अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पद के लिए दोबारा सन 1972 में चुनाव
मैदान में उतरे तो घोषणा की कि अगर फिर से जीतते हैं तो सरकार द्वारा दुग्ध
उद्पादकों को दिए जाने वाले अनुदान को ख़त्म करेंगें. यह सुनने के बाद देश के
दुग्द्ध उत्पादन लॉबी ने तत्काल २० लाख डॉलर चुनाव फण्ड में दे दिया. दोबारा चुनकर
आने के बाद निक्सन ने कभी भी दुग्ध अनुदान का मामला नहीं छेड़ा. लगभग साढ़े चार दशक
बाद नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ होम बिल्डर्स को जब पता चला कि अमरीकी संसद (कांग्रेस) किसी
लंबित कानून में एक प्रावधान जोड़ रही है जो बिल्डर्स के हित में नहीं है तो
एसोसिएशन ने ऐलान किया कि अगर यह प्रावधान वापस नहीं लिया गया तो अगले चुनाव में
संस्था चुनाव अभियान फण्ड में एक डॉलर भी नहीं देगी. प्रावधान रोक दिया गया. याने
४५ सालों में २०० साल पुराना दुनिया के सबसे ताकतवर देश का प्रजातंत्र यहाँ तक गिर
गया कि पहले नेता धमका के पैसा लेता था अब व्यापारी-कॉर्पोरेट लॉबी उसे धमकाती
है--- एक कानून बनाने के नाम पर दूसरा कानून ना बनने देने के लिए. अमरीकी
शासनतंत्र में व्यापत भ्रष्टाचार ने बगैर किसी बिल लादेन के हीं अपनी
प्रजातान्त्रिक विरासत को लगभग निष्क्रिय बना दिया है.
ऐसा नहीं कि अमरीकी समाज को इसका अहसास नहीं है या वह इससे क्षुब्ध
नहीं है. संयुक्त अमेरिका की मशहूर सर्वेक्षण संस्था “गाल-अप” के एक सर्वेक्षण में
पाया गया कि ८९ प्रतिशत लोगों को अमेरिकी संसद “कांग्रेस” में विश्वास नहीं है. तीन
अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा कराये गए सर्वेक्षणों में पता चला कि ७९ पतिशत
लोगों का यह मानना है कि अमरीकी सांसद उन लोगों द्वारा नियंत्रित होते हैं
जिन्होंने उन्हें चुनाव में आर्थिकरूप से मदद की है. कोई ३० साल पहले सांसदों के
बारे में ऐसा नकारात्मक ख्याल केवल ३५ से ४० प्रतिशत लोगों का होता था. जो सबसे
बड़ी चिंता की बात है वह यह कि अमरीकी समाज यह क्षोभ व्यक्त करने के लिए सड़कों पर
नहीं आ रहा है. पूरे समाज में एक जड़ता की हालत है. नूनन ने अपनी मशहूर पुस्तक “ब्राइब” में लिखा है कि
उन समाजों का कोई भविष्य नहीं जो भ्रष्टाचार के प्रति “शून्य-सहिष्णुता” (जीरो –टॉलरेंस)
नहीं रखती हैं या यूं कहिये कि भष्टाचार को सहने की एक सहज आदत उनमें आ जाती है.
बाज़ार ने इस देश को हीं नहीं पूरी दुनिया को हीं अपने नाग-पाश में जकड
रखा है. ये ताकतें हमारी सोच को, हमारी ज़रूरतों को , हमारे रिश्तों को और हमारे
नैतिक मूल्यों को एक सर्वथा नयी परिभाषा में ढाल रहीं हैं जिसके तहत एक मां को इस
बात की चिंता नहीं है कि उसका लड़का पडोसी के बच्चे से कम नंबर क्यों ला रहा है पर
उसकी एक साध ज़रूर है कि पडोसी का गाड़ी लम्बी है तो उसकी भी होनी चाहिए.
अमरीका में हर व्यक्ति अपनी क्षमता से ज्यादा चार गुना ज्यादा
उपभोक्ता कर्ज लेता है जिसको वह भविष्य में होने वाली आमदनी से चुकाने का भाव रखता
है. जाहिर है कि जो समाज आकंठ क़र्ज़ में डूबा होगा वह व्यवस्था के खिलाफ तन कर खड़ा
नहीं हो सकता.
बाजारी ताकतों ने पिछले दो दशकों से समूचे विश्व की प्रजातान्त्रिक
देशों की संस्थाओं को पूरी तरह अपने शिकंजे में ले रखा है. नतीजा यह हो रहा है कि
कौन सा कानून जनहित में संसद को बनाना है यह भी कॉर्पोरेट घराने बता रहे हैं.
स्थिति यहाँ तक ख़राब हो चुकी है कि भारत ऐसे देश पर जो सकल घरेलू उत्पाद ( लगभग दो
ट्रिलियन डॉलर) के पैमाने पर दुनिया के सात देशों में है इन बाजारी ताकतों की नज़र
पूरी तरह गडी हैं. और ये सफल हो रहे हैं. अन्यथा कोई कारण नहीं है कि भारत ऐसा देश
१० रुपये किलो का आलू ब्रांडेड चिप्स के नाम पर ४०० रुपये में खाए क्योंकि यह वही
चिप्स है जो होली में माँ या दादी बनाया करती थी. लेकिन इसके ४०० सौ रुपये में
बिकने से ना तो किसानों का भला हुआ है (आलू का थोक दाम वही है) ना हीं कुछ ऐसी
नायाब चीज़ पॉलिथीन के पैकेट में है जो ४०
गुना अधिक पैसा देने को प्रेरित करती हो. पॉलिथीन के पैकेट में हवा ज्यादा होती है
माल कम. लेकिन दिमाग में यह बात ज़रूर होता है कि पडोसी का बच्चा भी लंच में यह ले
जाता है तो मेरा क्यों नहीं.
भारतीय टीवी चैनलों में एक विज्ञापन आता है. एक गृहणी (जो एक मशहूर
फिल्म अभिनेत्री होती है) माल में कुछ सामान खरीद रही होती है और उसके हाथ में एक खास
ब्रांड की टॉफी का एक पैकेट होता है. एक बच्चा उस पैकेट को ललचाई हुई आँख से देख
कर उस गृहणी को मां कहता है. यह गृहणी कुछ अचम्भे से और कुछ क्षोभ से देखती है पर
आगे बढ़ जाती है. यह बच्चा पीछा नहीं छोड़ता और फिर मां कहता है. झुंझलाई गृहणी कहती
है “मैं तेरी मां नहीं, तेरी मां होगी तेरी मम्मी “. बच्चा फिर भी नहीं मानता और
जब तीसरी बार उसे मां कहता है तो वह उन बच्चे को लगभग दुत्कारते व धकेलते हुए पीछा
छुड़ाने के लिए टॉफी दे देती है. लड़का दुत्कारने या धकियाए जाने की परवाह ना करते
हुए टॉफी पाकर खुश हो कर चला जाता है.
इस विज्ञापन का समाज में खासकर बच्चों को जो सन्देश जाता है वह यह कि
बाल-गरिमा या स्वाभिमान का मूल्य कुछ नहीं है किसी को मां या बाप कह कर एक टॉफी
मिली तो भी “चलेगा”.
अमरीका का एक और किस्सा लीजिये. आज से चालीस साल पहले तक देश टाइप -२
डायबिटीज के कुल रोगियों में बच्चों की प्रतिशत मात्र १ से २ होता था. आज यह
प्रतिशत ४० से ४५ है. देश में पिछले ३० सालों में चीनी का उपभोग ३० प्रतिशत बढ़ गया
है. एक और वजह ज्यादा चौंकाने वाली है. देश में औसतन हर बच्चा अपनी कलोरी की ज़रुरत
का १५ से २० प्रतिशत कोक या पेप्सी से लेता है. देश में इन ब्रांड के पेय की खपत
करीब ५५ गैलन प्रति वर्ष है. याने ८०० मिली ग्राम प्रति व्यक्ति. इसे मीठा करने के
लिए शकर की जगह सस्ता हाई -फ्रक्टोज कॉर्न सिरप (एच ऍफ़ सी ) डाला जाता है. यह
कंपनियों को तो सस्ता पड़ता है लेकिन नुकसानदेह है. यह उत्पाद मुख्यतया अमरीका की
एक कंपनी – ए डी एम् – बनाती है. एच फ सी के खिलाफ तमाम वैज्ञानिक रिपोर्टों के
बावजूद इस उत्पाद को आज तक बंद करने का कानून अमरीकी संसद में नहीं आ पा रहा है
क्योंकि सांसद इस कंपनी के अहसानमंद हैं.
भारत में भी बाजारू ताकतें हमारी सामूहिक सोच को, हमारे नैतिक मूल्यों
को, हमारे स्वाभिमान के बिन्दुओं को और हमारी संस्थाओं धीरे –धीरे अपने नागपास में
ले रही हैं. महज लोकपाल ला कार या भ्रष्टाचारी के खिलाफ आजीवन कारावास का कानून
बना कर स्थिति से उभर नहीं सकते. ज़रुरत है इन बाजारी ताकतों को समझाने व उनको
नियंत्रण में रखने की.
rajsthan patrika
Author has hit at the basic character of bourgeois society. Corruption is essential feature of it. Society gets habit to accept is as normal.A person may become icon in a regional politics by spreading hatred on the basis of communal divide and claims development of society on the basis of land allotments to corporate sectors at throw away prices ignoring the interest of farmers. People of the state don't see that every third child of them is suffering from malnutrition. PM of the same country in not ashamed of his act of bringing ordinance to defend his tainted legislators against criminal conviction has been approved by court.Are we going to become withering state.Thanks to a young leader who has shown his commitment to zero tolerance against corruption and has saved the nation.
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