Thursday 8 June 2017

सत्ता का निर्लज्ज भाव


बिहार में दो खबरें आयी. पहली बोर्ड  की परीक्षाओं का रिजल्ट मात्र ३० प्रतिशत हुआ है; और दूसरी, जिसने पूरे बिहार बोर्ड में टॉप किया है वह अपने विषय की आधारभूत समझ भी नहीं  रखता और सैकड़ों ऐसे छात्र है जो बेहद कठिन जी ई ई मैन्स (आई आई टी में दाखिले के लिए) पास करके एडवांस तक पहुंचे उन्हें  बिहार बोर्ड की परीक्षा में फ़िज़िक्स या मैथ्स मे मात्र एक या पांच नंबर आये. उग्र छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. परीक्षा में उत्तर  पुस्तिकाओं का मूल्यांकन चौतरफा शंका के  घेरे में  है.

अब जरा बिहार के मुख्यमंत्री (सुशासन  बाबू) का जवाब सुनिये. हंगामे के कई दिन बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए उन्होंने उलाहना भरे स्वर और आरोप वाली उग्रता का मिश्रित भाव व्यक्त करते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहा “ सरकार की इस बात पर प्रशंसा की जानी चाहिए कि तमाम वर्षों से होते आ  रहे नक़ल को अपनी दृढ प्रतिज्ञा से ख़त्म किया गया नतीजतन (जो रिजल्ट सालों से ८० प्रतिशत के आस  पास होता था) आज मात्र ३० प्रतिशत बच्चे पास हो रहे हैं”.

नीतीश ने खूबसूरती से  (या भौंडे कुतर्क से) इस आरोप का जवाब नहीं दिया कि जो बच्चे  आई आई टी मेन्स का इम्तेहान पास कर लेते हैं  वे राज्य के बोर्ड  की फिजिक्स की साधारण परीक्षा में कैसे फ़ेल  हो जाते है और कैसे ४५- वर्षीय गणेश कुमार कुल १३ लाख परीक्षार्थियों के बीच कला वर्ग में ८२.६ प्रतिशत पा कर टॉप करता है जबकि उसे संगीत का एक घराना नहीं मालूम न हीं उसे किसी वाद्ययंत्र बजाने या  राग –सुर में अंतर की समझ है, टॉप  कर जाता  है. मुख्यमंत्री  का तर्कविहीन (खूंटा वहीं गड़ेगा” वाले  तेवर में ) जवाब सुनिए: अरे! जैसे  हीं पता चला कि उसकी उम्र ज्यादा है तो  हमारे अधिकारी तत्काल छान-बीन किये और पता चला कि  उसने अपनी उम्र का फर्जी प्रमाण पत्र दिया है. उस के  खिलाफ तत्काल कानूनी कारवाई  की गयी”. नीतीश ने यह नहीं बताया इस तरह का व्यक्ति सभी विषयों में अच्छे अंक  पा कर टॉप कैसे कर सका? संवाद की  जमीन छोड़ कर तर्क को अन्य मुद्दे पर ले जाना वितंडावाद का दोष माना जाता है. पूछा  जा रहा है कि फर्जी व्यक्ति ने जो विषय की मौलिक जानकारी नहीं रखता टॉप कैसे  किया तो मुख्यमंत्री जी  अपनी पीठ थपथपाते हुए मीडिया की समझ को कोसते  हुए बताते हैं कि उनके अफसर कितने सक्षम हैं कि फ़ौरन कानूनी करवाई करते है. यह अलग बात है कि यह रहस्य  भी मीडिया ने हीं उजागर किया कि उसने फर्जी जन्म प्रमाण  पत्र  दिया है और यह कि विषयों के बारे में उसे कुछ नहीं आता. अफसर तो मीडिया के कवरेज से उपजे जन-आक्रोश को नहीं झेल पाने की  वजह से करवाई कर रहे हैं. अगर असली कारवाई करनी थी तो पूरे शिक्षा विभाग पर करनी चाहिए थी कि गलत मार्क्स कैसे मिले. हकीकत यह है  कि उन दिनों शिक्षकों की हड़ताल थी और इंटरमीडिएट की कापियां कक्षा  ६ और ७ के अध्यापकों और अध्यापिकाओं से जंचवायी  गयीं.
                                                                        
गौर कीजिये उस मुख्यमंत्री  के भौंडे बचाव पर जो न केवल तर्क-शास्त्र की अज्ञानता का शिकार है बल्कि सत्ता मद में सरकार की ग़लतियों को दिखाने का दोषी भी मीडिया  को मान रहा है. नीतीश के जवाब  पर सवाल खड़े होते हैं. पहला: नक़ल  रोकना सरकार की जिम्मेदारी है. नीतीश पिछले १५ साल में १२ साल से सरकार में हैं. तो अगर १२ साल नालायक बच्चे नक़ल करके नौकरियां पाते रहे और जो बच्चे  नक़ल नहीं करते थे  वे सही मूल्याँकन न होने के शिकार होते रहे तो यह अपराध  किसके सर जाना चाहिए? दूसरा: अगर नक़ल रोकी गयी और रिजल्ट अचानक ८० प्रतिशत से  ३० प्रतिशत गिर गया तो क्या इसका सीधा मतलब  यह  नहीं है  कि पिछले १५  साल में भी  पढाई  नहीं हुई  और आज भी शिक्षा विभाग की अकर्मण्यता  के कारण मात्र  ३० प्रतिशत बच्चे पास हो सके. तो क्या मीडिया को सिर्फ नीतीश के नक़ल रोकने का गुणगान करके चुप हो जाना चाहिए? तीसरा: मीडिया को कोसने के पहले इस  सवाल  का जबाव भी देना था  कि क्यों पिछले १२ साल के उनके शासन के दौरान शिक्षा की यह स्थिति हुई कि नक़ल होता रहा और जब नक़ल रोका गया तो रिजल्ट जमीन पर आ गया. मुख्यमंत्री की किस बात की तारीफ की जाये : नक़ल रोकने ११ साल अक्षम रहने की  या नक़ल रोक कर शिक्षा की गुणवता की कलाई खुल  जाने की?    

चौथा सवाल: क्या नक़ल रोकने की प्रशासनिक दृढ़ता  नीतीश बाबू ने स्वतः किया  है ?  जी नहीं, पिछले साल जब  एक चैनल के रिपोर्टर ने टॉप  करने  वाली रूबी से सवाल किया कि उसने कौन से विषयों ले रखे  हैं तो वह विषय का नाम तक ठीक से  नहीं जानती थी. फिर उसने एक और इंटरव्यू  में कहा कि  “  मैं तो पापा से खाली  पास  करवाने  को कहा था , उन्होंने तो टॉप हीं करवा दिया” तब जाके  बिहार  के शिक्षा माफियाओं के वर्चस्व का राज खुला और यह पता चला कि कैसे  सालों-दर-साल पैसे दे कर परीक्षा  में फर्जी ढंग से पास-फेल का खेल चलता रहा है. और कैसे शिक्षा विभाग  के अफसर और माफिया के साथ-गाँठ से बिहार में शिक्षा की यह हालत हुई है.  मीडिया में जब यह खबर राष्ट्रव्यारी स्तर पर चली तो “सुशासन बाबू”  के लिए मुंह छिपाने  की जगह नहीं थी नतीजतन नक़ल पर इस साल रोक लगी. लेकिन कापी जांचने में धांधली पर नहीं.

सत्ता सत्य को अलग चश्में से देखती है. बिहार के मुख्यमंत्री की माने तो अच्छी बात की तारीफ मीडिया को  करनी चाहिए. याने हांफ-हांफ  के मीडिया को  यह बताना था कि नीतीश बाबू की सरकार का कमाल देखिये कि सख्ती की वजह से बिहार का रिजल्ट गिरा. क्या प्रशासन एक बार  में एक हीं काम  करता है? इसका तो मतलब यह हुआ कि इस साल रिजल्ट गिरा, अगले साल पढ़ाई में गुणात्मक परिवर्तन होगा और उसके अगले साल कापियों  का मूल्यांकन भी ठीक तरीके से होगा. अगर मुख्यमंत्री का यह सोचना है तो अगले तीन साल के  लिए आप बिहार  से परीक्षा न दें क्योंकि नीतीश बाबू  शिक्षा में क्रांति के मुद्दे पर कटिबद्ध हैं !  

तभी तो मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस मे मीडिया से प्रति-प्रश्न किया, "आइडियल (आदर्श) व्यवस्था पूरे देश में एक जगह भी दिखा दीजिये?" जब शीर्ष सत्ता पर बैठा व्यक्ति अपनी अकर्मण्यता के लिये "आदर्श स्थिति के नैसर्गिक अभाव" का बचाव ले तो राज्य के भविष्य की चिन्ता होती है।     

lokmat