गीता के अध्याय २ के ६२वें
और ६३ वें श्लोकों में व्यक्ति के पतन की आठ चरणों में (ध्यायतो .......
बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ) क्रमवार विवेचना की गयी है और आखिरी श्लोक में कहा गया
है कि जब अंत में उसकी बुद्धि का ह्रास होने लगे तो पतन सन्निकट होता है. भारतीय
राजनीतिक वर्ग, खासकर सत्ताधारी समूह में लगता है बुद्धि का लोप हो रहा है.
तुलसी ने प्रभुता पाने पर मदांध होने की बात तो कही थी लेकिन बुद्धि का लोप क्यों
होता है इसे समझने के लिए गीता को देखना होगा. यह अलग बात है कि मदांध होना और बुद्धि खोना एक हीं सिक्के के दो
पहलू हैं. देश में हाल में हुई कुछ घटनाओं में सत्ता पक्ष या उससे जुड़े पार्टियों
व् नेताओं ने जिस तरह अहम् मुद्दों पर अपने भौंडे तर्क से अपने को सही सिद्द करने
की कोशिश की है उससे लगता है जनता के प्रजातंत्र पर विश्वास का आखिरी अवलंबन भी
टूट रहा है.
कुछ ताज़ा उदाहरण लें. जम्मू
राज्य के किश्तवार साम्प्रदायिक दंगे होते हैं. राज्य का गृह राज्य मन्त्री चंद
क़दमों की दूरी पर होता है. हिंसक भीड़ घरों व दूकानों को जलाती है लोगों को हत्या
करती है और सेना बुलाने की घंटों बाद भी कोई कोशिश मंत्री महोदय नहीं करते.
मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह महज इस मंत्री से इस्तीफा लेकर विजयी भाव से “ट्वीट” करते हैं “मैंने तो इतना कर
दिया लेकिन गुजरात के दंगों के बाद वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या किया? गुजरात में तीन दिन तक क्यों सेना नहीं बुलाई गयी?”. लगता है कि यह कर कर
उन्होंने अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली. इस का यह भी भाव है कि अगर मोदी गलत हैं
तो ओमर साहेब को भी जन्म-सिद्ध अधिकार मिल जाता है कि अपने यहाँ भी वही सब कुछ
होने दें. जब इस कुतर्क से मन नहीं भरा तो सत्तावर्ग ने आगे कहा “वहां जो कुछ भी हो रहा है
वह भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक लाभ के लिए करा रही है”. अगर मुख्यमंत्री या इस्तीफा
देने वाले गृह-राज्य मंत्री किचलू की बात को सत्य भी माना जाये तो क्या इसका मतलब
यह नहीं निकलता कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी दंगे करा रही है तो क्या सरकारों का
दामन साफ़ हो जाता है और लाशों के खून का कोई भी छींटा उनके दामन को छू भी नहीं
सकता. यह अलग बात है कि उनका आरोप बेहद झूठा तब साबित होता है जब देश के पूर्व
गृहमंत्री चिदंबरम स्वयं संसद में अपने बयान में कहते हैं कि “कुछ लोग भारत –विरोधी नारे लगते
नमाज़ पढने जा रहे थे जिस पर यह घटना घटी. अब चिदंबरम साहेब का अगला बयान देखिये.
उन्होंने कहा “ऐसे नारे कुछ गुमराह और गर्म-दिमाग के लोग अक्सर वहां पहले भी लगाते रहे हैं”. प्रश्न यह है कि अगर इस तरह
के राष्ट्र विरोधी नारे “अक्सर” लगते रहे हैं तो वहां का शासक वर्ग क्या कभी कोई
सख्त कदम उठा सका है. अगर नहीं तो किसकी गलती है?
एक अन्य उदहारण लें. बिहार
के नवादा जिले में दंगे हो रहे हैं. राज्य का सत्ताधारी दल फिर उसी कुतर्क का
सहारा ले कर आरोप लगा रहा है कि “एक षड्यंत्र है और एक राजनीतिक पार्टी राज्य में
सम्प्रदाय के आधार पर ध्रुवीकरण करना चाहती है”. इनका इशारा भारतीय जनता
पार्टी की ओर है. अगर भारतीय जनता पार्टी दंगे करने वाली पार्टी है तो १७ साल तक
जनता दल (यू) इसका कंधे पर बैठ कर क्यों चुनाव लडती रही और शासन करती रही? फिर अगर कोई राजनीतिक पार्टी दंगे करा रही है तो जम्मू में या नवादा में इनके
लोगों को अभी तक जेल क्यों नहीं भेजा गया. पूरी पुलिस, राज्य की खुफिया एजेंसी और
केंद्र का इंटेलिजेंस ब्यूरो क्या कर रहा था. क्या शासक का कर्तव्य सिर्फ इतना हीं
है कि दंगा होने का बाद वह यह बताये कि दंगा किस राजनीतिक पार्टी ने कराया?
यह वही बिहार है जहाँ के
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शिक्षा मंत्री पी की साही ने मिड-डे मील खाकर मरने
वाले २३ बच्चों की घटना पर चार घंटे में हीं ऐलान कर दिया जिसने खाने में जहर डाला
है वह राष्ट्रीय जनता दल का कार्यकर्ता है. याने कि अगर अगर कोई कार्यकर्ता
हत्यारा है तो राज्य की भूमिका इस तरह के अपराध में नहीं रह जाती है?
अपराध-शास्त्र का एक मूल
सिद्धांत है “आरोप का जवाब आरोप नहीं होता”. मतलब अगर चोर से यह पूछा
जाये कि तुमने चोरी क्यों की तो वह यह कह कर नहीं बच सकता कि दूसरे चोर ने चोरी
क्यों की? यहाँ सत्ता वर्ग इसी तार्किक दोष का इस्तेमाल लगातार कर
रहा है. वह चाहे किस्तवार में दंगा हो या बिहार में बच्चों की मौत की घटना
हो.
एक और घटना लें. कांग्रेस
नेता और देश की सबसे ताकतवर महिला सोनिया गाँधी के दामाद पर जमीन के फर्जी
खरीद-फरोख्त में करोड़ों का वारा-न्यारा करने का आरोप लगा है. संसद में हंगामा हो
रहा है क्योंकि इस घोटाले की जाँच नहीं कराई जा रही है. कांग्रेस के रणनीतिकार
इसका जवाब देने की जगह इस बात की खोजबीन कर रहे है कैसे कर्नाटक में भारतीय जनता
पार्टी के शासन काल में खदानों के बंटवारे में घोटाला हुआ था ताकि विपक्ष को “मुहतोड़” जवाब दिया जा सके.
क्या हो गया है सत्ता में
बैठे लोगों को? इतने बड़े-बड़े घोटालों और निष्क्रियता-जनित या आपराधिक उनीदेपन
से पैदा हुई हिंसा को इस तरह “उसकी कमीज़ मेरे कमीज़ से ज्यादा गन्दी है” रुपी कुतर्कों के सहारे सही सिद्ध किया जाएगा?
वाड्रा पर जमीन घोटाले के
मामले में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का तर्क सुनिए. “मुझे लगता है कि
सोनिया गाँधी पर आरोप लगना गलत है. जिसने गलती की है उसके खिलाफ कार्रवाई तो ठीक
है पर कोई रिश्तेदार अगर राजनीति में है तो इसका मतलब यह नहीं कि उस पर हीं आरोप
लगाया जाये”. याने अगर मायावती के भाई और अन्य रिश्तेदार घपला करें तो
मायावती उसमे दोषी नहीं. तब फिर मुलायम पर यह आरोप क्यों कि इनके बेटे और बहु के
पास ज्ञात स्रोतों से अधिक पैसा है तो मुलायम दोषी. फिर क्यों चारा घोटाले में
फंसे लालू यादव ठीक तब जब वर्षों बाद फैसला आने की घडी होती है तो सर्वोच्च
न्यायलय में गुहार लगाते हैं कि चूंकि जज राज्य के एक मंत्री का रिश्तेदार है
लिहाज़ा नयी अदालत गठित की जाये क्योंकि इन्हें उस जज से न्याय नहीं मिलेगा. यह अलग
बात है सर्वोच्च अदालत ले उनकी अपील ख़ारिज कर दी है.
सीमापार से हुई हिंसा में
भारतीय सैनिकों की मौत होती है, कुछ दिन पहले सर काटा जाता है. संसद में जब
मुद्दा उठाता है तो मनमोहन सरकार आंकड़े लेकर विजयी भाव से यह बताने लगती है उसका
भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में कितने सैनिक मरे या कितने घटनाएँ सीमा पार से
हुई जो कि उनके हिसाब से वर्तमान शासन में होने वाली सैनिकों की हत्याओं से ज्यादा
हैं. जैसे वर्तमान यू पी ए सरकार को कोई लाइसेंस मिल गया हो और वह यह समझती हो कि
जब तक संख्या वाजपेयी सरकार के संख्या तक नहीं पहुंचती सीमा पर से होने वाली
गोलीबारी से भारतीय सैनिकों के मरने पर कोई चिंता की बात नहीं है. संख्या बढ़ेगी तब
देखेंगे. जब समूचे देश का जनमानस जबरदस्त ढंग से उद्वेलित हो इस तरह का सरकारी
बचाव तीन हीं स्थितियों में हो सकता है. एक; वर्तमान सत्ता वर्ग
प्रजातान्त्रिक शर्म-ओ-हया व संसदीय जवाबदेही को भूल गया हो, दो; वह देश की जनता की समझ को ठेंगा दिखा कर यह सोच रहा हो कि “क्या कर लोगे?” और तीसरा : उसकी बुद्धि का पूरी तरह ह्रास हो रहा हो यानि मरने की कगार पर हो.
आज ख़तरा यह नहीं है कि
सत्ता “उसकी और अपनी कमीज़ की गन्दगी) के आधार पर सत्ता में बने
रहने का दुरौचित्य सिद्ध कर रहा है. ख़तरा यह है कि इस पूरे प्रजातान्त्रिक
व्यवस्था पर जिसे संविधान में “हम भारत के लोग” से शक्ति मिली है
देशवाशियों का विश्वास तिल-तिल कर के टूट रहा है.
rajsthan patrika
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