Friday 22 December 2017

२ जी स्पेक्ट्रम फैसला : तो फिर गलत कौन था !


वो वाकया भूकंप से किसी बड़ी ईमारत में आई दरार की मानिंद था. एक आरोप (बल्कि सही शब्द होगा चार्ज ) लगा वह भी एक बेहद मकबूल संस्था --- कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सी ए जी) --- द्वारा. बताया गया कि कुछ लोगों को लाभ पहुँचाने के लिए प्रक्रिया बदली गयी, छः साल पुराने दर पर स्पेक्ट्रम आबंटित किये गए और इस तरह देश को १.७६ लाख करोड़ (यह उस समय के भारत के रक्षा बजट से भी अधिक की राशि है) का चूना लगाया गया. (बोफोर्स घोटाला जिसमें राजीव गाँधी की सरकार चली गयी मात्र ६५ करोड़ का था और वह भी कभी सिद्ध नहीं हो पाया). देश के १२० करोड़ लोगों की प्रजातंत्र, न्याय और सत्ता के प्रति भावना बदलने लगी. वह इतिहास का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार माना गया. जाहिर है मैंने भी सभी उस वक्त के रिपोर्टरों की तरह दिन रात इसे एक लम्हे पर कवर किया.लगा कि “कोल्युसिव” किस्म के भ्रष्टाचार की यह गंगोत्री है जिसे आने वाली पीढी समाजशास्त्र , राजनीति शास्त्र और लोक शासन के एक विषय के रूप में हीं नहीं कानून और अपराधशास्त्र के पाठ के रूप में पढेगी. आज सी बी आई कोर्ट ने कहा वह पूरा आरोप देश की सर्वोत्तम जांच एजेंसी –केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी बी आई – सिद्ध नहीं कर पाई. लिहाज़ा सभी दोषी मुक्त कर दिए गये.

प्रजातान्त्रिक व्यवहार के सभी मूल्य टूट गए थे. जब तत्कालीन मंत्री ए राजा को पुलिस अदालत ले जा रही थी तो अखबरों और चैनलों के रिपोर्टरों के शब्द थे ---- यही है वो पौने दो लाख करोड़ रुपये का चुना लगाने वाला राजा. जब जनमत गुस्से में हो तो मीडिया बेलगाम हो जाता है. या यूं कहिये कि मीडिया जब सभ्यता की हदें पार कर जाता है तो जनमत का गुस्से में आना स्वाभाविक है.

लेकिन आज का सी बी आई कोर्ट का फैसला हम सब को आइना दीखता है. इसका मतलब क्या है?मतलब वह जलजला गलत था, सी ए जी गलत थी , मीडिया का वह महीनों का कवरेज गलत था ,  संसद में कई हफ्ते चला हंगामा गलत था और तब इन सबसे बनने वाला जनमत गलत था और अंत में इस जनमत से उद्भूत २०१४ के चुनाव में यूं पी ए की हार भी गलत थी.

तो सही क्या था. यह इस पर निर्भर करेगा कि सरकार (सी बी आई) फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में या सुप्रीम कोर्ट में अपील करती है कि नहीं. जरूरी नहीं कि सत्य वहां भी मिले क्योंकि अगर हाई कोर्ट ने जो भी फैसला दिया , उससे प्रभावित पार्टी सुप्रीम कोर्ट जायेगी. चूंकि यह अपील दर अपील की अंतिम मंजिल सुप्रीम कोर्ट है लिहाज़ा सत्य वहां जा कर ठिठक जाता है या वहीं पर अंतिम सत्य का फैसला होता है. यह अलग बात है कि अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट के एक महान जज रोबर्ट जैक्सन ने कहा था “हम अंतिम सत्य इसलिए नहीं है कि हम अमोघ (कभी गलत न करने वाले ) हैं बल्कि इसलिए कि हम अंतिम हैं”.

तो मीडिया सहित क्या जरूरी नहीं कि जब तक अंतिम सत्य न आ जाये वह किसी को दोषी करार न दे , क्या यह ज़रूरी नहीं कि किसी ए राजा सूली पर महज किसी संस्था द्वारा आरोप लगाने पर न टांगा जाये.
लेकिन इसमें भी एक ख़तरा है . भारत में अगर मीडिया इसी बाबा के खिलाफ कम ऊँची आवाज में  बोले तो उसके गुर्गे भावना आहात होने का आरोप  कर देते हैं . आसाराम दशकों तक मीडिया को धमकाता रहा और राम रहीम के दरबार में नेता वोट के लिए मत्था टेकते रहे . लेकिन जब मीडिया को कुछ विश्वसनीय साक्ष्य मिल गए तो उसकी आवाज बुलंद हुई और ये बाबा आज जेल में हैं. प्रश्न यह है तो फिर मीडिया कब अपनी आवाज ऊँची करे ? 

सी बी आई अदलत के डेढ़ हजार से ज्यादा पृष्ठों वाले २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आये फैसले में अदलत ने सीधे इस जाँच एजेंसी को हीं कटघरे में खड़ा किया है और साथ हीं टेलीफोन विभाग के अधिकारियों को अज्ञानता का दोषी ठह्रह है. “न तो इन्हें अपने हीं कानून में शब्दों के प्रयोग या उनके मायने मालूम हैं न हीं ये उन्हें सही जगह पर इस्तेमाल करते रहे हैं”. अदलत ने कहा सम्बंधित कानून की धारा ८ में “असोसिएट” , “प्रमोटर” या “स्टेक” शब्दों का प्रयोग है लेकिन इन अधिकारियों को इनके मायने नहीं मालूम. साथ हीं तमाम अधिकारियों द्वारा फाइल पर जो टिप्पणियां की गयी हैं उनमें से अधिकांस समझ से परे हैं क्योंकि उनकी लिखावट समझ से परे हैं. फिर कुछ ऐसी हैं जो मंत्री के समझ में आ हीं नहीं सकती क्योंकि बेहद टेक्निकल भाषा में हैं. ये जानबूझ कर ऐसे लिखी गयी हैं ताकि जब भी चाहे जैसे भी चाहें उनके अर्थ निकले जा सकें. यह सब देखने के बाद यह स्थापित नहीं हो सकता कि मंत्री ए राजा दोषी हैं. कट ऑफ तिथि तय करने में भी कहीं से ए राजा के दोषी होने के सबूत नहीं मिल सके. साथ हीं सी बी आई यह स्थापित करने में असफल रही कि जो दो सौ करोड़ रुपये कलैगनर टी वी में आये हैं उनका कोई सम्बन्ध २ जी स्पेक्ट्रम के घोटाले से हासिल तथाकथित लाभ से है.

अदलत ने दरअसल सी बी आई को पूरी तरह कटघरे में खड़ा किया है और साथ हीं यह नहीं कहा है कि सबूतों के आभाव में अभियुक्तों को छोड़ा जा रहा है बल्कि उनके बरी करने को बगैर किसी शर्त आदेशित किया है.

आज़ाद भारत में सी बी आई के खिलाफ शायद यह पहला इतना बड़ा आक्षेप है जिससे इस संस्था को उबरने में काफी वक्त लग सकता है. 

jagran/ lokmat