अभी दो हफ्ते भी नहीं हुए जब भारतीय संविधान को कांग्रेस की देन बताते हुए पार्टी नेताओं ने इसकी संस्थाओं के प्रति सम्मान की सीख सत्ता पक्ष को दी थी. लेकिन ८ दिसंबर,२०१५ को संसद में पैदा किया गया गतिरोध कांग्रेस के ठीक विपरीत आचरण का प्रतीक बन गया. लगभग १३० साल पुरानी कांग्रेस पार्टी कहीं बौद्धिक जड़ता की शिकार होती जा रही है. उसे मुद्दे और उनके प्रति समाज में अपेक्षित प्रतिक्रिया की समझ कम हो गयी है. यह समझ हीं किसी राजनीतिक पार्टी के प्रसार, उसके दीर्घायु होने और उसकी विश्वसनीयता की कसौटी होती है. जिन दलों में शीर्ष स्तर पर जन-जीवन से कटे लोग पार्टी के नीति-नियंता बन जाते हैं उन दलों की समझ क्षीण हो जाती है. इस समझ से पैदा हुई राजनीतिक सूझ-बूझ, जिद की हद तक जन –नैतिकता के मानदंडों पर खड़े दिखने की ललक और दूरदर्शी रणनीतिकारों का आज कांग्रेस में नितांत अभाव है. प्रतिस्पर्धी राजनीति का, जो भारत में प्रैक्टिस की जाती है, पहला तकाजा है कि चूंकि राजनीति में जन-स्वीकार्यता जन-संदेशों का खेल है लिहाज़ा हर पार्टी दूसरी पार्टी की गलतियों का फायदा उठती है, अपने से कोई गलत सन्देश न देने की कोशिश करती है और और दूसरी पार्टी की छोटी गलती को ताड़ बना कर परोसती है. लेकिन इस जद्दो-जेहद के भी कुछ नियम होते हैं. इस लड़ाई में संवैधानिक मान्यताओं, प्रजातान्त्रिक परम्पराओं या तत्कालीन मानवीय मूल्यों की अवहेलना हुई तो उस पार्टी या उसके नेता से जनता मुंह मोड़ने लगती है.
एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (ए जे एल) – यंग इंडियन्स विवाद को कांग्रेस नेतृत्व जिस तरह “हैंडल” कर रहा है वह सिद्ध करता है कि इस पार्टी की समझ कुछ ऐसे नेताओं में जिनका जन जीवन ए सी कमरों से बाहर नहीं आया हो, के बीच महदूद रह गयी है. तभी तो हाई कोर्ट द्वारा अपील ख़ारिज होने के बाद पार्टी के शीर्ष लोग रात भर “स्ट्रेटेजी” बनाते रहे और निकला एक निहायत बेहूदा और पार्टी के लिए घातक कदम. पार्टी नेतृत्व इसे "प्रतिशोध की राजनीति" बता रहा है़।
पूरी दुनिया में एक स्थापित लोक- सिद्धांत है कि अगर आप पर कोई आरोप लगे तो पहले उसे तर्कों के आधार पर गलत सिद्ध करते हैं और फिर अगर ज़रुरत पड़े तो कुछ समय बाद उस गलत आरोपों के सूत्रधारों के नाम बताते हैं, उनकी संलिप्तता और उस संलिप्तता का आशय बताते हैं. परन्तु कांग्रेस के “महान” रणनीतिकारों ने रात भर जग कर इसके उलट पहले सरकार की मंशा को कोसा, फिर न्यायपालिका पर परोक्ष रूप से आरोप चस्पा किया (क्योंकि न्यायपालिका के आदेश को अगर सरकार से जोड़ा जाएगा तो नागरिक शास्त्र के कक्षा १० का बच्चा भी समझ सकता है कि यही सन्देश जाता है) और फिर संसद का काम-काज टप किया. मुकदमें को लेकर तैयारी का यह आलम है कि हाई कोर्ट से अपील ख़ारिज होने के बाद “मरता क्या न करता” के भाव में निचली अदालत में सोनिया गाँधी के पक्ष प्रस्तुत किया जा रहा था. जब मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने हाई कोर्ट के आर्डर की प्रतिलिप चाही तो वह प्रतिलिपि बचावपक्ष के पास नहीं थी. उसे भी उपलब्ध कराया तो आरोपकर्ता सुब्रह्मनियम स्वामी ने.
ज़रा गौर करें. यह विवाद न्यायपालिका के जेरे बहस है. ट्रायल कोर्ट ने कांग्रेस के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष क्रमशः सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी और तीन अन्य कांग्रेस नेताओं को इस आधार पर अदालत में उपस्थित होने का सम्मन भेजा है कि वे यंग इंडियन्स में प्रमुख शेयरहोल्डर्स हैं. उन पर आरोप है कि उन्होंने ए जे लिमिटेड के १००० से ज्यादा शेयरधारकों से पूछे बिना सारे शेयर सोनिया –राहुल (दोनों के कुल ७६ प्रतिशत शेयर) वाली कंपनी –यंग इंडियंस –को दे दिए और ए जे लिमिटेड की अचल संपत्ति---खासकर दिल्ली के बहादुर शाह जफ़र मार्ग स्थिति हेराल्ड हाउस और लखनऊ के कैसरबाग स्थिति नेहरु भवन और बगल की जमीन ---का सही आंकलन नहीं किया गया. ऊपरी अदालत में अपील करना हर व्यक्ति या संस्था का अधिकार है. इन नेताओं ने दिल्ली हाई कोर्ट में उपस्थिति के आदेश के खिलाफ अपील की लेकिन वह ख़ारिज हो गयी. बल्कि हाई कोर्ट ने केस की मेरिट में न जाते हुए भी अपील ख़ारिज करने का कारण बताते हुए मामले में आपराधिक तत्व होने की बात कही.
नाराज कांग्रेस ने पूरे दिन देश की संसद नहीं चलने दी. लोक सभा में पांच बार और राज्य सभा में तीन बार व्यवधान रहा नतीजतन पूरा काम काज बाधित रहा. लेकिन बगैर यह बताये हुए कि नाराजगी किस बात पर है कांग्रेस ने व्यवधान जारी रखा. क्या कांग्रेस इस आधारभूत बात को नहीं समझ पा रही है कि अदालत की कारवाई को लेकर संसद को कैसे बाधित किया जा सकता है या सरकार पर “प्रतिशोधात्मक राजनीति” का आरोप कैसे लगाया जा सकता है? फिर ट्रायल कोर्ट तो छोडिये , दिल्ली हाई कोर्ट ने भी व्यक्तिगत उपस्थिति से राहत की अपील न केवल ख़ारिज की बल्कि मामले में “आपराधिक अंश” की बात भी कही. क्या इतनी पुरानी पार्टी से, जो गणतंत्र बनाने के ६५ साल में तीन –चौथाई से ज्यादा काल तक शासन में रही हो यह उम्मीद की जा सकती है कि न्यायपालिका ऐसी संस्था को राजनीतिक तवे पर सेंके और वह भी बगैर किसी आधार के?
क्या सरकार यह केस लड़ रही है? क्या सुब्रह्मनियम स्वामी को यह अधिकार नहीं है कि व्यक्ति और वकील के रूप में इस मामले को न्यायपालिका के पास ले जाएँ? और अगर भारतीय जनता पार्टी के नेता के रूप में भी यह मामला अदालत में उठा रहे है या फिर (तर्क के लिए) अगर भारतीय जनता पार्टी भी ऐसा कर रही है क्या यह गैर-कनोनी है? अगर ऐसा हो तो क्या यह कहा जा सकता है कि अदालत का फैसला “राजनीतिक प्रतिशोध” का प्रतिफल है? सोनिया के सलाहकारों ने तीन गलतियाँ की. न्यायपालिका की गरिमा गिराने की कोशिश की, संसद में व्यवधान का औचित्य न सिद्ध करके जनता की नज़रों में गिरी (कल जब जी एस टी पर भी विरोध करेगी तो जनता इसे अब औचित्यपूर्ण नहीं मानेगी) और तीसरा: अगर निचली अदालत के खिलाफ अपील करने और हार जाने के बाद संसद में व्यवधान की जगह चुपचाप निचली अदालत के सम्मान का भाव प्रदर्शित करते हुए सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी अदालत पहुँचते तो जन-समर्थन इन कांग्रेस नेताओं के पक्ष में होता. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि “वह डरेंगी नहीं , वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं”. उन्हें याद करना चाहिए कि इंदिरा गाँधी ने अदालत का सम्मान करते हुए अपने को उपस्थित किया और उससे उपजा जन समर्थन उन्हें फिर वापस सत्ता में लाया.
फिर सन १९७७ और आज में अंतर है. मीडिया पलपल की खबर दिखा कर जन चेतना और समाज की तर्क शक्ति में व्यापक बदलाव कर चुकी है. अब आम जनता को पता है कि भ्रष्टाचार के मामले में अगर देश की निचली अदालत मात्र व्यक्तिगत उपस्थिति का सम्मन जारी करे और हाई कोर्ट उसके खिलाफ “आरोपी” के अपील को सख्त लफ़्ज़ों में ख़ारिज करते हुए कहे कि मामले में आपराधिक तत्व दिखाई देते हैं तो उसे राजनीतिक प्रतिशोध कह कर बचाव करना न्यायपालिका की अवमानना है.
संसद व्यवधान के बाद अपने पक्ष में कांग्रेस का तर्क प्रभाव डाल सकता था अगर यह अदालत के फैसले के बाद मीडिया के जरिये जनता तक अपनी बात तार्किक रूप से पहुंचाई गयी होती. कांग्रेस के तीन तर्क हैं. पहला: यंग इंडियन्स एक नॉन-प्रॉफिट संस्था है जो सेक्शन २५, कम्पनीज एक्ट, १९५६ के तहत गठित हुई है जिसकी सम्पत्ति या लाभ कोई सदस्य नहीं ले सकता; दूसरा, यंग इंडिया ने कोई ट्रांजेक्शन नहीं किया है. तीसरा, जो रियल स्टेट अर्जित हुई है वह भी कांग्रेस की हीं समय समय पर की गयी आर्थिक मदद का हीं नतीजा है. नेहरु परिवार और कांग्रेस आज तक भी अलग करके के जनता तो छोडिये कांग्रेस के लोग भी नहीं देख पा रहे हैं. लिहाज़ा सोनिया जब ए जे लिमिटेड था तो भी मालिक थी और यंग इंडियन के हाथ में आ गया तो भी मालिक वही हैं.
बहरहाल इस गलत “स्ट्रेटेजी” के चलते अब कांग्रेस पर नैतिक दबाव और साथ हीं जन मत का दबाव होगा कि जी एस टी बिल पास करे नहीं तो सन्देश यह जाएगा कि अपने नेताओं को संकट से उबरने के लिए यह कांग्रेस जन-कल्याण की अनदेखी कर सरकार पर अनैतिक दबाव बना रही है.
jagran
Bahut hi shandar aur congress ke liye bhavisya ka rasta batane wala lekh, congress party ko uprokt muddon par gambhirta se bichar karni chahiye, ki parivar aur party se bada desh aur sansad hai. aur sr uprokt lekh ya anya sabhi lekh ka font kaafi chhota hai jisse padhne me kaaafi kathinai aati hai, aur kaafi mashshkat ke baad padh paata hun, agar akshar bada ho jaaye to sone pe suhaga hoga. baaki aapko pranam, dandwat.
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