Monday 14 March 2016

बैंकों ने दोष कानूनी खामियों पर मढ़ा : अदालतें तारीख पर तारीख देती रही



विजय माल्या प्रकरण में भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्तमान सरकार को पाक साफ़ बताने के क्रम में कहा “माल्या पर कोई मुकदमा नहीं था ना हीं  किसी अदालत का आदेश था कि उसे विदेश जाने से रोका जाये”. कितना निश्छल जवाब है. एक टीवी डिबेट मे  इतने हीं उग्ररूप से "निश्छल” आरोप था माल्या के वकील का उन लोगों पर जो माल्या को गलत कह रहे हैं. उसने कहा “क्या इस देश में कानून का राज है कि नही? . किस कानून के तहत माल्या को भगोड़ा, देश का पैसा हड़पने वाला कहा जा रहा है, किस अदालत से उन्हें सजा हुई है? क्या इस देश “बनाना रिपब्लिक” (ऐसा देश जहाँ कुछ भी कानून के मुताबिक न होता हो) बनाना चाहते हैं? ऐसा लगा मानो जो मीडिया या जो लोग इस मुद्दे को उठा रहै है वही सजा का हकदार है क्योंकि वे माल्या जैसे "साधू" को गलत बता रहा है. यह अलग बात है कि बैंक ने देर से ही सही माल्या को "विलफुल डिफ़ॉल्टर " घोषित किया।

जितना जेटली सही थे उतना हीं वह वकील भी. बस एक ही प्रश्न उन दोनों से पूछा जाना था : अगर कानून के रखवाले काम न करें और क़ानून तोड़ने वाला भ्रष्ट सिस्टम के सहारे छुट्टा घूमता रहे तो आरोप क्या अपराध के शिकार लोगों पर लगेगा या कानून के रखवालों की गलती मानी जायेगी? आज प्रश्न यह है कि देश का ९०९० करोड रुपया क़र्ज़ के रूप में लेने वाला माल्या अगर आज उन पैसों को नहीं देता और मान लीजिये क़र्ज़ देने वाले बैंक उस क़र्ज़ को गैर-उत्पादक संपत्ति (नॉन-प्रोडक्टिव एसेट) के रूप में माफ़ कर देते हैं तो कोई भी गलत नहीं माना जाएगा. माल्या ने क़र्ज़ दिया नहीं, बैंक क़र्ज़ वसूल नहीं कर पाई. दोनों खुश. मारी गयी जनता जिस के टैक्स से यह सब कुछ होता रहा.

लिहाज़ा यह तय हो गया कि माल्या कम से कम अभी तक कानूनन गलत नहीं है. तो इसका मतलब मीडिया एक निहायत शरीफ , कानून के अक्षरशः पालनकर्ता को बेवजह सूली पर टांग रहा है. ऐसे में मीडिया पर अवमानना का मुकदमा चलना चाहिए?

अब जरा वस्तुस्थिति पर आयें. राज्यसभा की वेबसाइट पर माल्या की संपत्ति का जिक्र है जिसमें माल्या ने बताया है कि उसकी कुल संपत्ति जिसमें कुछ शेयर भी हैं मात्र ९००० रुपये की है. याने इस व्योरे के आधार पर माल्या गरीबी की सीमा रेखा से बहुत नीचे के हैं और उन्हें सरकारी मदद से मुफ्त अनाज और आर्थिकरूप से कमजोर (ई डब्ल्यू एस ) का मकान दिया जाना जाहिए. यह अलग बात है कि आज १७ बैंकों के कंसोर्टियम जिसका नेतृत्व स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया कर रहा है का कहना है कि माल्या और उसकी कंपनियों को कंसोर्टियम ने ९०९० करोड़ का क़र्ज़ दिया है. उससे भी आगे , इस राशि में १५०० करोड़ वह  ऋण है जो माल्या ने व्यक्तिगत गारंटी दे कर लिया है. 

भ्रष्टाचार करने वालों और करवाने वालों का फंसने के बाद एक तकिया कलम होता है--- सिस्टम हीं गलत था या कानूनी व्यवस्था में खामियां थी. चूंकि सिस्टम या व्यवस्था कोई व्यक्ति नहीं होता लिहाज़ा आरोपियों को यह डर नहीं होता कि उन्हें प्रतिकार झेलना पडेगा लिहाज़ा अपने को पाक -साफ़ बताने के लिए यह सबसे सहज रास्ता दिखाई देता है.

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जो १७ बैंकों की कंसोर्टियम का मुखिया है ने भी यही तरीका अपनाया. “हम तो क़र्ज़ वापसी के लिए दिन रात एक कर २० मुकदमें दायर किया पर कानून के प्रक्रिया में देरी की वजह से हमारे हाँथ बंधे हुए थे” मुंबई में बैंक के अधिकारियों का नया जवाब है.     

इनकी माने तो विभिन्न न्यायालयों और प्राधिकरणों (ट्रिब्यूनल) में १८० बार मामले में अगली तारिख दी  गयी जबकि ५०० बार मामले की सुनवाई हुई.

बैंक का कहना है कि एक बार मुंबई हाई कोर्ट से माल्या की सम्पत्ति –गोवा स्थित किंगफ़िशर गाँव – को कुर्क करने के आदेश हुए लेकिन स्थानीय कलेक्टर उस आदेश पर अमल के लिए आठ बार सुनवाई की और अंत में छुट्टी पर चला गया.

बैंक इस आरोप को भी ख़ारिज कर रहा है कि माल्या का पास पोर्ट जब्त करने के लिए अदालती आदेश हासिल करने में दे हुई. बैंक के अनुसार २६ फ़रवरी को पता चला कि माल्या, उसकी कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स और डियाजियो के बीच समझौता हुआ है और उसी दिन बैंक बंगलुरु –स्थित डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डी आर टी) में अपील करने पहुंचा. पर इस प्राधिकरण ने मार्च ८ की तारीख दे दी. लेकिन बाद में बैंक की प्रार्थना पर सुनवाई के लिए फरवरी २९ की तारिख मुक़र्रर की.
बहरहाल जिस दिन माल्या लन्दन जाने वाले जहाज में बैठ चुका था, डी आर टी के सामने बैंक ने चार प्रार्थना पत्र दिए लेकिन ट्रिब्यूनल ने उसके पासपोर्ट जब्ती के मुद्दे पर नहीं बल्कि इस बात सुनवाई स्वीकार की कि तीसरे पार्टी को डियाजियो और यूनाइटेड स्पिरिट बे बीच हुई डील में क्या और कैसे रहत दी  जाये. यह अलग बात है कि ट्रिब्यूनल ने इस सुनवाई के लिए भी अगली तारिख दे दी.

  अजीब हास्यास्पद स्थिति इस देश में कानून के रक्षकों की. आज कांग्रेस संसद मे यह पूछ रही है कि माल्या कैसा भागा या भगा दिया गया? सन २०१२ में यही पार्टी सत्ता में थी और यही माल्या कर्ज में आ कंठ डूबा था लेकिन किसी सी बी आई या बैंक ने आवाज नहीं उठाई थी. इधर वर्तमान सरकार पर भी सवाल है कि अगर पूर्व सरकार नालायक थी तो क्या वर्तमान सरकार को भी निष्क्रीय होने का लाइसेंस मिल जाता है. कैसे सी बी आई के नाक के नीचे से माल्या सात सूटकेस के साथ देश से दिन-दहाड़े निकल जाता है. वर्तमान सरकार का यह जवाब कि माल्या के खिलाफ किसी भी अदालत से ने पासपोर्ट जब्त करने का आदेश नहीं दिया था. यही तो मूल प्रश्न है कि क्या सी बी आई और बैंकों को मालूम नहीं था कि वह भाग सकता है. क्या अदालत के संज्ञान में सही तथ्य लाये गए थे. क्यों सी बी आा अक्तूबर२०१५ में केस दर्ज कर लुकआउट नोटिस जारी करती है और मात्र एक महीने में उसे बदल कर भागने से रोकने का पैरा हटा देती है? लिहाज़ा दोनो सरकारें हीं बराबर की गुनाहगार हैं.   

यहाँ एक कानूनी पेंच है. सी बी आई की लुक आउट नोटिस एअरपोर्ट पर तैनात इमीग्रेशन अधिकरियों को
यह अधिकार नहीं देती कि किसी नागरिक को विदेश जाने से रोका जाये. वह सिर्फ यह सूचना देते है कि व्यक्ति विदेश जा रहा है. हालाँकि सी बी आई को मार्च १ , २०१६ को खबर लग गयी थी कि माल्या विदेश जा रहा है. क्या इस दौरान अदालत से आदेश प्राप्त नहीं किया जा सकते थे?.
            माल्या को बैंकों ने व्यक्तिगत गारंटी पर कैसे १५०० करोड़ का लोन दिया ?
            ----------------------------------------------------------------------------------- 
क्या बैंक पाक-साफ़ हैं? विजय माल्या ने १७ बैंकों को कुल ९००० करोड़ से ज्यादा का लोन लिया। सार्वजनिक बैंकों द्वारा लोन देने की एक हीं शर्त पूरी दुनिया में है. लोन वापसी सुनिश्चित करने के मानदंडों पर क़र्ज़ लेने वाला कितना खरा उतरता है. पर ताज्जुब की बात यह है जब यह तीन साल पहले पहले पूरी दुनिया को पता था कि माल्या की हालत कैसी है तो व्यक्तिगत गारंटी पर बैंकों ने कैसे १५०० करोड़ का ऋण दिया? अब मुश्किल यह है कि कानूनन बैंक माल्या की संपत्ति से यह क़र्ज़ अदा नहीं करवा सकता महज़ उसे बेंचने की प्रक्रिया रोकवा सकता है. बैंकों ने यह भी नहीं किया.
              
 
lokmat