इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विकास की पूरी समझ है. उनकी मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसी योजनाएं देश की तकदीर बदल सकती हैं. मुश्किल यह है कि बीच-बीच में उनकी पार्टी सदियों पीछे चली जाती है, पार्टी के नेता लव जिहाद, घर वापसी जैसे मुद्दे उठाने लगते हैं. देश के मुसलमानों को पाकिस्तान भेजे जाने की बातें होने लगती हैं. इस तरह के बयानों पर कोई रोक भी नहीं लगाई जाती. ऐसे भड.काऊ बयान देने वाले पार्टी के एक भी महंत या साध्वी पर भाजपा ने कार्रवाई की होती तो आज उसे बिहार में यह दिन देखने की नौबत नहीं आती.
बिहार चुनाव में बैकवर्ड कंसॉलिडेशन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो कि शुभ लक्षण नहीं है. निश्चित तौर पर लालू प्रसाद यादव जातिवादी राजनीति करने में माहिर हैं, वर्ना कौन सोच सकता था कि कुर्मी और यादव एक साथ आ जाएंगे? लेकिन अगर नीतीश कुमार ने जातिवादी राजनीति की तो भाजपा भी तो जीतन राम मांझी को अपने साथ ले आई? इसलिए वह इसका ठीकरा दूसरों के सिर नहीं फोड. सकती.
ऐसा लगता है कि भाजपा ने सिर्फ आर्थिक विकास को ही सब कुछ समझ लिया, जबकि सोशल जस्टिस भी विकास का एक रास्ता है. भाजपा को बिहार चुनावों में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान ने भी नुकसान पहुंचाया. हालांकि भागवत के बयान का आशय यह नहीं था कि आरक्षण व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए, बल्कि ऐसे जरूरतमंद लोगों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाए जिन्हें नहीं मिल रहा है. लेकिन चुनावों के कई दिन पहले दिए गए उनके बयान का वास्तविक आशय भाजपा चुनाव के आखिरी दिन तक स्पष्ट नहीं कर सकी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा है.
बिहार चुनाव के इन परिणामों का एक नतीजा यह होगा कि थर्ड फोर्सेस और कांग्रेस अब नीतीश कुमार के नेतृत्व में मिलकर देश भर में भाजपा का एक मजबूत विकल्प देने की कोशिश करेंगी. हालांकि भाजपा के लिए दरवाजे अभी भी बंद नहीं हुए हैं. नरेंद्र मोदी अगर अपनी पॉलिसी को बदल लें, विकास के जिस वादे के बल पर वे सत्ता में आए हैं, उस पर ही अपना ध्यान केंद्रित करें और अपनी पार्टी के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा बीच-बीच में दिए जाने वाले उत्तेजक भाषणों पर अंकुश लगा सकें तो अभी भी वे देश को विकास के पथ पर आगे ले जा सकते हैं और अपनी पार्टी का भविष्य भी उज्ज्वल बना सकते हैं.
लेकिन यह तो तय है कि सांप्रदायिकता की राजनीति अब देश में चल नहीं सकती. दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद बिहार चुनाव के नतीजों ने दूसरी बार साबित कर दिया है कि जनता सिर्फ विकास चाहती है, विकास से इतर कोई भी राजनीति उसे स्वीकार्य नहीं है। विधानसभा के चुनाव परिणाम केंद्र की भाजपा सरकार के लिए दूसरी चेतावनी हैं. पहली चेतावनी दिल्ली विधानसभा के चुनावों में मिली थी, जिसे वह समझ नहीं पाई.
lokmat
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