Monday 14 May 2018

चार साल मोदी सरकार: क्या बताएँगे !




इस माह के २६ तारीख़ को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने शासन का चार साल पूरा करेंगे तो कर्नाटक के चुनाव परिणाम आ चुके होंगे. अगला एक साल काम करने से ज्यादा काम बताकर जनता को प्रभावित करने का होगा और वह भी एक ऐसे समय में जब विपक्षी एकता की रूप-रेखा राजनीतिक क्षितिज में दिखाई देने लगी है. यही वजह हैं कि दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों से रिपोर्ट माँगी है कि परोक्ष या प्रत्यक्ष तौर पर पिछले चार साल में कितने रोजगार पैदा हुए हैं और सरकारी योजनाओं ने सकल घरेलू उत्पाद में क्या योगदान किया है. दरअसल मोदी जानते हैं कि विपक्ष के हाल में देश की हीं नहीं कई विश्व संस्थाओं—जैसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई एल ओ) -- ने भी भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है और आंकड़ें पेश किये हैं. दो माह पहले भी पी एम ओ की एक आतंरिक रिपोर्ट में तमान अच्छे और अपूर्व सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद क्रियान्वयन के स्तर पर अफसरशाही की उदासीनता की बात कही गयी थी. प्रधानमंत्री का दुःख उस समय उजागर हुआ जब विगत २१ अप्रैल को लोकसेवा दिवस (सिविल सर्विसेज डे) के अवसर पर अफसरों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा : सिस्टम बदलना होगा क्योंकि एक फाइल ३२ जगह घूमने के बाद भी “मोक्ष” नहीं पा रही है “.

अच्छी नीतियों की दो बानगियाँ देखें. आजाद भारत में पहली बार जबरदस्त कर सुधार के लिए जी एस टी लाई गयी, और कालाधन ख़त्म करने के लिए नोटबंदी. यह एक हाई स्कूल का बच्चा भी समझ सकता है कि ये दोनों नीतियां शुरू में जनता को तकलीफ भी देगी और भ्रष्ट लेकिन सिस्टम में ताकतवर लोगों को तकलीफ भी. सरकार को यह भी दर होगा कि वह जनाक्रोश की भागी बनेगी. लेकिन उद्देश्य बेहद सार्थक था लेकिन एक के कारण व्यापार पर असर पडा और दूसरी ने रोजगार की स्थिति और खराब की. इस का कारण अमल सही तरीके से न होना था. प्रधानमंत्री आवास योजना में राज्य और केंद्र-शासित प्रदेशों ने कुल ७४.४८ लाख आवास बनाने का लक्ष्य रखा लेकिन विगत ३१ मार्च तक (चार साल में ) मात्र ३३ लाख हीं बन सके. आरोप है कि इनमें से बड़ा भाग भ्रष्टाचार और गलत आंकड़ों की भेट चढ़ गया जैसा कि शौचालयों को लेकर भी आरोप है. आज शौचालय के नाम पर खोखे खड़े हैं जो आंधी में ढह रहे हैं.
पी एम् ओ ने इस रिपोर्ट में अफसरशाही उदासीनता पर नाराजगी भी व्यक्त की. बजट में इसीलिये दो नयी योजनायें दी ----- दस करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा मुफ्त (दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य गारंटी योजना ) और किसानों को उनकी लागत का १५० प्रतिशत समर्थन मूल्य याने ५० प्रतिशत लाभ. अगर ये योजनायें चुनाव के साल में १० प्रतिशत भी अमल में आ सकें तो मोदी सन २०१४ से ज्यादा मजबूत स्थिति में हो सकते हैं लेकिन न तो यह स्पष्ट हुआ किसानों की लागत के लिए कौन सा फार्मूला लागू होगा ---- अलाभकारी ए-२ प्लस ऍफ़ एल या स्वामीनाथन द्वारा अनुमोदित सी -२ जो वाकई किसानों की तकदीर बदल सकता है. रबी खासकर गेहूं की खरीद के डेढ़ माह ख़त्म होने को हैं. साथ ही दस करोड़ परिवार के लिए स्वास्थ्य सेवा केवल पात्रता वाले कागज के टुकडे से नहीं बल्कि अस्पताल और डॉक्टरों की उपलब्धता से होता है. अभी तक इस दिशा चार माह बीतने के बाद भी कुछ भी काम नहीं हुआ है.
ऐसा नहीं है कि योजनाओं में कमी है या उन्हें अमल में लाने में कोई राजनीतिक इच्छा -शक्ति का कमी है. दरअसल जो तथ्य मोदी या पार्टी अध्यक्ष अमित शाह नहीं समझ रहे हैं वह है प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं और जन-प्रतिनिधियों का कट्टर हिन्दुत्त्व के भाव, संकेत और प्रतीकों को इन योजनाओं के मुकाबले तरजीह देना और हर दिन एक नया विवाद खड़ा करना ---कभी जिन्ना के नाम पर तो कभी लव जिहाद बता कर. जन-प्रतिनिधि शायद हीं मोदी के प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर अधिकारियों या जनता से संपर्क करता है. अधिकांश तो इन योजनाओं के बारे में जानते भी नहीं.

आइये , एक निरपेक्ष विश्लेषण के लिए तथ्यों पर गौर करें. एक हीं दिन अख़बारों में तीन ख़बरें थी. भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने देश के एक बड़े हिंदी दैनिक को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा :जनता विकास चाहती है और भाजपा विकास करना जानती है. प्रजातंत्र को मजबूत करने में देश की सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया का यह सन्देश बेहद गंभीरतापूर्ण, समीचीन और शिक्षाप्रद है. दूसरी खबर में एक वीडिओ वायरल हुआ और ख़बरों में आया जिसमें इसी पार्टी का एक सांसद किसी को आदेश दे रहा है “सभी गाड़ियाँ रोक दो. मुझे १० मिनट में वैशाली एक्सप्रेस यहाँ चाहिए”. इस ट्रेन से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पाण्डेय सांसद के क्षेत्र में एक कार्यक्रम में भाग लेने उस स्टेशन पर आ रहे थे. वीडियो वायरल होने के कुछ घंटे बाद जब एक मीडियाकर्मी ने पूछा तो उनका जवाब था “मैं अपने एक कार्यकर्त्ता से बात कर रहा था न कि किसी रेल अधिकारी से”. याने अपने बचाव में दिया गया जबाव पहले वाले से भी ज्यादा डरावना ... कार्यकर्ता गाडी रोक सकता है या वैशाली एक्सप्रेस सांसद की इच्छानुसार मिनटों में इच्छित स्टेशन पर ला खडा कर सकता है. तीसरी खबर थी इसी पार्टी के एक विधायक ने अपनी एक जनसभा में बाल विवाह फिर से शुरू करने की वकालत इस आधार पर की कि ऐसा करने से “लव जेहाद रूक जाएगा”. विधायक ने बाल विवाह निरोधक कानून को बीमारी बताई और इस कानून को ख़त्म करना निदान. ८९ वर्ष पहले सन १९२९ में जब ब्रितानी हुकूमत ने यह कानून बनाया था तो सन १९२५ में केन्द्रीय लेजिस्लेटिव असेंबली में उस समय भी कुछ हिन्दू सदस्यों ने जैसे टी रंगैयाचारी आदि ने इसका विरोध यह कह कर किया था अगर लडकी दस साल से अधिक की हो जाती है तो कोई उससे शादी नहीं करता—खासकर जमींदार. आज कई दशकों बाद एक विधायक भी उसी कानून को बीमारी की जड़ बता रहा है. यह कुछ ऐसा हीं समाधान है कि अगर बलात्कार हो रहा है तो लड़कियों को घर से बाहर पढने भेजते हीं क्यों हो.

ये सांसद या विधायक अगर उसी शिद्दत से जिससे ट्रेन रुकवाने का माद्दा रखते हैं , प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों पर सरकारी तंत्र से अमल करवाते तो मोदी का शसन दुनिया में एक एक आदर्श शसन माना जाता. लेकिन ये शायद हीं अपने क्षेत्र में मोदी के कार्यक्रम और नीतियों के बारे में जनता को बताने गए हों या ठीक से जानते भी हों लेकिन सुशासन पर कलक के रूप में अपनी मोहर जरूर लगा दे रहे हैं.

आज अगर मोदी को २०१४ वाली जन-स्वीकार्यता फिर से हासिल करनी है तो पूरे एक साल तक कट्टर हिन्दुवाद के तथाकथित अलंबरदारों पर पाबन्दी लगानी होगी और स्वास्थ्य बीमा योजना और किसानों की आय बढ़ने वाली योजनाओं पर २४ घंटे काम करना होगा भाजपा के विधायक और सांसदों को क्षेत्र में जा कर इन कार्यों का प्रचार और अमल के स्तर पर निगरानी करनी होगी.

lokmat