Monday 24 July 2017

देश में सब कुछ सही नहीं है !



देश में जी डी पी –आधारित विकास की गलत अवधारणा के कारण अक्सर हम मूल समस्या नज़रंदाज़ करते जा रहे हैं जिसकी वजह से समाज आज बारूद के ढेर पर खडा हो चुका है. हाल की चार घटनाएँ यह बात चीख-चीख कर बता रहीं हैं लेकिन ये चीख कई बार मोदी-नेतन्याहू गले मिलने के या मोदी द्वारा कोविंद को लड्डू खिलाने के टी वीं चैनलों  के 24x7 विसुअल्स –मिश्रित अलाप में दब जा रही हैं. इसके चार ताज़ा उदाहरण देखिये.

भारत की राजधानी दिल्ली में एक पूरा का पूरा मोहल्ला कई वर्षों से बिजली की चोरी करता रहा है. पिछले रविवार को जब बिजली विभाग की टीम छापा मारने गयी और साक्ष्य के लिए इस चोरी का विडिओ बनाने लगी तो लोगों ने लाठी-डंडे लेकर हमला कर दिया. जब टीम का प्रमुख  इंजिनियर गाड़ी से भगा तो बाइक से कुछ लोगों ने पीछा करके हमला किया़। हडबडी में गाडी एक पोल से टकरा गयी और इंजिनियर की मौत हो गयी. हम ७० साल के स्व-शासन में यहाँ तक आ गए हैं कि चोरी करते हैं और कोई सरकारी अमला अगर पकड़ने आया तो हमला कर उसे मारने का दम भी रखते हैं. ध्यान रहे कि बिजली की चोरी छिप कर नहीं और न हीं रात के अँधेरे में बल्कि खुले में ओवरहेड तार में कटिया फंसा कर दिनदहाड़े की जाती है. एक अन्य घटना लें. मध्य प्रदेश में एक महिला आई ए एस अधिकारी ने हाल हीं में जब खनन  माफिया का अवैध धंधा बंद करने के लिए उसकी ट्रकें पकड़ी तो उस पर हमला हुआ और अगले कुछ हफ्ते में उसने गुहार लगाई कि उसकी जान खतरे में है और उसे कहीं अन्यत्र तबादला कर दिया जाये. कुछ दिनों पहले मथुरा जा रही लोकल ट्रेन में एक सम्प्रदाय के युवक को दूसरे सम्प्रदाय के डेली यात्रियों ने मार डाला और जब पुलिस मारने वालों को गिरफ़्तार करने  पहुँची तो गाँव के  संप्रदाय विशेष के लोगों ने पुलिस टीम पर हमला कर के हत्यारोपी को छुड़ा लिया. लगभग वैसे हीं जैसे पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मे जब एक खूंखार अपराधी को पकड़ने पुलिस उसके गाँव गयी तो उसके सम्प्रदाय के ग्रामीड़ों ने पत्थरों और लाठियों से हमला कर पुलिस को बैरंग वापस कर दिया.

इन सब से अलग एक चौथी घटना हुई. अब कि बार शिव-भक्त कावड़ियों के जत्थों ने न केवल भगवा चोला पहना व भगवा ध्वज फहराया बल्कि उनकी गाड़ियों के आगे राष्ट्रीय ध्वज भी लगा था. अर्थात लाखों शिव-भक्तों द्वारा निकली जा रही यात्रा का राष्ट्रीयकरण हो गया. राष्ट्र और शिव-भक्त समतुल्य हो गए. नतीज़तन जब एक शिव-भक्त को किसी बाइक ने हल्की टक्कर मार दी तो सैकड़ों उन्मादी भक्तों ने घटना की तफ्तीश और यात्रा नियंत्रित करने में दिन-रात लगी पुलिस के एक सिपाही को सड़क पर पटक-पटक कर मारा. याने राष्ट्र ने बदला लिया. किसी एक भी जत्थे को इस बात के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया कि उसने फ्लैग कोड और संबंधित कानून का उल्लंघन क्यों किया. राष्ट्रवाद का यह नया स्वरुप था. अगले कुछ वर्षों में यह सर्वमान्य हो जाएगा कि शिव-भक्ति और राष्ट्रवाद एक हैं और जो शिव भक्त नहीं वह राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रद्रोही की जगह पाकिस्तान में है.  

इन चार ताज़ा घटनाओं से यह साफ़ सिद्ध होता है कि ७० सालों में हम अब न तो कानून से डरते हैं न उनके तथाकथित रखवालों (?) से  बल्कि इसके उलट कानून और पुलिस हमसे डरने लगी है. आज़ादी और गणतंत्र की यह भारतीय परिभाषा है जिसे अगर रोका न गया तो दुनिया में यह एक मिसाल बन सकती है.

इन चारों घटनाओं को अगर गौर से देखें तो साफ़ समझ में आयेगा कि देश में कानून , राज्य और उसके अभिकरणों का भय ख़त्म हो गया है. देश में कानून -व्यवस्था बनी रहे इसकी पहली शर्त है कि लोग उस संविधान और तज्जनित कानून और उसके अभिकरणों के प्रति आदतन निष्ठा रखें. चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के एक सिपाही के हाथ देने पर बड़ी बड़ी गाड़ियों में सैकड़ों लोग इसी आदतन निष्ठा की वजह से रूक जाते हैं. अगर एक आई ए एस अधिकारी को कानून का पालन करवाने में किसी खनन माफिया से अपनी सुरक्षा को लेकर इतना डर लगे कि वह सुरक्षा हीं न मांगे बल्कि तबादला भी तो हमारा जी डी पी कितना भी हो जाये माफिया का परोक्ष या अपरोक्ष शासन कोई रोक नहीं सकता. और गौर कीजिये कि अब अगर आम बिजली चोर गाँव को या अपराधी बचाने  वाले ग्रामीणों को इतनी तकता आ सकती है तो सत्ता में बैठे लोग क्या-क्या कर सकते हैं?

यही वजह है कि लालू यादव के परिवार के नाम जिस दिन उनके मित्र होटल मालिक ने पटना शहर की अपनी तीन एकड कीमती जमीन रजिस्ट्री की ठीक उसी दिन रेलवे बोर्ड ने आई आर सी टी सी को अपने दो होटलों के प्रबंधन और रखरखाव का जिम्मा उस होटल मालिक की कम्पनी को सौपने का आदेश दिया. लालू ने इतनी भी चिंता नहीं की कि कम से कुछ दिन बाद इस गोरख-धंधे को अंजाम दें ताकि आदान-प्रदान इतना स्पष्ट न दिखे. लालू के बताये मार्ग पर हीं ये ग्रामीण और बिजली चोर भी जा रहे हैं. अभी यह समझ में नहीं आ रहा है कि लालू या ऐसे राजनीतिज्ञ इसी जनता की उपज हैं या यह बिजली चोर जनता लालू की उपज.

लेकिंन यहाँ गौर करने की एक बात और भी है. सन २००४ मे नागपुर में करीब दो सौ महिलाओं ने भरी अदालत में हमला कर एक बलात्कारी को पीट-पीट कर मार डाला. उनका क्रोध यह था कि पुलिस उससे मिली हुई है और हर बार बलात्कार करने के बाद उसे अदालत से जमानत मिल जाती है और वह फिर झुग्गी-झोपड़ियों की महिलाओं को धमका कर बलात्कार करता है. इस काम में उसके गुर्गे हीं नहीं पुलिस के लोग भी साथ होते हैं. सन २०१६ में वाराणसी में एक १२ साल की बच्ची से बलात्कार और फिर हत्या की घटना मे  साक्ष्य और वैज्ञानिक जांच के आधार पर एक युवक को गिरफ्तार किया. यह ३० वर्षीय युवक मात्र दो माह पहले हीं बलात्कार के आरोप में दस साल की सजा काट कर आया था. जब पुलिस ने उससे पूछा कि बलात्कार के बाद उसने उस बच्ची की हत्या क्यों की तो उसका जवाब चौंकाने वाला था. उसने बताया कि पिछली बार बलात्कार के बाद उसने शिकार महिला को ज़िंदा छोड़ दिया था जिसके कारण उस महिला की गवाही पर उसे १० साल की सजा हुई लिहाज़ा अब उसने तय किया कि बलात्कार के बाद “शिकार” को वह जिन्दा नहीं छोड़ेगा.  

इस बीच हमारी देश की न्याय प्रणाली , अदालतें “बड़े-बड़े मुद्दों” पर फैसला देती रहीं जैसे हाल हीं में देश की सबसे बड़ी अदालत इस बात पर फैसला देने जा रही है कि “निजता की अधिकार मौलिक अधिकार का अंश है या नहीं”.    

lokmat