Friday, 15 August 2014

मोदी: एक राजनेता का समाज- सुधारक के रूप में भाषण


मोदी के भाषण में जनता से सीधे कनेक्ट की अद्भुत क्षमता


चूंकि भारत में द्वंदात्मक प्रजातंत्र है लिहाज़ा मीडिया का मूल काम सत्ता की गलतियों से, नेता की कमियों और सरकार की खामियों से जनता को बाबस्ता करना है. इस पैमाने पर मैं आम तौर पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का आलोचक रहा हूँ. लेकिन अद्भुत था लाल किले की प्राचीर से किसी प्रधानमंत्री का वह भाषण. किसी भी दृष्टिकोण से उस भाषण में कोई दोष निकालना मात्र हठधर्मिता होगी. वह किसी राजनेता का परंपरागत “हम बनाम वे” के भाव में दशकों को दिया जा रहा भाषण नहीं था. बल्कि लगता था कि एक ऐसा समाज- सुधारक भावना के संतुलित अतिरेक में बोल रहा है. यह कहना मुश्किल होगा कि प्राचीर पर मोदी स्टेट्समैन बड़े थे या समाजसुधारक बड़े.
वह मोदी का आत्मविश्वास हीं था प्रधानमंत्री के रूप में स्वतंत्रता दिवस भाषण को बगैर लिखे बोला. जिस तरह का देश में माहौल है उसमें बगैर किसी बुलेट-प्रूफ केबिन में बंद हुए धाराप्रवाह ४५ मिनट बोलना अपनी सुरक्षा बलों पर भरोसा दर्शाता है. मैंने नेहरु को भी सुना है. अटल बिहारी वाजपेयी को भी इसी प्राचीर से बोलते हुए सुना है. पर मोदी का भाषण ना केवल अलग था बल्कि पहली बार लगा कि कोई प्रधानमंत्री अभिभावक भी, तो समाजसुधारक भी. शासन का मुखिया भी है तो सेवक भाव भी रखता से. आध्यात्मिक गुरु भी है तो गरीबों का मसीहा भी.
अद्वैतवाद से अवमूल्यन तह लगभग हर पहलू पर एक सन्देश देकर मोदी ने ना केवल अपने को जनता से कनेक्ट किया बल्कि उसे सोचने पर मजबूर किया कि क्या वे यही भारत अपनी अगली पीढी के लिए छोड़ जायेंगे?
क्या पिछले ६६ सालों में आपने कभी किसी प्रधानमंत्री को यह कहते सुना कि माँ-बाप अगर अपने बेटे से पूछे कि तुम कहाँ जा रहे हो , किसलिए जा रहे हो, तो आज यह बलात्कार की घटनाएँ ना होंगी ? यह गहरी बात है. एक ऐसे समय में जब अभिभावकों का अपने बेटों पर नियंत्रण कम हो रहा है और नतीज़तन लम्पटता चरम पर हो (किशोरों द्वारा किये गए बलात्कार व अन्य अपराध इसके गवाह है) मोदी का उलाहना हर अभिभावक के लिए गहरी नसीहत है. मोदी के इस अपील में ना तो कोई वोट पाने की हवास थी ना हीं कोई अपने को उचित ठहराने की ज़द्दोजेहद. एक निर्दोष गुज़ारिश थी. परिवार को फिर से संगठित कर सोशल पुलिसिंग को या पारिवारिक नियंत्रण को फिर से बहाल करने की. युवा पौध में विकृति घर से शुरू होती है यह समाजशास्त्रीय सत्य है. इसी पौध को फिर से जंगल की झाड़ी ना बना कर बाग में तराशे फलदार पेड़ लगाने की ललक.
तीन बार इस इसरार के साथ कि “मेरी बात के राजनीतिक मायने ना निकले जाएँ” मोदी ने शासन में पनपे आपसी दुराव का ज़िक्र करते हुए कहा “सरकार के हीं दो विभाग एक दूसरे के खिलाफ अदलत में गए थे, एक विभाग और दूसरे विभाग में कोई ताल-मेल नहीं था”. ठीक इसके पहले प्रधानमंत्री ने विपक्ष को साथ लेकर चलने की प्रतिबद्धता जताई और हाल में ख़त्म हुए संसद सत्र के दौराम सभी पार्टियों के सकारात्मक भाव की जबरदस्त प्रशंसा की. कहीं “वो बनाम हम” का भाव नहीं था.
दुखती रगों को मात्र छूना हीं नहीं, उन पर हल्का से दबाव डाल कर मवाद निकलना मोदी की भाषण कला का अहम् अंग है. लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री ने उन रगों को झकझोरा. “मीडिया लिखता है नयी सरकार के आने का बाद अफसर समय से आने लगे. यह खबर किसी भी प्रधानमंत्री को खुश कर सकती है पर मुझे दुःख हुआ कि सरकारी कर्मचारी का समय पर आना भी मीडिया की खबर है.” दरअसल पिछले ६६ सालों में हम अफसरों के गैरजिम्मेदाराना रवैये के इतने आदी हो चुके हैं कि अब उनका समय से आना भी खबर बन जाता है.
अपने भाषण की शुरुआत हीं मोदी ने अपने को प्रधान सेवक” कह शुरू किया और यहीं से शुरू हुए जनता से उनका “कनेक्ट”. याद आता है स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण जिसमें संबोधन “ब्रदर्स एंड सिस्टर्स” कह कर संबोधन करते हीं पूरा अमरीका उनका मुरीद हो गया.
आजकल गुरुओं का जमाना है. कोई “लव गुरु” कहलाता है तो कोई “मैनेजमेंट गुरु”. मोदी को “कनेक्ट गुरु कहना गलत नहीं होगा. आज के भाषण के विशेष पहलू हैं : जनता को भोवोत्तेजित (इंस्पायर) कर के अपने अन्दर झांकने के उत्कंठा पैदा करना और यह विश्वास दिलाना कि तुम एक कदम बढ़ो हम दस कदम बढेंगे”. पिछले कुछ दशकों में राजनेताओं में यह क्षमता खो दी थी कि उनकी बातों पर जनता विश्वास करे.
जनता से कनेक्ट होने के कुछ और नमूने देखिये. “हल से हरियाली” , “कम. मेक इन इंडिया” (आओ और भारत में उत्पादन करो), “केमिकल से फार्मास्यूटिकल तक” , “संसद मॉडल ग्राम योजना”, “डिजिटल इंडिया”. “आदर्श ग्राम” “जीरो-डिफेक्ट , जीरो इफेक्ट” “प्रधानमंत्री से प्रधान सेवक” “प्रधानमंत्री जनधन योजना” “बेटियों पर इतने बंधन , बेटों पर कोई नहीं”. ये जुमले आम राजनीतिक जुमलों से हट कर थे. इनके ज़रिये मोदी ने जनता से सीधा संवाद बनाया लाल किले के भाषण से.
दंगों के वातावरण पर भी उसी गरिमा से मोदी ने प्रहार किया. कहीं कोई हिन्दू-मुसलमान टाइप परम्परागत या धर्मनिरपेक्षता की दुहाई नहीं. सीधा संवाद. “आओ , हम मरने –मारने की दुनिया को छोड़ कर जीवन देने वाला समाज बनायें”.
मोदी ने इन सब के अलावा जो सबसे क्रांतिकारी घोषणा की वह थी , “हर गरीब परिवार को एक लाख का बीमा”. आजाद भारत में शायद यह पहली बार सोचा गया कि सोशल सिक्यूरिटी का कवच दे कर गरीबों को भी “भविष्य की चिंता” के दंश से मुक्त किया जाये. देश में नए आंकड़े के अनुसार सात करोड़ के करीब गरीब परिवार हैं. परिवार के मुखिया के निधन पर परिवार के सदस्य यतीम हो जाते हैं , शिक्षा न मिलने से बच्चे लम्पटता या अपराध की ओर उन्मुख होते हैं और कमी के आभाव में ऐसे परिवार गरीबी की उस गर्त में चले जाते हैं जहाँ से निकलना असंभव होता है. मोदी की यह योजना दूरगामी और क्रांतिकारी दे ने परिणाम वाली है.
अपने को देश की सीमाओं से बाहर निकलते हुए मोदी ने पूरे सार्क देशों की गरीबी पर अघात किया और सन्देश था –हम सब मिलकर इससे लड़ें. यह चीन द्वारा पाकिस्तान या नेपाल को दी जाने वाली कुटिल मदद से काफी अलग थी, एक निर्दोष भरोसा दिलाने का प्रयास था.
कुल मिलकर लाल किले से हुए मोदी का भाषण विश्व की यूनिवर्सिटीज में “हाउ टू कनेक्ट विद द मासेज” (कैसे हो जनता से तादात्म्य) पढाये जाने लायक था.

jagran 


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