Sunday 3 November 2019

जासूसी कांड में इस्रायली कंपनी के बचाव से भारत सरकार की फजीहत


 
अमरीका के सेन फ्रांसिस्को की अदालत में व्हाट्सअप ग्रुप के डायरेक्टर ने एक बेहद संगीन रहस्योद्घाटन किया. अधिकारी कार्ल वूग के अनुसार एक इसरायली जासूसी कंपनी एनएसओ द्वारा अपने देश के हीं एक सॉफ्टवेयर—पेगासस—का  इस्तेमाल करके दुनिया भर के १४०० पत्रकारों और समाजसेवियों की, जिनमें करीब दो दर्जन भारत के हैं, एक-एक गतिविधि “ट्रैक” की और उनके व्हाट्सअप सहित सभी सन्देशों को हासिल किया. एनएसओ का अपने बचाव में कहना है कि वह ये जानकारियाँ केवल वैध सरकारी एजेंसियों को हीं बेचती हैं. याने दुनिया के देशों में सरकारों या उनकी एजेंसियों ने ने लक्षित लोगों के बारे में खुफिया जानकारी लेने के लिए इस कंपनी से समझौता किया होगा. व्हाट्सअप के निदेशक ने कोर्ट को यह भी बताया कि भारत के करीब दो दर्जन सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रत्राकारों भी इस खुफिया कंपनी की जड़ में थे. डायरेक्टर के बयान के अनुसार भारतीय लोगों के बारे में ये जानकारियाँ इस साल  मई माह के पहले तक के लगभग दो सप्ताह के काल में जुटाए गए. मई माह में देश का आम-चुनाव ख़त्म हुआ था. अधिकारी ने उन व्यक्तियों के जिनके बारे में आंकड़े जुटाए गए, नाम बताने से इनकार किया. लेकिन अमरीका के कुछ अख़बारों ने ये नाम उजागर किये. एनएसओ नमाक इस खुफिया कंपनी को जैसे हीं पता चला कि कनाडा की किसी सॉफ्टवेयर सुरक्षा कंपनी को उसकी गतिविधियों और तरीकों की जानकारी हो चुकी है तो उसने कई देश से अपने समझौते ख़त्म कर दिए और अब वह कह रही है कि उसने इस साल के सितम्बर माह से मानवाधिकार नीति अपना ली है. भारत की केंद्र सरकार ने अपने को दोष मुक्त करने के लिए व्हाट्सअप कंपनी से स्पष्टीकरण  माँगा है.  
यह सॉफ्टवेर इतना शक्तिशाली है कि एक बार भी लक्षित व्यक्ति ने अगर अपने मोबाइल फ़ोन पर “एक्सप्लॉइट लिंक” पर क्लिक कर दिया या व्हाट्सअप पर आयी “मिस्ड कॉल” पर रिंग कर दिया तो उसका फ़ोन, एसएमएस, व्हाट्सअप और उससे लिंक्ड सारे एकाउंट्स आदि इस सॉफ्टवेर ऑपरेटर की आज्ञा मानने लगेंगे. बताया जा रहा है कि हाल के कुछ तकनीकि परिवर्तनों के बाद यह सॉफ्टवेयर अब एक्सप्लॉइट लिंक क्लिक करने की इज़ाज़त भी नहीं मांगता. यहाँ तक कि यह सॉफ्टवेर लक्षित व्यक्ति के फ़ोन को यह निर्देश भी दे सकता कि कैमरा ओन करे, विडियो रिकॉर्ड करे और उसे बगैर फ़ोन में अंकित किये ऑपरेटर को भेज दे. इसका खुलासा तब हुआ जब सितम्बर, २०१८ में कनाडा की एक साइबर सिक्यूरिटी कंपनी ने पाया कि इस सॉफ्टवेर को इस्तेमाल कर रहे दुनिया के ४५ देशों की ३६ में से ३३ कंपनियां जिनमें भारत भी है, इसका शिकार हो रहे है. ऐसे पांच ऑपरेटर्स जो एशिया में यह सब कर रहे हैं उनमें से एक संगठन भारत में राजनीतिक थीम वाले डोमेन का इस्तेमाल कर रहा है. यह राज तब खुला जब पत्रकार खशूगी की हत्या के बाद अरब के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को यह शक हुआ की वे इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की जद में हैं और उन्होंने कनाडा की एक साइबर सिक्यूरिटी कंपनी से बात किया. यह सब गोरखधंधा जून, २०१७ से सितम्बर, २०१८ के बीच के काल का है. सऊदी अरब नागरिक खशूगी की हत्या उसके इस्तांबूल में सऊदी दूतावास में हुई थी. आरोप है कि सरकार के खिलाफ बोलने वाले खाशूगी को सरकार के सीक्रेट एजेंटों ने क्ल्हतं कर दिया. इस राज के उजागर होने के बाद  पेगासस सेवाएं बेचने वाली इस्रायली कंपनी ने सऊदी अरब सरकार से अपना कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म कर दिया. भारत के जिन पत्रकारों के तथ्य हासिल किये गए हैं उनमें एक रक्षा विषय का जानकार है जबकि एक किसी अखबार का संपादक जबकि कुछ छत्तीसगढ़ के मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हैं. मोदी सरकार की मुसीबत यह है कि इस कंपनी का अपने बचाव में हर बार कहना कि वह सिर्फ वैध सरकारी एजेंसियों को हीं जानकारी देती है, सरकार को कटघरे में खडा कर रहा है.   
          
           जासूसी या निजता-भंग के अलावा अन्य खतरे भी     
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याद करें जांबाज अभिनन्दन पाकिस्तान की सीमा में इसलिए घुस गए कि पाकिस्तानी सेना ने भारत-स्थित कंट्रोलरूम और उनके बीच के संवाद को ब्लाक कर दिया था और इस पायलट को वापस लौटने के सन्देश मिलना बंद हो गए थे. जो इस्रायली सॉफ्टवेर पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की गतिविधियाँ जान सकता है उसे अपने इलेक्ट्रॉनिक रक्षा उपकरणों को महफूज रखने या मध्यम वर्ग के बैंक खाते बचाने में भी सरकार इस्तेमाल कर सकती है. इससे पहले कि मध्यम वर्ग का विश्वास इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से उठने लगे सरकार को एक “हैकिंग-मुक्त” व्यवस्था देनी होगी. सिर्फ इसलिए कि बड़े मुल्कों से होड़ में भारत भी है, इस सिस्टम को लेने के लिए लोगों को बाध्य करना खतरनाक हो सकता है. 
आज आपकी मोटरसाइकिल से लेकर मिसाइल तक इस टेक्नोलॉजी के बिना नहीं चल सकते. ट्रेन-परिचालन में भी अब इस तकनीकि का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है. लाखों करोड़ रुपये का पूरा का पूरा शेयरबाज़ार भी इसी तकनीकि के भरोसे चल रहा है. जहाँ एक ओर मध्यम वर्ग तक को, कम बैंक ब्याज दर दे कर, शेयर में पैसे लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, वहीँ किसी रिटायर्ड क्लर्क की जिन्दगी भर की कमाई कोई हैकर एक झटके में गायब कर सकता है. क्या सरकार इस हकीकत दो दो-चार हो युद्ध स्तर साइबर सिक्यूरिटी सुनिश्चित करेगी ? कानून मात्र जनता को कैशलेस इकॉनमी की ओर जाने के लिए मजबूर करने वाला न होकर पहले साइबर सिक्यूरिटी को सुनिश्चित करने वाला होना चाहिए, सख्त प्रावधानों के साथ ताकि इस अपराध को अंजाम देने के पहले अपराधी सजा की सोच कर हतोत्साहित हो क्योंकि यह सामान्य आर्थिक अपराध या हल्का दंडात्मक अपराध न होकर सिस्टम पर भरोसा उठाने वाला है लिहाज़ा असली देशद्रोह है.        
jagran