Saturday 21 October 2017

अपने अधिकारों के प्रति भी जनता का उनिदापन !


उत्तर भारत के बड़े राज्य के समृद्ध शहर के संभ्रांत इलाके में हाल हीं में पानी की किल्लत हुई. सम्बंधित विकास प्राधिकरण के पास इस क्षेत्र में पानी देने की जिम्मेदारी है. शहर के बड़े इलाके में गंगा का पानी गंगनहर के जरिये सप्लाई होता है और हर साल पहले से हीं घोषणा होती है कि अमुक दिन नहर की डीसिल्टिंग (नहर तल से बालू निकलना) के कारण एक महीने के लिए जल सप्लाई नलकूपों से की जायेगी . लिहाज़ा यह कोई उत्तराखंड में अचानक आयी प्राकृतिक आपदा नहीं थी. प्राधिकरण के अधिकारियों को इसका संज्ञान पहले से लेना था लेकिन एक बड़े इलाके में जल आपूर्ति कई दिनों तक बाधित रही क्योंकि पंप काम नहीं कर रहे थे. इस पूरे प्रकरण में निवासियों की तरफ से तीन तरह की सामूहिक/व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं देखने को मिली. एक तो वे लोग थे जो “कोऊ नृप होहिं हमें का हानि” के स्थितिप्रज्ञं भाव में आ कर टैंकर के पास लाइन लगाने लगे या आस-पास की बिल्डिंग में लगे गैर-कानूनी बोरेवेल से पानी ढोने लगे; दूसरे वे थे जो आपस में बात करते हुए तो अधिकारियों और अंततोगत्वा सरकार के खिलाफ तो “सिस्टम सड गया है” के शाश्वत भाव में लानत -मलानत करते रहे लेकिन कभी सड़क पर खड़े होने या इस क्रोध को सामूहिकरूप से प्रकट करने के भाव में नहीं आये; तीसरे वे लोग जो आर्थिकरूप से सक्षम थे और अगले हीं दिन ५०००० खर्च करके निजी बोरेवेल लगवाना शुरू कर दिया (हालाँकि निजी बोरिंग गैरकानूनी है क्योंकि भूगर्भ की जल संपदा निजी संपत्ति नहीं है). जाहिर है जब आप कुछ गैर-कानूनी करते हैं तो पुलिसवाला भी चोर पकड़ना छोड़ कर आप में बड़ा अपराधी देखता है और फिर आप के अपराध को नज़रंदाज़ करने की कीमत ले जाता है. आखिर वह भी तो आपका सेवक है. चूंकि प्राधिकरण के लोग पानी भले न दें लेकिन गैर-कानूनी काम उन्हें जनता की ओर से बर्दाश्त नहीं लिहाज़ा उनका भी हिस्सा.

इस समस्या का जनता की ओर से नैतिक और विधान -सम्मत प्रतिकार क्या था? जनता एक सोच विकसित करे और सब लोग सड़क पर आयें. प्रजातंत्र में इतना दम तो है हीं कि जैसे हीं यह सब सोशल मीडिया पर वाएरल होगा, स्थानीय विधायक भी आयेगा और साथ हीं औपचारिक मीडिया भी इसका संज्ञान लेगा. मुख्यमंत्री कार्यालय भी सक्रिय होगा. प्राधिकरण के अधिकारी सकते में होंगे और यह समस्या हमेशा के लिए ख़त्म होगी. पूरे प्रजातंत्र में सरकार के उनीदेपन से जगाने का यही सबसे कारगर तरीका रहा है और गाँधी ने तो प्रजातंत्र न होते हुए भी इसी का इस्तेमाल कर अंग्रेजों को भगाया.

लेकिन उत्तर भारत के अर्ध-शिक्षित और “सत्ता को माई-बाप” समझने वाले व्यापक समाज में तो छोडिये, अपेक्षाकृत और तथाकथित रूप से शिक्षित और माध्यम वर्ग में भी वही उनिदापन देखने को मिल रहा है. दरअसल आधुनिक शिक्षा से नैतिकता और स्थितियों, अधिकारों और राज्य अभिकरणों की भूमिका की गहरी समझ नहीं बनती बल्कि व्यक्तिगत जीवन में किसी तरह से जिन्दा रहने की “स्किल” विकसित करने का भाव हीं प्रबल रहता है याने “सर्वाइवल इमपरेटिवस” उसे सिस्टम के खिलाफ सामूहिक एक्शन करने से विरत करते हैं. उसका आचरण नैतिकता को मूर्खता समझ कर ख़ारिज करता है और ट्रेन में टी टी को २००० रुपये देकर बर्थ हासिल करने को महारथ मानता है. पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार दो तरह के होते हैं. एक “भयादोहनजे (शेकडाउन) जरिये ” और दूसरा “समझौता (पे-ऑफ या कोल्युसिव) करके”. भारत में (दुनिया के पिछड़े समाजों में भी ) सन १९७० तक भयादोहन वाला भ्रष्टाचार प्रमुख था लेकिन इसके बाद अचानक सरकार ने गरीबों के और ग्रामीणों के विकास के नाम पर काफी पैसा खर्च करना शुरू किया. चालाक अधिकारियों और अभियंताओं और मक्कार नेताओं के बीच एक अलिखित समझ विकसित हुई कि पुल बनाओ विकास के नाम पर, बालू -सीमेंट का अनुपात १;१ की जगह १;४ रखो ; पुल ३० साल बाद गिरेगा और तब तक यह इंजिनियर पैसे के दम पर प्रोन्नति पाकर इंजिनियर इन चीफ बन चुका होगा और ठेकेदार मंत्री. दोनों में सिस्टम को दबाने की काफी शक्ति आ चुकी होगी. यह दूसरे तरह का भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होता क्योंकि इसमें व्यक्ति की जगह समाज शिकार होता है और समाज बिना सामूहिक एक्शन के एक भ्रष्ट सिस्टम को सही रास्ते पर ला नहीं सकता. भारत को इस किस्म के भ्रष्टाचार ने आज पूरी तरह से अपने शिकंजे में जकड रखा है.
अब ज़रा गहराई से गौर करें. जनता को पानी देने में असफल कौन हुआ? प्राधिकरण और उसके अधिकारी क्योंकि वे अपने दायित्व के प्रति संजीदा नहीं थे. भुक्तभोगी कौन था ? आम जनता. पानी उपलब्ध करना इस एजेंसी का मूल कार्य है न कि जमीन किसानों से लेकर बिल्डरों को देना और उन्हें जमीन के गर्भ का जल निकाल कर कई मंजिल नीचे तक बेसमेंट बनाना और इस संपदा को गैर-कानूनी रूप से ख़त्म करते हुए घूस के जरिये अपना घर भरना. याद होगा कि यादव सिंह नाम का एक ऐसा हीं नोयडा का जूनियर इंजिनियर कुछ हीं वर्षों में चीफ इंजिनियर बना. जब पकड़ा गया तो पुलिस को उसके अघोषित स्थानों से सैकड़ों करोड़ की संपत्ति मिली. लेकिन यह संपत्ति उसे बिल्डरों से मिली न की जनता को पानी न देने के एवज में. हम जो किस्सा बता रहे हैं वह एक अन्य किस्म का भ्रष्टाचार है जिसमें जनता अपने आप को शिकार बनाने के लिए प्रशासन को आमंत्रित करती है. अगर यही जनता सामूहिक शक्ति और नैतिक दायित्व का परिचय देती तो सड़क पर आती और व्यय-शून्य सोशल मीडिया पर अपने सड़क पर आने की गांधीवादी सामूहिक तेवर के तहत सरकार की अभिकरण और उसके अधिकारियों को मजबूर करती कि वे सुस्ती छोड़ कर अपने दायित्व का निर्वहन करें. लेकिन यह सब करने के लिए अपने अधिकारों को समझना पड़ता और संभव है उसे छिनने वालों के खिलाफ कुछ घंटे सड़क पर आना होता. लेकिन विडम्बना यह है कि वह इसकी जगह अपने अधिकार अपहर्ता सरकारी नौकर को घूस दे कर अपने यहाँ गैर-कानूनी रूप से बोरिंग करा लेता है बगैर यह सोचे हुए कि कल जब बिजली जायेगी तो उसे जनरेटर खरीदना होगा जिसका धुआं पडोसी को डॉक्टर के यहाँ जाने को मजबूर कर सकता है या पड़ोसी के बच्चे की परीक्षा की तैयारी जनरेटर के शोर से बाधित होगी. अब अगर रोड खराब है तो क्या ये रोड बनवा सकते हैं या अगर अपराधी रोज उनके परिवार की महिलाओं के चैन खीच कर भाग जाता है या रात भर दारू पीकर बड़ी गाडी चलाते हुए एक रईसजादा मोर्निंग वाक कर रहे बूढ़े पिता को रौंदता हुए निकला जाता है तो तो क्या ये शहर में अपने लिए नयी सड़क बनायेगे?

हमें अपनी समझ और सामूहिक सोच की गुणवत्ता बेहतर करनी होगी अगर एक नया भारत बनाना है.

नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूट अपनी साइकिल से चल कर राजमहल पहुंचे और परम्परा के अनुसार राजा को नए मंत्रिमंडल के गठन की सूचना दी. महल में केवल एक अंगरक्षक की फोटो नज़र आ रही है. एक भी अधिकारी न तो उन्हें “रिसीव” करने के लिए है न हीं सिक्यूरिटी या सीक्रेट सर्विस का चश्मा लगाये एजेंट. यह देश प्रतिव्यक्ति आय में या मानव विकास के स्तर पर ऊपर के पांच देशों में है. यहाँ न मीडिया का कैमरा न हीं कोई रिपोर्टर दिखाई दे रहा है. समृद्ध और विकसित प्रजातान्त्रिक देशों में मीडिया काफी मजबूत है परन्तु उनकी खबर की अवधारणा शायद अलग है. उनके लिए “हनीप्रीत ने जेल में चाय के साथ नमकीन भी खायी” या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी करवाचौथ कैसे मानती हैं” ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं होती।

jagran/ lokmat