Monday 28 April 2014

“दामाद श्री” बनाम “टाफी” --- भ्रष्टाचार को लेकर पार्टियाँ कितनी गंभीर ?


कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद, पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के जीजा और प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ भूमि की खरीद में करोड़ों रुपये अर्जित करने का मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चुनाव के नौ चरणों में से छटवें चरण के ख़त्म हो जाने के बाद पुरजोर तरीके से उठाया. उधर कांग्रेस के प्रधानमंत्री के दावेदार राहुल गाँधी ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर किसानों की ४५,००० एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव (टाफी की कीमत पर) उद्योगपति अडानी को देने का दावा किया.
दरअसल जनता के मन में इन दोनों प्रतिस्पर्धी आरोपों को लेकर कई शंकाएं जन्म ले रही हैं. वाड्रा को जमीन देने का मामला दो साल पहले उठा था और पाया गया कि हरियाणा और राजस्थान में भारत के सबसे ताकतवर गाँधी परिवार के दामाद को वहां की तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने किसानों की जमीन “लैंड यूज “ में परिवर्तन कर के दे दिया. यह मामला सबसे पहले आप पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने उठाया था. कुछ दस्तावेज भी दिए थे जिसमें किसानों की जमीन को हरियाणा सरकार ने जनहित में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अस्पताल के लिए अधिग्रहित किया और वाड्रा की कंपनी को सौंप दिया. रातों रात सैकड़ों करोड़ रुपये वाड्रा ने कमा लिए. लैंड सीलिंग कानून की अवहेलना भी की गयी.
उसी तरह कांग्रेस के आरोप के मुताबिक अडानी को कुछ वर्षों में मोदी ने ४५,००० एकड़ खेती वाली किसानों की जमीन एक रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दी और वह वह भी किसानों के विरोध के बावजूद हालांकि अडानी ने इसे गलत बताया है और कहा है कि सबसे सस्ती जमीन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उन्हें दी थी).
प्रश्न यह है कि क्या इतने बड़े भ्रष्टाचार (उद्योगपतियों को सरकारी पक्षपात कर लाभ देना भी उसी श्रेणी में आता है) के दोनों मामले पहले नहीं उठाये जा सकते थे? क्या आरोप लगने वाली दोनों पार्टियाँ वाकई भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर हैं? अगर हैं तो क्या ये मामले दो साल पहले हीं किसी राजनीतिक दल को सड़कों पर उतरने के लिए प्रयाप्त नहीं थे?
राजनीतिक वर्ग ने भ्रष्टाचार ऐसे गंभीर मुद्दे को भी फुटबाल का खेल बना दिया है. लगता नहीं है कि इन दोनों राष्ट्रीय दलों में भ्रष्टाचार को लेकर “शून्य सहिष्णुता” का भाव कहीं दूर –दूर तक भी है. वाड्रा का मामला तब भाजपा के जेहन में आता है जब राहुल गाँधी अडानी-मोदी संबंधों आरोप लगाते हैं. भाजपा की गैरजिम्मेदारी का एक अन्य उदाहरण लें. राजस्थान में कुछ महीने से इस पार्टी की सरकार है. “दामाद श्री “ शीर्षक फिल्म और किताब जारी कर भाजपा ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने “दामाद श्री: “ रोबर्ट वाड्रा को गैरकानूनी रूप से जमीन दे कर करोड़ों कमवाया. लेकिन क्या यह आज कुछ माह से इसी पार्टी की राज्य सरकार के होते हुए यह नहीं कर सकती थी कि जांच कराये और अगर वाड्रा और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भ्रष्टाचार किया था और, कानून तोड़े गए थे तो “दामाद श्री” को लाभ पहुंचाने के लिए तो उनके और तत्कालीन सरकार के लोगों के खिलाफ कार्रवाई करे.
क्या कांग्रेस पार्टी से अपेक्षा नहीं थी कि गुजरात में अगर “किसानों की जमीन जबरदस्ती कौड़ियों के भाव किसी अडानी को दी गयी थी तो पिछले एक साल में जबरदस्त आन्दोलन करे और सडकों पर आये.
दरअसल दोनों ने ये मुद्दे भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी “जोरे टालरेंस” के भाव में आकर नहीं उठाये हैं बल्कि उन्हें यह पता चला है कि यह मुद्दा चुनाव के दौरान जनता में “बिकता” है. अगर मोदी टाफी बाँटते हैं तो सोनिया के दामाद भी टाफी के भाव हीं जमीन खरीदते हैं फर्क इतना है कि वह खरीदने के तुरंत बाद करोड़ों का फायदा लेकर बेंच देते हैं जबकि अडानी जमीन अपने पास रखते हैं , कुछ उद्योग लगाते हैं. जमीन का भाव दोनों ओर बढ़ता है.
कहा जाता है कि चाकू खरबूजे पर चले या खरबूजा चाकू पर, कटता खरबूजा हीं है. ना तो वाड्रा की जमीन ने रातों-रात सोना उगलना शुरू किया ना हीं अडानी और टाटा के हजारों एकड़ जमीन ने अनाज की जगह हीरे उगले. पर नुकसान उन किसानों का हुआ जिनके जीविका का एक मात्र साधन जन हित के नाम पर सरकारों ने छीन लिया. गुजरात में भले हीं कृषि क्षेत्र में पिछले ११ सालों में १० प्रतिशत विकास दर लगातार रहां हो पर एन एस एस ओ की रिपोर्ट के मुताबिक़ गरीब किसानों में रोजगार के अवसर कम हुए हैं क्योंकि वे जी डी पी बढ़ने वाले नकद फसल (कैश क्रॉप) बोने की हिम्मत नहीं कर सकते थे जो संपन्न किसान कर सकते थे. नतीजतन , ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी, गरीब –अमीर के बीच का अंतर बढा हालांकि मोदी ने जी डी पी दिखा कर अपने को विकासकर्ता के रूप में देश भर में सफलतापूर्वक प्रतिस्थापित कर लिया.
जनता का इन दोनों राष्ट्रीय दलों की संजीदगी पर शक होने का एक अन्य कारण भी है. वाड्रा पर फिल्म व किताब निकालने वाली भारतीय जनता पार्टी वोट के लिए येद्दीयुरुप्पा को या श्रीरामलू को पार्टी में वापस लेने में रंच मात्र भी गुरेज नहीं करती जिन्हें पार्टी ने हीं भ्रष्टाचार के आरोप में निकाला था. उधर मोदी को भ्रष्ट बताने वाली कांग्रेस रेल मंत्री के रूप में भ्रष्टाचार के हीं आरोप में हटाये गए पवन बंसल को फिर टिकट देने में और आदर्श घोटाले में आकंठ डूबे और हटाये मुख्यमंत्री पद से हटाये गए अशोक चह्वाण को फिर वापास लेने में किसी शर्म का इज़हार नहीं करती.
ऐसे में आम-जनता यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह वाड्रा जमीन घोटाले में कांग्रेस से नाराज हो या मोदी-अडानी दुर्गठजोड़ को लेकर भाजपा से . उसे यह भी विश्वास नहीं हो पा रहा है कि सत्ता में आने पर क्या वाकई इन में कोई भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने वाड्रा और येद्दीयुरुप्पा को बचाएगा या दूसरे पार्टी के अशोक चह्वाण और रेड्डी बंधुओं को जेल भेजेगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनाव के बाद दोनों प्रमुख दल “हम्माम में दोनों” के भाव में जनता को भ्रष्टाचारियों का भोजन बनाते रहेंगे.

rajsthan patrika