पाकिस्तान में पहली बार चुनाव के जरिये सत्ता
परिवर्तन और नवाज शरीफ का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना भारत में एक वर्ग में
उत्साह और दूसरे वर्ग में संशयपूर्ण आशावादिता से देखा जा रहा है. दोनों भाव के
यथोचित तार्किक कारण हैं. उत्साह इसलिए कि इस चुनाव में भारत-विरोध पूर्णतः गायब
था, मुद्दा बिजली, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार और शिक्षा था, सेना को नागरिक प्रशासन के
अधीन लाने का इन्तखाबी ऐलान था और ताकतवर तहरीक-ए-तालिबान –ए पाकिस्तान की चेतावनी
के बावजूद (बलूचिस्तान और फाटा क्षेत्र को छोड़ कर) अच्छे प्रतिशत में मतदान हुआ.
ये सारे संकेत पाकिस्तानी समाज की सोच में बदलाव की ओर इंगित करता है. मतदाताओं का
एक बड़ा हिस्सा है जो नयी हवा में सांस लेना चाहता है, बारूद की गंध में नहीं. संशय
इसलिए कि जिस मुल्क ने अकारण पडोशी से तीन युद्ध किये हों, जिस देश के सेना और
आतंकी संगठनों ने मिलकर भारत में दहशतगर्दी के तीन दशक का इतिहास रचा हो वह क्या
अचानक गुलाब का फूल हाथों में लेकर दिल्ली पहुंचेगा.
मानव सभ्यता गवाह है कि सामूहिक जन-चेतना में
उत्तरोत्तर गुणात्मक परिवर्तन होता है. गुलाम परंपरा ख़त्म हुई, सती प्रथा का अंत
हुआ, स्त्री-प्रताड़ना अवसान पर है. साथ हीं जर्मनी एक हुआ, छोटे-छोटे टुकड़ों में
बंटे यूरोप का संगठन यूरोपियन यूनियन बना. आदमी तासीरन अमन पसंद होता है केवल कुछ
स्थिति- व काल- विशेष कारक और कुछ सामूहिक सोच में सही-गलत पहचानने की क्षमता का
अभाव उसे दो-दो विश्व युद्ध करने पर आमादा करते है. राजाओं ने अपने रियासत बचने या
बढ़ाने के लिए जंग किये तो कभी मूंछ या महिला के लिए. लोकतंत्र की खूबी यही है कि
इसमें सामूहिक सोच ना केवल फैसले लेती है बल्कि इस सोच में भी गुणात्मक बदलाव आता
है.
यह तर्क बिलकुल सही है कि जो देश ६६ साल में ३०
साल फौजी हुकूमत में रहा हो और जिसमें पहली बार सत्ता परिवर्तन बन्दूक से नहीं
बल्कि बैलट से हुआ हो उसमें दहशतगर्दों को आवाम की जम्हूरियत पसंदगी अच्छी लगेगी?
पूरे विश्व में और खासकर पडोसी भारत में हर कोई यह सवाल पूछ रहा है और हकीकत यह है
कि उसके मन में संशय है. चुनाव जीतने के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता
और दो बार प्रधान मंत्री रहे नवाज शरीफ को अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहना पड़ा कि
वह भारत के साथ बेहतर सम्बन्ध बनायेंगे और भारत के लोगों को अमन का सन्देश भी
दिया. उनकी जेहन से कश्मीर गायब था और पडोसी से बेहतर सम्बन्ध का जज्बा था. लेकिन
यह भी उतना हीं सच है कि पंजाब सूबे से जीतने के लिए उन्हें और उनकी पार्टी को
गुप्त रूप से कुछ आतंकी संगठनों –खासकर जमात-उद-दावा-- को साधना पड़ा है पिचले साल
के पंजाब के बजट में अच्छा धन परोक्ष रूप से इन संगठनों की नज़र करना पड़ा है.
यहाँ यह समझना भूल होगी कि एक प्रजातान्त्रिक
चुनाव में नवाज शरीफ कोई क्रांति ला सकेंगे क्योंकि दशकों पुरानी जेहनियत व शासन
का किरदार बदलने में वक्त लगता है. कुछ अवाम आगे आया कुछ सरकार (जिसे लगभग पूर्ण बहुमत
मिला है ना कि बैसाखी पर चलने का जनादेश).
लेकिन एक मौक़ा है जब इस देश को भ्रष्ट सैन्य तंत्र-आई एस आई –दहशतगर्दी की
शक्तिशाली गठजोड़ से निकाला जाये और पाकिस्तान को आधुनिक राज्य के रूप में विकास के
रास्ते पर ले जाया जाये.
यह भी सच है कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद
खराब है. वित्तीय घाटे का यह आलम है कि गत वर्ष यह ८.५ के आस –पास था. उद्योग ख़त्म
हो गए है और शहरीकरण की दर केवल २० प्रतिशत है. याने ८० फीसदी लोग गाँव में रहते
हैं जिनका देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान मात्र २० प्रतिशत है. फाटा , नार्थ
वजीरिस्तान, साउथ वजीरिस्तान और
बलूचिस्तान में आज भी दहशतगर्दों की साम्राज्य है , सेना या कानून का राज्य कहीं
दूर-दूर तक नज़र नहीं आता. लेकिन इन सब के बावजूद अवाम में जो कुछ भी हो रहा है उसे
लेकर बचैनी साफ़ मनर आती है. जनता अब तालिबानी ऐलानों से ऊब चुकी है. टी टी पी ने
जिस तरह ऐलान किया कि लडकिय पड़ने घर से बहार नहीं जाएँगी और पुरुष डॉक्टर औरतों के
शरीर को छूएंगे नहीं उससे महिलाओं की असमय मौत होने लगी. मलाला के किस्से ने
पाकिस्तानी अवाम की चेतना को झकझोर दिया. कट्टरपंथी सोच पर तार्किक सोच हावी होने
लगी.
नवाज
शरीफ के लिए देश को एक आधुनिक राज्य के रूप में बदलना कोई एक दिन का काम नहीं
होगा. जो सेना पिछले कई दशकों से भारत –विरोध के नाम पर अमरीकी इमदाद हड़प रही थी
वह आसानी से हथियार डाल देगी यह सोचना गलत
होगा. सेना, आई एस आई , कट्टरपंथी एक साथ मिल कर सरकार को झुकाने की कोशिश करेंगे.
जिस सेना ने पिछले २००१ -२००८ के बीच अमरीकी इमदाद में आये ११८० करोड़ डॉलर या
प्रति वर्ष कोई १२ हज़ार करोड़ पाकिस्तानी रुपये में से ८० प्रतिशत ना केवल हड़प ले
रही हो बल्कि उसका कोई लेखा जोखा पाकिस्तानी संसद तक को ना देती हो वह नवाज की
सरकार को आसानी से अपने वादे पूरा करने के लिए छोड़ देगी यह सोचना गलत होगा.
पाकिस्तान में सेना के अफसरों का रहन-सहन भारत के किसी पुराने ज़माने के राजा से
ज्यादा शानदार है.
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पाकिस्तान एक असफल राज्य है. उसे खोने को कुछ नहीं है. औसतन हर रोज १० आदमी
आतंकवादी हमलों में मारे जाते हैं, हर तीसरे दिन एक धमाका होता है, उद्योग-शून्यता
के कारण बेरोजगार युवक आत्मा-घाती दस्तों का कच्चा माल बन रहे हैं, “फाटा” क्षेत्र
में “आत्मघाती बेल्ट” बनाने के कुटीर उद्योग में बदल चुका है. पिछले ६५ सालों में
शिक्षा दर ५२ प्रतिशत से मात्र ५६ प्रतिशत हुई है. बजट का ३० प्रतिशत रक्षा के नाम
पर ताकतवर सेना उदरस्थ कर लेती है. सिंध-पंजाब झगडा, बलूच समस्या, मुहाजिर (जो
भारत से गए हैं) के प्रति मूल पाकिस्तानियों का रवैया, शियाओं और अन्य सम्प्रदायों
के प्रति हिंसा और सबसे बढकर फाटा (फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया ) क्षेत्र
से फैलते हुए तहरीक-ए-तालिबान का पाकिस्तान के अन्य भागों में खूंखार वर्चस्व आदि
कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिन्होंने इस देश के अंतर को खोखला कर दिया है. नतीजा यह हुआ कि विकास की दौड़ में देश पीछे
होता गया. आजादी से आज तक साक्षरता का स्तर मात्र पांच प्रतिशत हीं बढ़ सका.
जाने-अनजाने में धर्म जिसे गैर-राजनीतिक सामाजिक सीमा क्षेत्र में होना चाहिए था
राज्य का मूल मन्त्र बन गया और पाकिस्तान एक इस्लामिक देश हो गया.
ऐसा नहीं कि भारत में यह प्रवृति नहीं उभरी.
इमरजेंसी, धार्मिक कट्टरवाद की कोशिशें यहाँ भी हुई पर वे परवान नहीं चढ़ पायीं.
जन-भावना और संस्थागत मजबूती के तहत ऐसे ताक़तों को मुंहकी खानी पड़ी या यह अहसास हो
गया कि यहाँ उन्हें दूर तक ज़िंदा रहने के कारक नहीं मिलेंगे. वह बहुसंख्यक अतिवाद
हो या अल्पसंख्यक आतंकवाद जनता ने बैलट के जरिये हमेशा इन्हें ख़ारिज किया. चुनाव
का आंकड़ा गवाह है कि बहुसंख्यक अतिवाद से स्वयं बहुसंख्यक हिन्दुओं को इतना परहेज़
था कि भारतीय जनता पार्टी को आज तक के इतिहास में सात मतदातायों में से मात्र एक
ने हीं वोट दिया. सन्देश साफ़ था. मंदिर ह्रदय के पास है पर मस्जिद गिरा कर नहीं.
जबकि पाकिस्तान में इंन्होनें स्थाई भाव
अख्तियार कर लिया. जनता को ना चाहते हुए भी इसमें बन्दूक के डर से लोगों को शरीक
होना पडा. नतीजा यह रहा कि पूरे राज्य का चरित्र बदल गया.
साथ हीं आधुनिक पाकिस्तान में कट्टरपंथ को दम
तोड़ना हीं होगा ऐसे में जो लोग कट्टरवाद की दूकाने चला रहे है और पूरे समाज को खोखला कर रहें है वे
भी नयी सरकार के लिए अडचने पैदा करेंगे लेकिन जन-भावना का ताक़त और सोची-समझी
कूटनीति के जरिये इन्हें काबू में लाया जा सकता है उसी तरह जिस तरह भारत के पंजाब में आतंकवाद को काबू में
कर लिया गया.
हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत और पाकिस्तान के
बीच एक अजीब प्यार और घृणा का मिश्रित सम्बन्ध है नवाज शरीफ के भारत के
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान-स्थित पंजाब सूबे के है जबकि पाकिस्तान के
भावी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत –स्थित पंजाब प्रांत के हैं. पाकिस्तान एक
जम्हूरियत के रूप में विकसित करे यह दोनों देशों के लिए कई मायनों में फायदेमंद
रहेगा.
sahara(hastakshep)