादव का समाजवाद यहाँ तक पहुँच गया
कि “नेताजी” को अमिताभ ठाकुर को रास्ते पर लाने के लिए प्रजापतियों वाले स्टाइल
में “प्यार” से समझाना (जिसे अमिताभ ठाकुर समाजवाद की जानकारी न होने के कारण
धमकाना मान रहे हैं) पडा. लोहिया के असफल होने और मुलायम के सफल होने में शायद यही
मूल कारण है. समाजवाद को नए प्रयोगों से गुजरने की कला डॉ साहेब नहीं सीख पाए थे. लोहिया
के ज़माने में संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथ-निरपेक्ष शब्द नहीं जोड़े
गए थे और इन शब्दों को आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी ने ४२वें संशोधन के तहत
जोड़ा. अगर लोहिया नौ साल और जिंदा रह गए होते तो जान पाते कि सेक्युलर (पंथ –निरपेक्ष)
का नया मतलब क्या होता है. आरोपी किसी भी सम्प्रदाय का हो भेद –भाव न करते हुए उसे
अगर “समर्थ” है तो मंत्री बनाया जा सकता है और समाजवाद का नया मतलब होता है किसी
अनुसूचित जाति के यादव सिंह या किसी राममूर्ति वर्मा को मात्र आरोपों के आधार पर
हटाना समाजवाद के नए सिद्धांतों के खिलाफ है. बल्कि नव-समाजवाद का मानना है कि अगर
इसे परिपुष्ट करना है तो एक-दो साल की
नौकरी वाली आई ए एस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे समाजवाद विरोधी अफसरों को जो
बालू माफियाओं के खिलाफ जिहाद छेड़ती हो,
रास्ते से हटाओ , जो अमिताभ ठाकुर फिरोजाबाद का पुलिस अधीक्षक के रूप में पिटाई
करने वाले समाजवादी पार्टी के विधायक और “नेताजी” के निकट रिश्तेदार के खिलाफ
मात्र ऍफ़ आई आर करने की जुर्रत करता हो और जिसकी एक्टिविस्ट पत्नी किसी मंत्री प्रजापति के
खिलाफ अवैध खनन का केस लिखवाती हो उस अधिकारी को “प्यार” से उस पिटाई की याद दिलाओ ताकि यह
बेलगाम अफसर नए समाजवाद की ‘मुख्य-धारा” में लौट आये. आखिर भटकों को वापस लाना भी
तो “नेताजी” के नव-समाजवादी वात्सल्य का हीं तो हिस्सा है.
लोहिया ने अपनी पुस्तक “इंटरवल ड्यूरिंग
पॉलिटिक्स” में व्यक्ति की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखा है उसे हीं समाजवाद का स्रोत
माना. फिर उनके खांटी अनुयायी के रूप में “नेताजी” ने मात्र एक उद्दंड अधिकारी को
“प्यार” से डांटा हीं तो. आखिर पत्रकार को जला कर कर मारने के आरोपी मंत्री
राममूर्ति वर्मा की भी तो कोई प्रतिष्ठा है! क्यूं डाला इस अफसर अमिताभ ठाकुर ने
उस पत्रकार का मृत्यु-पुर्व बयान सोशल मीडिया पर ? क्या लोहिया की आत्मा दुखी नहीं
होगी कि बगैर अंतिम अदालत के द्वारा दोषी कहे किसी मंत्री का मान-मर्दन किया जाये.
यही समाजवाद तो लाया जा रहा है जिसमें सत्ता में बैठे हर मंत्री या सन्तरी का हर
कुकर्म पहले “दूध का दूध , पानी का पानी “ के शाश्वत भाव वाली “एक जांच” की अग्नि
परीक्षा से गुजरे और तब तक कोई अमिताभ या कोई मीडिया इस बात को न उठाये वर्ना नव
समाजवाद के सिद्धांत के तहत जलाया भी जा सकता है और सेवा से निलंबित भी किया जा सकता
है. और जब “नेताजी” का नव-उदारवाद के प्रति रुझान इतना दृढ है तो राज्य के पुलिस
प्रमुख को भी बगैर बताये एक आई जी का राज्य छोड़ दिल्ली जा कर केन्द्रीय गृह मंत्रालय
में अपनी रक्षा की गुहार लगना भी तो मर्यादा का उल्लंघन है. ऐसे हीं अफसरों की तो
ज़रुरत है जो मर्यादा को नव-समाजवादी पैमाने के आधार पर समझें. यादव सिंह पर करोड़ों
हडपने का आरोप पर निलंबन महीनों तक नहीं. लेकिन अमिताभ ठाकुर का दिल्ली जाना
अक्षम्य अपराध. यहीं है नव-समाजवाद.
गाडी पर
समाजवादी पार्टी का झंडा लगाये लोकल नेता कहीं बलात्कार कर रहे हैं तो कहीं पुलिस
को मार रहे हैं, कहीं पुलिस थाने में बलात्कार कर रही है और कहीं बलात्कार का आरोप
न लगे तो जला कर मार दे रही है. बलात्कार के बाद जला कर मारना आसन है क्योंकि मरने
के बाद उसे पुलिस द्वारा ढूढ़ पानी अलग किया जाएगा और बलात्कारी पुलिस वाला बाख
जाएगा. आज से २५ साल पहले तक समाजवाद का लम्पटीकरण या लम्पटों का समाजीकरण इस हद
तक नहीं था बल्कि रिपोर्टर के रूप में हम लोग मुलायम सिंह में उभरता लोहिया देखते
थे. आज का नव –समाजवाद यह तस्दीक करता है कि जन-धरातल पर अपने ज़माने के बेहद
क्रांतिकारी सिद्धांत भी किस तरह घिनौनी राजनीति के बोझ तले दम तोड़ते हैं और अपने ज़माने के युवा क्रांतिकारी
नेता किस तरह अपने में धीरे –धीरे बदलाव कर सिद्धांत को अवनति की ओर ले जाता है.
पुलिस अधिकारी अमिताभ को भी समझाना होगा कि एक
सड़ गए सिस्टम से सिस्टम में रह कर लड़ना संभव नहीं है. ऐसा सिस्टम अपने बचाव के लिए
प्रोटोकॉल या कंडक्ट रूल से उन सबको बांध देता है जो सिस्टम के अन्दर है. अमिताभ
पत्रकार जागेन्द्र सिंह का मृत्यु –पूर्व बयान तो ले सकते है पर उसे सोशल मीडिया
पर नहीं डाल सकते जब तक उनके कन्धों पर संप्रभुता का प्रतीक अशोक का लाट रहता है. संवैधानिक व्यवस्था के तहत सरकार
विधायिका के प्रति जवाबदेह है लेकिन अफसरशाही नहीं. लिहाज़ा दिन में तीन बार ट्वीट
करके सरकार की बखिया उधेड़ना संवैधानिक रूप से गलत है. जब तक जनता प्रजापतियों को
बहुमत देती रहेगी यह सिस्टम सड़ता रहेगा. अगर सुधार करना है तो जनता की उस समझ को
जो अपराधियों में अपने राबिनहुड देखती है.
अगर समाज बदलने का जज्बा है, अगर इस सड़े सिस्टम
को बदलने के लिए कुछ भी करने की जिद है तो इस सिस्टम के बाहर आ कर हीं लड़ सकते हैं
अन्दर रह कर नहीं.